दिल में बसे चित्र, पर्यावरण हो मित्र - देव कांत मिश्र 'दिव्य - Teachers of Bihar

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Friday 7 June 2024

दिल में बसे चित्र, पर्यावरण हो मित्र - देव कांत मिश्र 'दिव्य


पर्यावरण हमारे लिए एक बहुचर्चित विषय है तथा यह पूरी दुनिया के लिए एक ज्वलंत समस्या है। प्रस्तुत विषय पर विचार-विमर्श हेतु सबसे पहले पर्यावरण शब्द पर चर्चा करना आवश्यक है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है - परि+ आवरण। यहाँ परि का अर्थ है चारों ओर तथा आवरण का अर्थ घेरा है। यानि हमारे परिवेश को निर्मित करने वाले समस्त जैविक और अजैविक घटक तथा मानव निर्मित सभी वस्तुएँ हमारे पर्यावरण को निर्मित करती है। इस तरह मिट्टी, पानी, हवा, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु सभी कुछ पर्यावरण के अंग हैं और इन सभी के परस्पर तालमेल को - उचित मात्रा मात्रा में होने को पर्यावरण संतुलन कहा जाता है। हम अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए पर्यावरण पर निर्भर रहते हैं। परन्तु हमें यह भी सोचना चाहिए कि इसके बदले हम अपने पर्यावरण को क्या देते हैं? जिस दिन हम सकारात्मक चिंतन कर लेंगे उस दिन हमारा पर्यावरण अभिराम बन जाएगा। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण के व्यापक महत्त्व पर विचार करते हुए सभी शैक्षिक संस्थानों के लिए पर्यावरण संरक्षण के लिए बच्चों के माध्यम से आम लोगों को तैयार होने के लिए प्रेरित करने को कहा है। एक बात दीगर है कि हम जिस पृथ्वी पर निवास करते हैं उसकी प्राकृतिक छटा अत्यधिक मनमोहक है। यथार्थ के धरातल पर यदि कुछ पल के लिए हम मानवीय क्रियाकलापों से किसी भी प्राकृतिक वनस्थली, पारम्परिक ग्रामीण परिदृश्य, कल-कल बहती नदियों अथवा पर्वत की किसी उपत्यका के सुरम्य दृश्य की कल्पना करें तो हमारा मन बरबस ही उनकी ओर खींचा चला आता है। हमारी वसुंधरा बहुत ही सुंदर है। यह हमें जीवित रखने के लिए सभी आवश्यक वस्तुएंँ उपलब्ध कराती है। परन्तु अब जीवन के लिए आवश्यक बुनियादी वस्तुओं का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है। साँस लेने के लिए न तो अब हमें शुद्ध वायु और न पीने के लिए स्वच्छ जल ही मिल पाता है। साथ ही हमें असंदूषित भोजन ही मिलता है। अतः इस परिप्रेक्ष्य में हमें पर्यावरण पर गहन विमर्श करने की आवश्यकता है।

पर्यावरण की व्यापकता: स्थूल रूप से पर्यावरण को तीन भागों में बाँटा जा सकता है - क. प्राकृतिक पर्यावरण - इसके अंतर्गत भूमि, जल, वायु, पर्वत, नदी, पेड़- पौधे और जीव-जन्तु आते हैं।

ख. मानव निर्मित पर्यावरण - इसके अंतर्गत गाँव, नगर विभिन्न औद्योगिक एवं अन्य मानव निर्मित प्रतिष्ठान, भवन, सड़कें, बाँध, नहरें यातायात, उद्योग आदि आते हैं।

ग. सामाजिक पर्यावरण - इसके अंतर्गत सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व्यवस्थाएँ और उनका मानव पर प्रभाव आते हैं, जैसे - जनसंख्या वृद्धि, रोजगार, वाणिज्य इत्यादि। कहने का तात्पर्य है कि पर्यावरण जीवन के प्रत्येक पक्ष से जुड़ा हुआ है।

विमर्श और उसकी सार्थकता: आज हमें पर्यावरण तथा उसकी विश्वव्यापी समस्या पर विचार- विमर्श करने की महती आवश्यकता है। प्रायः हम सभी जानते हैं कि पेड़- पौधे हमारे अभिन्न अंग हैं। इसे हमें नहीं काटना चाहिए। अंधाधुंध कटाई से हमें लाभ नहीं अपितु हानि ही होगी। वृक्षों से हमें फल फूल के अतिरिक्त स्वच्छ हवा मिलती है। ये वर्षा करने में सहायक होते हैं। इतना जानकर भी हम इसे नष्ट करने से बाज नहीं आते। प्रकृति के बहुमूल्य धरोहर नदी के जल में कूड़े- कचरे तथा अन्य अवांछित रासायनिक तत्वों को डालकर दूषित करते रहते हैं। इसके साथ- साथ मशीनों की आवाजों तथा लाउडस्पीकर आदि के कारण शोर-प्रदूषण की भयंकर समस्या उत्पन्न हो गई है। शादी, उत्सवों, त्योहारों, धार्मिक कार्यों आदि के अवसरों पर होने वाला वायु प्रदूषण लोगों की नींद हराम करते रहता है। विभिन्न प्रकार के रसायनों और कीटनाशकों द्वारा व्यक्ति अनेक रोगों जैसे रतौंधी, लकवा, मस्तिष्क एवं आँख संबंधी बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं। साथ ही जल, मिट्टी, अनाज, फल- सब्जी आदि भी प्रदूषित होते हैं। वैचारिक प्रदूषण से भी अनैतिक कार्यों की प्रेरणा मिलती है। खैर जो भी हो, पर्यावरण एक विश्व-व्यापी समस्या है। आज आवश्यकता इस बात की है कि सभी लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करें। निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए सबको क्षति पहुँचाना बंद करें। भारत के आर्ष- ऋषियों ने आज से शत सहस्त्र वर्षों पूर्व कहा था - "प्रकृति हमारी माता है, जो अपना सब कुछ अपने बच्चों को अर्पण कर देती है।" अतः आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी माता ( प्रकृति) की रक्षा करें। हमें विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सच्चे मन से संकल्प लेना होगा कि पर्यावरण हमारा सच्चा मित्र है। इसे हम चित्र बनाकर दिल में बसाएँ। इसके साथ हमें सुंदर व्यवहार करना है। इसे किसी भी परिस्थिति में कष्ट नहीं पहुँचाना है।



देव कांत मिश्र 'दिव्य' मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

1 comment:

  1. अति सुन्दर लेख।

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