शिक्षक का कर्तव्य- गिरीन्द्र मोहन झा - Teachers of Bihar

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Monday 24 June 2024

शिक्षक का कर्तव्य- गिरीन्द्र मोहन झा


एक शिक्षक के तीन मुख्य गुण होते हैं-

विषय-ज्ञान की गम्भीरता(Content Knowledge), सम्प्रेषण कौशल(Communication skill) और शिक्षण-शास्त्र(Pedaagogy).

मुनिवर भारद्वाज के पुत्र द्रोणाचार्य जी से उनके एक शिष्य ने प्रश्न किया कि आप तो हम सबके गुरु हैं। फिर अर्जुन ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर क्यों? इस पर आचार्य ने कहा कि मैंने तो सबको एक ही सी शिक्षा दी थी । तुम सब मुझ ही तक रह गये । अर्जुन निरंतर अभ्यास करता रहा और अभ्यास के बल पर ही आगे निकल गया । 

पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा है, 'हे शिक्षक ! यदि तुम दौड़ोगे, तो विद्यार्थी चलेगा । यदि तुम चलोगे, तो विद्यार्थी खड़ा रहेगा । यदि तुम खड़े रहोगे, तो विद्यार्थी बैठा रहेगा । यदि तुम बैठ जाओगे, तो विद्यार्थी सो जाएगा । यदि तुम सो जाओगे, तो विद्यार्थी मर जाएगा ।' शिक्षण-कार्य शिक्षकों को कक्षा में खड़ा होकर ही करना चाहिए । सुपर-30, पटना के संस्थापक पूर्व पुलिस महानिदेशक श्रीअभयानंद ने कहा है,   "My definition of a good teacher is one who doesn't give answers but keeps asking the right questions, thereby helping the students to get to their own answers."

("मेरे अनुसार अच्छे शिक्षक  वही हैं जो उत्तर नहीं देते हों और सही  प्रश्न अनवरत पूछते हों ताकि छात्र-छात्राओं को आसानी या मदद महसूस हो अपने शब्दों में उत्तर देने में ।")........ ऐसा करने से विद्यार्थी खुद से सोचने लगते हैं और पढ़ाई के वक़्त सतर्क(conscious) रहते हैं और विषय-वस्तु को अच्छे से समझ पाते हैं । 

मेरे एक आदरणीय प्राध्यापक डा0 के एस ओझा सर ने कहा है कि हर आकृति बिंदु से ही बनती है । जैसे, वर्ग, वृत्त, आयत, त्रिभुज आदि । हर कोई नीचे से ही ऊपर जाता है ।

मेरे एक आदरणीय प्राध्यापक डा0 रतन मल्लिक के अनुसार, 'शिक्षक वह है जो मस्तिष्क के बन्द दरवाजे को खोल दे ।' इसके आधार पर विद्यार्थी को पता चल जाए, कि Thermodynamics क्या है? तो इसके बाद उसके बाद वह उस पर इच्छित जानकारी प्राप्त कर सकता है । 

Prof Rechard Feynman ने कहा है, Students can't learn the way you teach? Teach them the way they learn.

(हे शिक्षक ! ) यदि विद्यार्थी आपके पढ़ाने के तरीका से नहीं सीख पा रहा है, तो आप उनके सीखने के तरीका से उन्हें पढाईए ।

कहा जाता है,  "A Master Speaker must first be a Master Listener, and a Master Teacher must first be a Master Learner."

एक शिक्षक को समदर्शी होना चाहिए, किन्तु उसे back benchers पर अधिक ध्यान देना चाहिए । 

सर्वविदित है कि आज की शिक्षा बालकेंद्रित हो गयी है । एक शिक्षक को syllabus और परीक्षा प्रश्न को ध्यान में रखते हुए ही अध्यापन करना चाहिए । कभी-कभी व्यवहारिक और आधुनिक चीजों(General knowledge, current affairs आदि) से भी updated कराते रहना चाहिए । उन्हें  विषय-वस्तु को प्रभावी ढंग से समझाने का प्रयास करना चाहिए । छात्रों को भी शिक्षक के द्वारा पढ़ाई गयी विषय-वस्तुओं का उसी दिन घर पर अभ्यास करना चाहिए । इससे वह बहुस्थायी होता है । 

शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि वह छात्रों/विद्यार्थियों को उनके स्तर से ऊपर उठाने का ही यथासम्भव प्रयत्न करे । उन्हें कभी भी उनके स्तरों से नीचे न ले जाएँ । 

शिक्षक छात्र के दोष नहीं, उनके गुण उन्हें दिखाएं, कैसे भी छात्र हों, खुद ही सही रास्ते पर आने लगाते हैं ।

शिक्षकों का यह भी कर्त्तव्य है कि वे छात्रों के गुणों को परखकर उन्हें सही vision देने का प्रयत्न करे ।

शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि शिक्षण के साथ-साथ वह अपना अध्ययन भी जारी रखें । विद्यार्थियों को उनके विषय-वस्तु के अनुसार आधुनिक और व्यवहारिक चीजों से भी update कराएँ । 

शिक्षक का यह कर्त्तव्य है कि उनके छात्र वैज्ञानिक प्रतिभासम्पन्न, जिज्ञासु और सार्थक प्रश्न पूछने का आदी हो । उनका कर्त्तव्य है कि वे अपने विद्यार्थियों की प्रतिभा व गुण को परखकर बता दे कि अमुक क्षेत्र में आगे बढ़ने से उसका भविष्य अच्छा रहेगा ।

ध्यान रहे विद्यार्थियों के प्रदर्शन पर ही शिक्षकों और विद्यालय की छवि निर्भर करती है ।

विद्यार्थियों का उत्कर्ष और उनका स्नेहिल सम्मान शिक्षकों की बहुत सारी उपलब्धियों में से एक उपलब्धि है ।

"(एक शिक्षक आजीवन विद्यार्थी बना रहता है- डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन)"

गिरीन्द्र मोहन झा, +2 शिक्षक, +2 भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा

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