किसी व्यक्ति, महापुरुष का कायरतापूर्ण अनुकरण नहीं करना चाहिए । सीखना चाहिए सबों से, किन्तु अपने वैशिष्ट्य को बचाते हुए अपने ही भावों से, अपनी ही प्रकृति से । ईस्वर अंस जीव अबिनासी । चेतन अमल सहज सुखरासी । सबके भीतर ईश्वर का अंश है, सबके भीतर क्षमता है, गुण है, वह कुछ कर सकता है । मेरे गुरुजी आदरणीय डा0 कृपाशंकर ओझा(सेवानिवृत्त प्राचार्य, मधेपुरा विश्वविद्यालय) का कहना है, "किसी एक के ही पथ पर चलना, किसी एक के ही विचारों के अनुसार चलना अनुकरण है, किन्तु सबकी अच्छी और सार बातों को लेकर अपना कुछ देना शोध है ।"
अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम् ।
अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः ॥
ऐसा कोई अक्षर नहीं जो महत्वहीन हो, ऐसी कोई जड़ नहीं जिसका कोई औषधीय उपयोग न हो । ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसमें कोई योग्यता न हो, किन्तु इनके गुणों का योजक (उपयोगिता प्रकट करने वाला) व्यक्ति दुर्लभ है ।
गिरीन्द्र मोहन झा

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