भारत देश महान है, पावन जिसका नाम।
ज्ञान-चक्षु से देखिए, निर्मल है अभिराम।।
गंगा, नदियाँ, उच्च गिरि, यही धरा की शान,
प्रगति कार्य होते रहें, यही सुखद अविराम।।
मेरा देश महान है तथा सचमुच में, यह मेरा अभिमान है। हमें अपने देश पर गर्व है क्योंकि हमारे देश का नाम भारत है। 'भारत' शब्द भा+ रत से मिलकर बना है। यहाँ 'भा' का अर्थ ज्ञान की खोज तथा 'रत' का अर्थ लीन या लगा हुआ है। कहने का तात्पर्य है कि हमारा देश भारत आरंभ से ही ज्ञान की खोज में लीन है। साथ ही हमने दूसरों को ज्ञान दिया भी है। हमें अपने देश तथा अपनी संस्कृति पर अभिमान है। ऐतिहासिक मान्यताओं व पुराणों के अनुसार राजा भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा है। हम अपने देश की महानता तथा उसके अभिमान की पुष्टि निम्नलिखित कारणों से कर सकते हैं:-
* विश्व का पहला धर्मग्रंथ ऋग्वेद यहीं पर रचा गया।
* विश्व की प्रथम भाषा संस्कृत तथा प्रथम लिपि ब्राह्मी का जन्म
भारत में ही हुआ।
* हमारे देश ने ही दूसरे देशों को शून्य का ज्ञान दिया है। यानि शून्य का आविष्कार भारत की देन है।
* लोकतंत्र की अवधारणा भारत की देन है।
* हमारा देश शांतिप्रिय देश है। दूसरे देशों में शांति कायम रखने में इसने सहयोग स्थापित किया है।
* भारत के प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला तथा प्रथम योग विश्वविद्यालय की स्थापना भारत में ही हुईं।
* गंगा- जमुनी संस्कृति भारत की एक अनूठी संस्कृति है।
* यहाँ के लोग परस्पर प्रेम और सद्भाव से रहते हैं। 'परोपकार' तथा 'वसुधैव कुटुम्बकम्' यहाँ का मूल मंत्र है।
* हमें अपने देश के वैज्ञानिकों जैसे- सी. वी. रमन, डॉ. जगदीश चंद्र बोस तथा ए. पी. जे. अब्दुल कलाम पर गर्व है तथा भारतीय किसानों पर गर्व है जिनकी मेहनत से हम फसल अपने घर लाते हैं।
* हमें अपने देश के महापुरुषों एवं कवियों जैसे- तुलसीदास, अशोक, स्वामी विवेकानंद, रामधारी सिंह 'दिनकर' पर गर्व है।
* हमें अपने देश के सैनिकों पर गर्व है जो अपने देश की सतत् सुरक्षा करते हैं तथा उन वीर जवानों पर भी गर्व है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।
* हमें अपने देश के चित्रकारों, गायकों, कलाकारों तथा खिलाड़ियों पर गर्व है जो देश का नाम दुनिया में रौशन करते हैं।
* हमें अपने देश की नदियों, पर्वतों, वनस्पतियों तथा पशु पक्षियों पर गर्व है।
* हमें अपने देश की कला, संस्कृति व पर्व-त्योहारों पर गर्व है।
* हमें अपने राष्ट्रीय पर्वों पर गर्व है।
इस तरह हमारा देश अत्यंत ही पावन और प्यारा है। हमें अपनी मातृभूमि से प्रेम रखना चाहिए। कहा भी गया है: 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।' अर्थात् अपनी माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। यदि हमें अपने देश से प्यार नहीं, तो देश पर अभिमान करने की बात बेईमानी होगी। प्रख्यात कवि मैथिलीशरण 'गुप्त' ने ठीक ही कहा है - " जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं। वह हृदय नहीं, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।" इस तरह हमें अपने देश के प्रति निश्छल व निर्मल मन से अनुराग रखना चाहिए। अंत में, मेरी कुछ पंक्तियाँ ध्यातव्य हैं:
ज्ञान खोज में नित्य लगा है, अपना भारत।
शांति मार्ग में नित्य पगा है, अपना भारत।
राम-कृष्ण की धरती है यह तीर्थ पावनी,
दुनिया भर का बना सगा है, अपना भारत।
देव कांत मिश्र 'दिव्य' मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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