जीवन की चुनौतियां - गिरीन्द्र मोहन झा - Teachers of Bihar

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Thursday 27 June 2024

जीवन की चुनौतियां - गिरीन्द्र मोहन झा

 'जो मुझे आता है, वह मैं कर लूंगा । जो मुझे नहीं आता है, वह मैं सीख लूंगा, किन्तु करने से पीछे नहीं हटूंगा ।' ये भाव मनुष्य को उत्कर्ष की ओर ले जाता है । जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने से व्यक्ति खोता बहुत कम है, पाता बहुत अधिक है । रामायण में भगवान राम ने कर्तव्यवश चतुर्दश वर्ष वनवास की चुनौतियों को स्वीकार किया । कुछ प्रारब्ध और विधि योजना के अनुसार, उन्होंने अपने पिता को खोया, शेष उन्होंने केवल पाया । ऋषियों की संगति, उनका आशीर्वाद, उनसे जीवनोपयोगी अस्त्र-शस्त्र, विद्या आदि, श्रेष्ठ व महान व्यक्तियों से मित्रता, रावण के अत्याचारों से जगत् को मुक्त कराकर अतुलित यश। फिर वे आये मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम बनकर । पाण्डवों ने अपने वचन की मर्यादा को रखने के लिए त्रयोदश वर्ष तक वनवास ग्रहण किया । इस दौरान उन्होंने कई धर्मपूर्ण और वीरोचित कार्य किये । कई ऋषि-महर्षियों से जीवनोपयोगी बहुत कुछ प्राप्त किया । महाभारत का वनपर्व बहुत शिक्षाप्रद और मनोहारी है । शरीर से और ऊपर से कष्ट, कठिनाई और भीतर से आनन्द मिल रहे हों, तो समझ लेना चाहिए कि सही रास्ते पर हैं । नासा, इसरो आदि के वैज्ञानिक कुछ नया देना चाहते हैं, तो उसे चुनौतियों के रूप में स्वीकार कर उसे पूर्ण करने का पूरा प्रयत्न करते हैं । हमें, हमारे राष्ट्र को कुछ अच्छा करने के लिए बड़े-बड़े कार्यों को चुनौतियों के रूप में स्वीकार करना होगा, फिर बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ हमारे पास होंगी ।


गिरीन्द्र मोहन झा, +2 शिक्षक, +2 भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा

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