आजादी का मतलब तब से अब तक-सुरेश कुमार गौरव - Teachers of Bihar

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Thursday 15 August 2024

आजादी का मतलब तब से अब तक-सुरेश कुमार गौरव

 


                                           ✍️सुरेश कुमार गौरव 


इतिहास पढ़कर पता चलता है कि हमारा देश भारत लगभग दो सौ साल परतंत्र रहकर फिर देश के लाखों लोगों की कुर्बानियों के बाद आजाद हुआ। आजादी से लेकर आज तक भारत देश में कई उतार-चढाव हुए फिर भी हर प्रकार की परिस्थितियों में हमारे पूर्वजों और बुजुर्गो, युवाओं महिलाओं सभी ने अपने देश के गौरव को आगे बढ़ाया है। राजनैतिक पटल पर विश्व की नजरों में भारत देश ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है।


स्वतंत्रता दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है, इसी दिन हमारा हिन्दुस्तान १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से स्वतंत्र हुआ था। इसी दिन हमारे वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानिओं ने हमें अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। हमें आजादी दिलाने के लिए न जाने कितने वीर-वीरांगनाओं ने अंग्रेजों की अमानवीय यातनाओं व अत्याचारों का सामना किया और देश की आजादी के लिए अपनी कुर्बानियां दीं। यह दिन ऐसे ही वीर-वीरांगनाओं को याद करने व उन्हें नमन करने का दिन भी है।


इस दिन हर भारतवासी अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करता है, जिनके खून पसीने और संघर्ष से हमें आजादी मिली। स्वतंत्रता के मायने हर नागरिक के लिए अलग-अलग होते हैं, कोई व्यक्ति स्वतंत्रता को अपने लिए खुली छूट मानता है। संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जिसमे वो अपनी मर्जी का कुछ भी कर सके, चाहे वो गलत हो या सही हो। लेकिन स्वतंत्रता सिर्फ अच्छी चीजों के लिए होती है। बुरी चीजों के लिए स्वतंत्रता अभिशाप बन जाती है। इसलिए स्वतंत्रता के मायने तभी हैं जब स्वतंत्रता में मर्यादा, चरित्र और समर्पण का भाव हो। 


अगर स्वतंत्रता में मर्यादा, चरित्र और समर्पण ही नहीं है तो यह आजादी नहीं बल्कि एक प्रकार की व्यक्तिगत स्वतंत्रता मनमानी की तरह हो जाती है। जिस पर कोई भी लगाम नहीं होती है। स्वतंत्रता दिवस के दिन देश के युवा तिरंगे फहरा लहरा कर आजादी का जश्न मनाते हैं। हमें तीन रंगों और बीच के चक्र की उपयोगिता और महत्व के बारे में भी पूरा पता रहना चाहिए।हमें आजादी मिली, उसका हमने क्या सदुपयोग किया। लोग पेड़ों को काट रहे हैं। प्रकृति और पर्यावरण को नष्ट कर रहे हैं। वीर वीरांगनाओं के बलिदानों को भूलने लगे हैं। बालिका भ्रूण की हत्या हो रही है। सड़कों पर महिलाओं पर अत्याचार होते हैं। बच्चों और बुजुर्गों की हत्या कर दी जाती है।यह दानवी कुकृत्य नहीं तो क्या है? शराब पीकर लोग देश में सड़क हादसों को अंजाम देते हैं, और दूसरे बेगुनाह लोगों को मार देते हैं। ये कैसी आजादी है? जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का हनन करते दिख रहे हैं।एक ओर सामान, आर्थिक राजनैतिक, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में हम आगे बढ़ रहे हैं वहीं दूसरी ओर देश में धर्म और जाति के नाम पर बांटने की कोशिशें भी हो रही है।


भारत को स्वतंत्र हुए ७७-७८ साल हो गए हों, लेकिन आज भी हमारे आजाद भारत देश में बाल अधिकारों का हनन हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाने की उम्र में बाल मजदूरी करते दिख जाते हैं। आज बाल मजदूरी समाज पर कलंक है। इसके खात्मे के लिए सरकारों और समाज को मिलकर काम करना होगा।आज भी करोड़ों बच्चे बाल श्रम से किसी न किसी रुप में जुड़े हुए हैं। बाल मजदूरी प्रतिबंधित है परंतु  इस पर पूर्णतया रोक लगानी चाहिए। बच्चों के उत्थान और उनके अधिकारों के लिए अनेक योजनाओं का प्रारंभ किया जाना चाहिए। जिससे बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दिखे और शिक्षा का अधिकार भी सभी बच्चों के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए।


