वट सावित्री व्रत एवं उसका महत्त्व - देव कांत मिश्र 'दिव्य' - Teachers of Bihar

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Friday 7 June 2024

वट सावित्री व्रत एवं उसका महत्त्व - देव कांत मिश्र 'दिव्य'


भारतीय संस्कृति में पूजा-पाठ, व्रत, जाप एवं पर्व का विशेष महत्त्व है। समयानुसार लोग अपने-अपने ढंग से व्रत करने का प्रयास करते हैं। कोई माँ दुर्गा हेतु नवरात्र व्रत, महालक्ष्मी व्रत, हरितालिका व्रत तो कोई छठ व्रत तो कोई एकादशी व्रत,साथ ही न जाने और कौन-कौन से व्रत रखते हैं। वाकई व्रत एक धार्मिक कृत्य है। यह 'वृ' धातु से बना है जिसका अर्थ होता है- स्वीकारना, धारण करना, संकल्प लेना इत्यादि। यह एक प्रकार की तपस्या है, एक प्रकार का यज्ञ है तथा एक देवता पूजन है। कहा भी गया है - व्रतं तप: व्रतं यज्ञ: व्रतं देवेशपूजनम्।

वट सावित्री व्रत का महत्त्व: ज्येष्ठ माह का यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रभावकारी होता है। इस दिन स्त्रियाँ नए परिधान में

वटवृक्ष के पास पहुंँचती हैं और धूप-दीप नैवेद्य से पूजा करके इसके तने पर सूत का लपेटा हुआ लच्छा यानी कलावा बाँधती है और चारों तरफ परिक्रमा करती हैं। कहीं- कहीं १०८ बार वृक्ष की परिक्रमा या कहीं- कहीं यथासंभव अपनी शक्ति के अनुसार परिक्रमा करती हैं।

          वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष की पूजा करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य तथा सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यों भी व्रत से पुण्य होता है। ये सत्व गुण में वृद्धि लाते हैं। ये भाग्य वृद्धि करते हैं। इससे शरीर भी स्वस्थ कायम रहता है। महिलाएँ पति की लंबी उम्र की कामना के उद्देश्य से ये व्रत करती हैं। इस दिन सावित्री- सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण भी किया जाता है। एक बात दीगर है कि महिलाएँ जैसे ही वटवृक्ष के शीतल छाँव में पहुँचती हैं

सारे राग-द्वेष को भूलकर केवल और केवल अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। अन्य सभी चीजों को भूल जाती हैं केवल उम्र की ही कामना, स्वस्थ और सुखी जीवन की कामना।

इस दिन सभी का एक ही उद्देश्य होता है- लंबी उम्र और समृद्धि।

भले दूसरा दिन उद्देश्य और मनोभाव बदल जाए। गौरतलब है कि किसी भी व्रत में आपका भाव निर्मल होना चाहिए। सावित्री जैसी पतिव्रता स्त्री का गुण होना चाहिए। ऐसा नहीं हो कि व्रत समाप्ति के पश्चात् सौहार्द प्रेम की कमी और लड़ाई- झगड़ा शुरु। तब व्रत करने का कोई महत्त्व और न कोई औचित्य ही रह जाएगा। हिंदू धार्मिक पुराणों के अनुसार- वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु तथा अग्र भाग में देवाधिदेव महादेव का वास होता है। स्त्रियाँ वट के तने पर रक्षा सूत्र बाँधती हैं यानी वे पालनकर्ता भगवान विष्णु से यही प्रार्थना करती है कि हे! सृष्टि के स्वामी! मेरे पति दीर्घायु हों। इसी उद्देश्य से मैं यह सूत्र बांँध रही हूँ। सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वटवृक्ष के नीचे ही लौटाए थे। तभी से वटवृक्ष की पूजा होने लगी। ऐसा सावित्री की पतिव्रता, ईश्वर भक्ति तथा धार्मिक गुणों के कारण हुआ। स्त्रियों को वटवृक्ष पूजा करने के साथ- साथ सेवा तथा परस्पर सौहार्द प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए। केवल एक दिन का व्रत आपको लंबी उम्र नहीं दे सकता है बल्कि निश्छल सेवा, उच्च विचार, निर्मल भाव, सौहार्द प्रेम, संतुलित खान-पान और ईश्वर भक्ति ही आपको लंबी उम्र प्रदान कर सकती है। अतः हम केवल एक दिन नहीं बल्कि प्रतिदिन ईश्वर का स्मरण कर सुख समृद्धि वह स्वस्थ रहने की मंगलकामना करें। 



देव कांत मिश्र 'दिव्य' मध्य विद्यालय धवलपुरा ,सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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