शैक्षिणिक कौशल - रमेश कुमार मिश्र - Teachers of Bihar

Recent

Tuesday 25 June 2024

शैक्षिणिक कौशल - रमेश कुमार मिश्र

 मैंने अपने पिछले अंक में सु,बो,प,लि,इन शैक्षिणिक कौशलों के वास्तविक भाव और क्रम की चर्चा की थी।कुछ लिखने के पहले ही स्पष्ट कर दूँ कि मुझे लगता है कि हमारी शिक्षा अधिकांश लोगों के निगलने-उगलने के स्तर तक ही सीमित है।मैं तो यह कहूँगा कि अध्येता के चित्ताकर्षण की क्षमता जब तक अध्यापक में नहीं होगी तब तक सीखने-सिखाने की परंपरा का निर्वहन न होगा।मुझे तो यह लगता है कि तथाकथित ज्ञान ठूँसे जा रहे हैं,ठेले जा रहे हैं।तो निगलने और उगलने की प्रक्रिया भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रही है।कभी-कभी तो उल्टी(वोमेटिंग)हो जा रही है।बच्चे हताश-निराश हो रहे हैं।बहुत बच्चों को पुस्तकों ने भयाक्रांत कर दिया है।मैं किसी पर अँगुली नहीं उठा रहा।लेकिन सच तो यह है कि प्रायः शिक्षक यही आशा करते हैं कि वह जो बोलें वही बच्चों द्वारा स्वीकार्य हो।हम इतने मांसाहारी कैसे हो सकते हैं?शिक्षा में तो व्यवस्था का भाव छिपा होता है और व्यवस्था सबको अवसर देती है।तब हम बच्चों को अवसर क्यों नहीं देते।हताश-निराश बच्चों को देखकर हम स्वयं आत्मग्लानि क्यों नहीं महसूस करते।हम क्यों कह देते हैं कि यह पढ़ने वाला नहीं है।बच्चों की पीड़ा हमारी पीड़ा क्यों नहीं बन पाती।गुरु धर्म सबपर भारी क्यों नहीं पड़ जाता।क्या कहा जाए,इस तथाकथित ज्ञान ने आनंद और उल्लास छिन लिया है।प्रशिक्षण शब्द ने शायद अपना अर्थ,भाव खो दिया और अधिकांशतः प्रदर्शन के क्रियाकलाप बन गए हैं।शायद यह तथाकथित विद्या स्वयं में विशदता का भाव समाहित नहीं कर पा रही।आनंद की जगह आक्रान्तता के भाव प्रबल हो रहे।नदियाँ इसलिये उमड़ती रहीं कि उन्होंने अपने बहने की जगह ढूँढी।और हमने तो अपने ज्ञान की इतनी बड़ी दीवार खड़ी कर दी कि इसको लाँघना बच्चों के लिए असंभव हो गया।यह भी ठीक नहीं।सामंजस्यता अपरिहार्य है।तारे इसलिए चमके कि सूर्य अस्त हो गया।कभी अस्त होना भी हमारे लिए आवश्यक है।क्या आपने कभी सोचा है कि बच्चे वर्ग कक्ष में क्यों नहीं रहना चाहते?और क्या पढ़ाई सिर्फ वर्ग कक्ष में ही हो सकती है?बहुत से शिक्षको/प्रशिक्षकों को मैंने कहते सुना है कि बच्चे/शिक्षक पढ़ना ही नहीं चाहते।क्या आपने कभी सोचा कि वे क्यों पढ़ना नहीं चाहते?अगर आपने कभी यह सोचने बीड़ा नहीं उठाया तो समझिये!आपमें शैक्षणिक धर्म नहीं है।आपके ज्ञान में दम होगा।अगर आप में चेतनता होगी तो लोग स्वयं आकर आपसे जुड़ेंगे।अध्येता की मनोदशा,स्थिति-परिस्थिति,उसके परिवेश,उसकी परवरिश भी कुछ हद तक इसे प्रभावित करते हैं,मैं इससे इनकार नहीं करता।अगर आप में भावनात्मक संबंध की स्वीकार्यता है तो कोई भी अध्येता आपसे ज़रूर जुड़ेगा।


(अगले अंक में किसी अन्य विषय-वस्तु पर चर्चा करूँगा।)


रमेश कुमार मिश्र

शिक्षक

भारती मध्य विद्यालय

लोहियानगर, कंकड़बाग

पटना

No comments:

Post a Comment