गरीबी दूर करने वाले सभी व्यवहारिक उपाय उपयोग में लाए जाने चाहिए। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुँच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिये समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे। आज देश के प्रत्येक नागरिक को बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की जरूरत है। देश के किसी भी हिस्से में कोई भी बच्चा बाल श्रमिक दिखे, तो देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे और इस दिशा में उचित कार्यवाही करें साथ ही साथ उनके अधिकार दिलाने के लिये प्रयास करें। देश का हर बच्चा कन्हैया का स्वरूप है, इसलिए कन्हैया के प्रतिरूप से बालश्रम कराना पाप है। इस पाप का भागीदार न बनकर देश के हर नागरिक को देश के नन्हे-मुन्नों को शिक्षा का अधिकार दिलाना चाहिए जिससे कि हर बच्चा बड़ा होकर देश का नाम विश्व स्तर पर रोशन कर सके। आज हमारे जनप्रतिनिधि आम जनता के प्रतिनिधि न होकर सिर्फ और सिर्फ अपने और अपने लोगों के प्रतिनिधि बनकर खड़े होते हैं, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। एक स्वतंत्र गणतांत्रिक देश में जनप्रतिनिधियों से देश का कोई भी नागरिक ऐसी अपेक्षा नहीं करता है। हर जनप्रतिनिधि का फर्ज है कि वह अपने और अपने लोगों का प्रतिनिधि बनने की बजाय अपने क्षेत्र की सम्पूर्ण जनता के प्रतिनिधि बनें और देश के सभी जनप्रतिनिधियों को न्यायप्रिय शासन करना चाहिए, जिसमें समाज के हर तबके के लिए स्थान हो तभी हमारी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रह पाएगी।  

         

आज भी देश महिलाओं को पूर्णतः स्वतंत्रता नहीं है, आज भी देश में महिलाओं को बाहर अपनी मर्जी से काम करने से रोका जाता है। महिलाओं पर तमाम तरह की बंदिशें परिवार और समाज द्वारा थोपी जाती हैं जो कि संविधान द्वारा प्रदत्त महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों का हनन करती है। आज भी देश में महिलाओं के मौलिक अधिकार चाहे समानता का अधिकार हो, चाहे स्वतंत्रता का अधिकार हो, चाहे धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार हो, चाहे शिक्षा और संस्कृति सम्बन्धी अधिकार हो; समाज द्वारा नारियों के हर अधिकार को छीना जाता है या उस पर बंदिशे लगायी जाती हैं, जोकि एक स्वतंत्र देश के नवनिर्माण के लिए शुभ संकेत नहीं है। कोई भी देश तब अच्छे से निर्मित होता है जब उसके नागरिक चाहे महिला हो या पुरुष हो उस देश के कानून और संविधान को पूर्ण रूप से सम्मान करे और उसका कड़ाई से पालन करे।


आज बेशक भारत विश्व की उभरती हुई शक्ति है। विश्व शक्ति में सातवां और आर्थिक शक्ति में पांचवें स्थान पर है।लेकिन आज का भारत सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण में उलझा हुआ प्रतीत होता है। देश काफी पिछड़ा भी हुआ है। देश में आज भी कन्या के जन्म को जन्म को दुर्भाग्य माना जाता है और आज भी भारत के रूढ़िवादी समाज में हजारों कन्याओं की भ्रूण में हत्या की जाती है। सड़कों पर महिलाओं पर अत्याचार होते हैं। सरेआम महिलाओं से छेड़छाड़ और बलात्कार के किस्से भारत देश में आम बात हैं। एक तरफ जहां हमारे देश का नाम ऊंचा कर रहे हैं। वहीं कई ऐसे युवा भी हैं जो देश को शर्मसार कर रहे हैं। दिनदहाड़े युवतियों का अपहरण, छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न कर देश का सिर नीचा कर रहे हैं। हमें पैदा होते ही महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाता है पर आज भी विकृत मानसिकता के कई युवा घर से बाहर निकलते ही महिलाओं की इज्जत को तार-तार करने से नहीं चूकते। इस सबके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार शिक्षा का अभाव है।


शिक्षा का अधिकार हमें भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में अनुच्छेद २९-३० के अन्तर्गत दिया गया है। लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में नारी शिक्षा को सही नहीं माना जाता है। नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के साथ भारतीय समाज को भी आगे आना होगा। तभी देश में अशिक्षा जैसे अँधेरे में शिक्षा रूपी दीपक को जलाकर उजाला किया जा सकता है। जब नारी को असल में शिक्षा का अधिकार मिलेगा तभी नारी इस देश में स्वतंत्र होगी। गीता में कहा गया है कि ‘‘सा विद्या या विमुक्तये।’’ अर्थात विद्या ही हमें समस्त बंधनों से मुक्ति दिलाती है, इसलिए राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए बिना भेदभाव के सभी को शिक्षा का अधिकार दिया जाना चाहिए। आज लड़कियां हर क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रही है, अगर लड़कियों को उनकी प्रतिभा के अनुसार अवसर दियें जायें तो ये तादात और बढ़ सकती है। देश में जरूरत है लड़कियों को अवसर देने की, जिससे कि वो अपने अवसर को सफलता में बदल सकें।


