"सबसे मजबूत प्रजाति या सबसे बुद्धिमान प्रजाति जीवित नहीं रहती, बल्कि परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील प्रजाति जीवित रहती है" - चार्ल्स डार्विन
प्रत्येक वस्तु या क्रिया में परिवर्तन सृष्टि का शाश्वत नियम है। परिवर्तन से सृष्टि में नवीनता के साथ विकास के चरण निरंतर आगे बढ़ते हैं। परिवर्तन एक जीवित गतिशील और आवश्यक क्रिया है जो प्रकृति तक ही सीमित नहीं है बल्कि समाज को वर्तमान व्यवस्था के अनुकूल बनाते हैऔर यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में होते हैं। इन्ही परिवर्तन से व्यक्ति और समाज को स्फूर्ति, चेतना, ऊर्जा एवं नवीनता की उपलब्धि होती है।
भगवद्गीता के नौवें अध्याय के दसवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण प्रकृति के नियमों और उनके संचालन के बारे में अर्जुन को बताते हुए कहते है कि - विश्व में सतत परिवर्तन होता रहता है जो उनकी अध्यक्षता में प्रकृति द्वारा किए जाते है।
कहा गया है कि - Change is variation from a previous state or mode of existence.
शिक्षा अपने आप में एक बहुस्तरीय शब्द है जिसमें अपेक्षित परिवर्तन से नवीनता, चेतना, नई स्फूर्ति आदि आने के साथ प्रगति पथ पर अग्रसर होती है। वर्तमान युग में शिक्षा प्रणाली में नई वैज्ञानिक विधियों, अनुसंधानों तथा तकनीकी उपकरणों का प्रयोग के कारण शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में असाधारण रूप से परिवर्तन संभव हो सका है। शिक्षा को सरल, उपयोगी, व्यावहारिक, रुचिकर, रचनात्मक, क्रियात्मक एवं प्रासंगिक बनाना नवाचार कहलाता है।
आधुनिक युग में शिक्षा हेतु छात्र छात्राओं के निर्माण पर नही बल्कि उनके आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षण प्रक्रिया के निर्धारण पर बल दिया जा रहा है ताकि उनमें सकारात्मक विकास, नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों के साथ उनके क्षमता का नैसर्गिक विकास संभव हो सके। शिक्षक नवाचार के माध्यम से नवीन शिक्षण विधियों एवं पढ़ाने के तरीकों में परिवर्तन करके छात्र छात्राओं को उनके कौशल एवं प्रतिभा से अवगत करा सकते है। साथ ही साथ शिक्षक द्वारा शिक्षा में नवाचार के प्रयोग से परंपरागत शिक्षा पद्धति को वर्तमान परिवेश के अनुरूप परिवर्तित किया जा सकता है ।
नवाचार( Innovation) दो शब्दों "नव+आचार" से मिलकर बना है। यहां नव का अर्थ नया या नवीन तथा आचार का आशय परिवर्तन से है।
इस प्रकार नवाचार वह परिवर्तन है जो पूर्व में प्रचलित विधियों एवं पदार्थों इत्यादि में नवीनता का संचार करें। नवाचार का अर्थ केवल नई विधियों, प्रविधियों एवं तकनीकों के विकास से नही होता बल्कि प्रक्रिया या सेवा में थोड़ा या कुछ बड़ा परिवर्तन अथवा पूर्व की कार्य पद्धति या विधियों के क्रम में परिवर्तन को भी नवाचार में शामिल किया जा सकता है ।
अतएव परिवर्तन युक्त वे साधन एवं माध्यम जिन्होंने व्यक्ति के व्यवहार में नवीनता युक्त तथ्यों, मान्यताओं, विचारों का बीजारोपण करके व्यक्ति को नवीन प्रवृतियों की ओर उन्ममुख किया नवाचार कहलाता है।
प्रो. उदय पारीक और टीपी राव ने नवाचार को बड़ी सरलता से परिभाषित किया है - किसी उपयोगी कार्य के लिए किसी व्यक्ति या निकाय के द्वारा किया गया विचार अथवा अभ्यास नवाचार कहलाता है। यह सत्य है कि नई तकनीकी, नए कार्य, नई सेवा, नया उत्पाद आदि नवाचार को अर्थतंत्र का सारथी माना जाता है।
नवाचार शैक्षिक व्यवस्था और कार्यप्रणाली को जीवंत बनाए रखने के लिए आवश्यक है। ट्रायटेन के अनुसार- शैक्षिक नवाचारों का उद्भव स्वतः नहीं होता बल्कि उन्हें खोलना पड़ता है तथा सुनियोजित तरीके से इन्हे प्रयोग में लाना होता है ताकि परिवर्तित परिवेश में गति मिल सके तथा परिवर्तन के साथ हम गहरा तारतम्य बनाए रख सके। शैक्षिक नवाचार शिक्षा की विकासोन्मुख रहने वाली प्रक्रिया को प्रदर्शित करने वाली एक नवीन अवधारणा है जिसका मुख्य उद्देश्य शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी एवं रूचिपूर्ण बनाने से है। यह सत्य है कि शिक्षा प्रणाली में नवाचार शिक्षकों