स्वतंत्रता, स्वाधीनता और मुक्ति - गिरिंद्र मोहन झा - Teachers of Bihar

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Wednesday 14 August 2024

स्वतंत्रता, स्वाधीनता और मुक्ति - गिरिंद्र मोहन झा

स्वतंत्र रहना आपका अधिकार है। स्व का अर्थ अपना और तंत्र का अर्थ शासन और system होता है । अर्थात् स्वयं पर शासन, अपने ही ढंग से चलना। आप यदि अपने ढंग से चलते हैं, तो निस्संदेह आप बहुत कुछ पाएँगे। स्वतंत्रता अर्थात् अपने अनुसार, अपने ढंग से चलना हर कोई चाहता है। तंत्र का एक अर्थ शासन भी होता है। गलती करने पर, हर परिस्थिति में गलत कदम उठाने के समय स्वयं पर शासन करना होता है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार, 'आत्मा ही शासन करती है, यह जड़ पदार्थ क्या शासन करेगा? 'साथ ही, स्वयं को समय-समय पर शिक्षित करना आवश्यक होता है। संस्कृत के शास् धातु का अर्थ शिक्षा देना होता है। स्वतंत्रता का अर्थ स्वयं पर शासन, स्वयं को शिक्षित करना, स्वयं के नियमों और ढंग के अनुसार सही रास्ते पर चलना होता है। धारावाहिक महाभारत में कर्ण का एक संवाद है, 'प्रत्येक व्यक्ति को अपने नियमों के अनुसार चलने का अधिकार है। महापुरुषगण अपने बनाये हुए नियमों का भी कठोरतापूर्वक पालन करते थे। यदि व्यक्ति, संस्थान आदि अपने भी बनाये हुए सिस्टम, नियमों का पालन ठीक ढंग से नहीं करेगा, वह चरमरा सकता है। वही उसका apply अच्छे ढंग और कठोरतापूर्वक होगा, तो वह उसकी प्रगति, उत्थान और सफलता के मार्ग को अधिक प्रशस्त करता है- नान्य पन्था: विद्यतेSनाय।

स्वाधीनता सुख है, पराधीनता दैन्य है । स्वाधीन अर्थात् स्व अधीन। अपने मन को अपने अधीन रखना। अपने मन को अपने वश में रखना, बुद्धि के द्वारा उसे शुभ संकल्पों की ओर प्रवृत्त करना । आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, 'सुख और दुख मन के अधीन है। जिसका मन स्ववश है, वह सुखी है। जिसका मन परवश है, वह दुखी है।' स्वाधीनता आवश्यक है, किन्तु किसी महापुरुष का भी कायरतापूर्वक अनुकरण करने से हमारी स्वाधीनता दांव पर लग जाती है । सीखना अवश्य चाहिए सबसे किन्तु अपने ही भावों से, अपनी ही प्रकृति से। कृपाशंकर ओझा सर का कहना है, 'किसी एक के विचार के अनुसार चलना अनुकरण है, किन्तु सबका सार भाग लेकर अपना कुछ देना शोध है।'

मुक्ति आवश्यक होता है किन्तु कभी-कभी हमें बंधन ही हमें मनुष्य बनाने का कार्य करता है- अपने उत्तरदायित्व का बंधन, अपने कर्त्तव्यों का बन्धन, अपने संस्कारों- निज कुल आचार का बन्धन, उत्तम विचारों, मर्यादा का बन्धन, आत्म-अनुशासन का बन्धन आदि।



गिरीन्द्र मोहन झा

+2 शिक्षक, भागीरथ उच्च वि.

चैनपुर, पड़री, सहरसा

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