भारत देश बेशक एक स्वतंत्र गणराज्य सालों पहले बन गया हो। लेकिन इतने सालों बाद आज भी देश में धर्म, जाति और अमीरी गरीबी के आधार पर भेदभाव आम बात है। लोग आज भी जाति के आधार पर ऊंच-नीच की भावना रखते हैं। आज भी लोगों में सामंतवादी विचारधारा घर करी हुयी है और कुछ अमीर लोग आज भी समझते हैं कि अच्छे कपड़े पहनना, अच्छे घर में रहना, अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और आर्थिक विकास पर सिर्फ उनका ही जन्मसिद्ध अधिकार है। इसके लिए जरूरत है कि देश में संविधान द्वारा प्रदत्त शिक्षा के अधिकार के जरिए लोगों में जागरूकता लायी जाये। जिससे कि देश में धर्म, जाति, अमीरी-गरीबी और लिंग के आधार पर भेदभाव न हो सके।


स्वतंत्रता दिवस प्रसन्नता और गौरव का दिवस है। इस दिन सभी भारतीय नागरिक मिलकर अपने लोकतंत्र की उपलब्धियों का उत्सव मनाते हैं और एक शांतिपूर्ण, सौहार्दपूर्ण एवं प्रगतिशील भारत के निर्माण में स्वयं को समर्पित करने का संकल्प लेना चाहिए। क्योंकि भारत देश सदियों से अपने त्याग, बलिदान, भक्ति, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी और श्रमशीलता के लिए जाना जाता है। तभी सारी दुनिया ये जानती और मानती है कि भारत भूमि जैसी और कोई भूमि नहीं, आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है। जिसका विश्व में एक अहम स्थान है। आज का दिन अपने वीर जवानों को भी नमन करने का दिन है जोकि हर तरह के हालातों में सीमा पर रहकर सभी भारतीय नागरिकों को सुरक्षित और स्वतंत्र महसूस कराते हैं। साथ-साथ उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करने का भी दिन हैं, जिन्होंने हमारे देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत के प्रत्येक नागरिक को भारतीय संविधान और गणतंत्र के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहरानी चाहिए और देश के समक्ष आने वाली चुनौतियों का मिलकर सामूहिक रूप से सामना करने का प्रण लेना चाहिए। साथ-साथ देश में शिक्षा, समानता, सद्भाव, पारदर्शिता को बढ़ावा देने का संकल्प लेना चाहिए। जिससे कि देश प्रगति के पथ पर और तेजी से आगे बढ़ सके।


आजादी सही मायने में अभी तक नहीं मिली प्रतीत होती है। हमारा देश भले ही पंथनिरपेक्ष हो लेकिन धर्म और जाति की संकीर्णताओं में आज भी जकड़ा हुआ है। देश की साक्षरता अभी भी सौ फीसदी से काफी पीछे है। महिला सुरक्षा,सामान्य अपराधिक मामले नित्य पढ़ते जा रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि भी बाधक बन रही है। राजनीति कारणों से देश दिग्भ्रमित दृश्य प्रस्तुत करते दिखता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इतर अभी भी अंधविश्वास और पाखंड को बढ़ावा दिया जा रहा है। भ्रष्टाचार भी चरम पर है। अत्यंत जनसंख्या लगभग डेढ़ सौ करोड़ आंकड़ा कुछ समय बाद छू लेगा, के चलते बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में निगम, कंपनियां और विभागों में भी कमी की जा रही है। ऐसे में हमारे वर्तमान भारत में  चुनौतियां भी बहुत हैं। फिर भी हम विश्व की नजरों में सम्मान पाते दिखते हैं यह हम सब भारतीयों के लिए गौरव का विषय है।

अंततः हमें देश के नव निर्माण में बिना भेदभाव किए एक दूसरे से कदम से कदम मिलाकर देश को आगे बढ़ाने में लगे जाने चाहिए। देश सबसे उपर है। देश‌ संविधान से चलता है। देश के हर नागरिकों को संविधान के बारे में जानकारी होनी चाहिए। अपने अधिकार और कर्तव्यों के बारे में तो पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। संकीर्ण भावनाओं का परित्याग कर उच्च विचारों और आदर्शों को अपनाना होगा। शिशु- स्वास्थ्य, कृषि सहित सभी मूलभूत सुविधाओं को लागू कर देश को आगे बढ़ाने में संसद और कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को अपने अपने स्तर से कार्य कर मानवीय हितों का ख्याल रखते हुए देश को संवैधानिक ढांचे से ही चलाना होगा।


आजादी के बाद हमारे देश के प्रजातांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाते हुए कुछ प्रतीकों को भी जानना जरूरी हो जाता है। जैसे  हमारा राष्ट्र गान जन-गण-मन है। राष्ट्रगीत वंदे मातरम है। राष्ट्रीय झंडा तिरंगा है। राष्ट्रीय पुस्तक हमारा भारत का संविधान हैं। हमारी संविधान सभा ई भारतीयों को पंथनिरपेक्ष होना सीखलाता है। इसलिए हमारा राष्ट्रीय धर्म धर्मनिरपेक्षता है। आईए हम सब मिलकर भारत को एक मजबूत लोकतंत्र में परिणत करें और सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक और वैज्ञानिक अपनाते हुए भारत को आगे बढ़ाने में लगे रहें। जय हिन्द।



आलेख- सुरेश कुमार गौरव,

उ.म. वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)

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