पर निर्भर करता है। शिक्षक शिक्षा प्रणाली में नवाचार के प्रयोग द्वारा परंपरागत शिक्षा प्रणाली को वर्तमान परिवेश के अनुरूप परिवर्तित कर अर्थात नवीन शिक्षण विधियों/पढ़ाने के तरीकों में परिवर्तन करके छात्र छात्राओं को उनके कौशल एवं प्रतिभा से अवगत करा सकते है। शिक्षा को सुदृढ़ बनाने हेतु सर्वप्रथम शिक्षकों को नवीन ज्ञान, कौशल, दक्षताओं, शिक्षण विधियों, तकनीकों, अनुसंधान एवं नवाचार के ज्ञान एवं इनके व्यवहारिक प्रयोग में पारंगत होना आवश्यक है lआज वीडियो, इंटरनेट, ब्रॉडकास्ट, यूट्यूब, फेसबुक, शैक्षणिक ऐप आदि का समय है। छात्र छात्राएं इस इंटरेक्टिव मीडिया के माध्यम से कोई भी आइडिया या प्रश्नों के हल आसानीसे सीख जाते है। अतः शिक्षकों को वर्तमान परिस्थितियों में छात्र छात्राओं के साथ बेहतर शैक्षणिक संबंध बनाने के लिए शिक्षकों को स्वयं को नए तरीकों से अवगत होने/कराने की आवश्यकता है। शिक्षक जितना अधिक क्रियाशील, प्रभावशाली, साधन संपन्न, प्रतिबद्ध और दक्ष होगा शिक्षा एवं शिक्षण विधि भी उतनी ही प्रभावी, रूचिपूर्ण एवं उपयोगी होगी। इसी को ध्यान में रखते हुए यशपाल समिति की सिफारिशों के आधार पर शिक्षकों के नवाचार को प्राथमिकता दी गई है। वर्तमान समय में शिक्षा प्रणाली निःशुल्क होने के साथ वैज्ञानिक विधियों, उपकरणों एवं मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के प्रयोग द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को बालकेंद्रित एवं गतिविधि आधारित बनाने पर बल देती है। अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1996) में शिक्षा के चार स्तंभ - Learning to know, Learnig to live together , Learning to be, Learning to do द्वारा छात्र छात्राओं को वातावरण एवं परिस्थितियों से संबद्ध कर शिक्षण पर बल देने की बात कही गई है। इस हेतु कुछ प्रचलित विधियों यथा - खेल खेल में शिक्षा, प्रोजेक्टर विधि, प्रयोग विधि, क्रिया विधि, अनुसंधान विधि, भ्रमण विधि, आदि को इस प्रकार समायोजित तथा तार्किक रूप से प्रयोग किया जा सकता है जिससे छात्र छात्राएं वातावरण से संबंधित होकर स्वयं अनुभव कर सके। उक्त हेतु शिक्षक को ही उतरदायी माना गया है जो शैक्षिक क्रियाकलापों में नवाचार प्रस्तुत कर अपनी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल, सुगम एवं प्रभावशाली बना सकता है। शिक्षक नवाचार के माध्यम से अपने शिक्षण कार्य की प्रभावशीलता को सक्रिय बना सकते है ताकि छात्र छात्राओं के बहुमुखी विकास का अवसर प्राप्त हो सके। शिक्षक शिक्षा में छात्राध्यापक सामुदायिक सहभागिता, अभिनव, शिक्षण तकनीकी, खेल खेल में शिक्षा, सरल अंग्रेजी अधिगम, बाल संसद, कला शिल्प, टीएलएम , पीबीएल, कांसेप्ट मैपिंग, चित्रकथा आदि नवाचारी माध्यमों का प्रयोग अपनी भावी जीवन में कर शिक्षण में गुणात्मक उन्न
यन कर सकते है जिससे व्यक्ति, समाज, राष्ट्र के प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो सकेंगे।
शिक्षकों के नवाचारी शिक्षण प्रणाली से ---
1.शिक्षक छात्र छात्राओं को बोझिल, उबाऊ तथा अरुचिकर शिक्षण से हटाकर आनंदमयी व रुचिकर शिक्षा देने में सक्षम हो सकेंगे जिससे उनका सर्वांगीण विकास हो पाएगा।
2. शिक्षक स्वयं सृजनशील एवं अध्ययनशील बन पाएंगे ।
3. शिक्षक एवं छात्र छात्राएं सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की अवधारणाओं को समझ सकेंगे।
4. शिक्षक एवं छात्र छात्राओं में नवीनतम वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो सकेगा।
5. धन व्यय, श्रम की बचत होने के साथ अधिगम प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है।
6. छात्र छात्राओं मे अभिव्यक्ति का विकास, रचनात्मक विकास, आत्म विश्वास एवं निर्णय लेने की क्षमता का विकास संभव हो सकेगा।
अतः सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक एवं शैक्षणिक दृष्टिकोण से नवाचार शिक्षा शिक्षकों की जरूरत है जिसकी महत्ता स्वीकार की जाती है।
नसीम अख्तर
उच्च माध्यमिक विद्यालय झौवाँ दिघवारा सारण
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