शिक्षक का कर्तव्य - गिरीन्द्र मोहन झा - Teachers of Bihar

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Friday 6 September 2024

शिक्षक का कर्तव्य - गिरीन्द्र मोहन झा

 शिक्षक का कर्तव्य


"TEACHER IS NOT ONE WHO ONLY TEACHES, TEACHER IS ONE WHO INSPIRES YOU TO LEARN. "

एक शिक्षक के तीन मुख्य गुण होते हैं-

विषय-ज्ञान की गम्भीरता(Content Knowledge), सम्प्रेषण कौशल (Communication skill) और शिक्षण-शास्त्र (Pedaagogy).

मुनिवर भारद्वाज के पुत्र द्रोणाचार्य जी से उनके एक शिष्य ने प्रश्न किया कि आप तो हम सबके गुरु हैं। फिर अर्जुन ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर क्यों? इस पर आचार्य ने कहा कि मैंने तो सबको एक ही सी शिक्षा दी थी। तुम सब मुझ ही तक रह गये। अर्जुन निरंतर अभ्यास करता रहा और अभ्यास के बल पर वह आगे निकल गया । 

पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा है, 'हे शिक्षक ! यदि तुम दौड़ोगे, तो विद्यार्थी चलेगा। यदि तुम चलोगे, तो विद्यार्थी खड़ा रहेगा। यदि तुम खड़े रहोगे, तो विद्यार्थी बैठा रहेगा। यदि तुम बैठ जाओगे, तो विद्यार्थी सो जाएगा।यदि तुम सो जाओगे, तो विद्यार्थी मर जाएगा।' शिक्षण-कार्य शिक्षकों को कक्षा में खड़ा होकर ही करना चाहिए। सुपर-30, पटना के संस्थापक पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री अभयानंद ने कहा है, "My definition of a good teacher is one who doesn't give answers but keeps asking the right questions, thereby helping the students to get to their own answers."

("मेरे अनुसार अच्छे शिक्षक वही हैं जो उत्तर नहीं देते हों और सही प्रश्न अनवरत पूछते हों ताकि छात्र-छात्राओं को आसानी या मदद महसूस हो अपने शब्दों में उत्तर देने में।") ऐसा करने से विद्यार्थी खुद से सोचने लगते हैं और पढ़ाई के वक़्त सतर्क रहते हैं और विषय-वस्तु को अच्छे से समझ पाते हैं।

मेरे एक आदरणीय प्राध्यापक डॉ. के. एस. ओझा सर ने कहा है कि हर आकृति बिंदु से ही बनती है। जैसे, वर्ग, वृत्त, आयत, त्रिभुज आदि। हर कोई नीचे से ही ऊपर जाता है।


मेरे एक आदरणीय प्राध्यापक डॉ. रतन मल्लिक के अनुसार, 'शिक्षक वह है जो मस्तिष्क के बन्द दरवाजे को खोल दे।' इसके आधार पर विद्यार्थी को पता चल जाए, कि Thermodynamics क्या है? तो उसके बाद वह उस पर इच्छित जानकारी प्राप्त कर सकता है।

Prof Rechard Feynman ने कहा है- Students can't learn the way you teach? Teach them the way they learn.


हे शिक्षक! यदि विद्यार्थी आपके पढ़ाने के तरीका से नहीं सीख पा रहा है, तो आप उनके सीखने के तरीका से उन्हें पढ़ाईए।

कहा जाता है, "A Master Speaker must first be a Master Listener, and a Master Teacher must first be a Master Learner."

एक शिक्षक को समदर्शी होना चाहिए, किन्तु उसे back benchers पर अधिक ध्यान देना चाहिए । 

सर्वविदित है कि आज की शिक्षा बालकेंद्रित हो गयी है। एक शिक्षक को सदैव syllabus और परीक्षा प्रश्न को ध्यान में रखते हुए ही अध्यापन करना चाहिए। उन्हें विषय-वस्तु को प्रभावी ढंग से समझाने का प्रयास करना चाहिए। छात्रों को भी शिक्षक के द्वारा पढ़ाई गई विषय-वस्तुओं का उसी दिन घर पर अभ्यास करना चाहिए। इससे वह बहुस्थायी होता है । 

शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि वह छात्रों/विद्यार्थियों को उनके स्तर से ऊपर उठाने का ही यथासम्भव प्रयत्न करे। उन्हें कभी भी उनके स्तरों से नीचे न ले जाएँ। वे विद्यार्थियों के स्तरों को उनके प्रश्नों से जानने का प्रयत्न करे, न कि उनके उत्तरों से।

शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि शिक्षण के साथ-साथ वह अपना अध्ययन भी जारी रखें। विद्यार्थियों को उनके विषय-वस्तु के अनुसार ही आधुनिक और व्यवहारिक चीजों से भी update कराएँ । कुछ सामान्य जानकारी भी देते रहें। रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में, "एक शिक्षक वास्तव में तभी शिक्षण कर सकता है, जब वह स्वयं अध्ययनशील हो, एक जलता हुआ दीपक ही दूसरे को प्रकाशित कर सकता है।" डॉ एस. राधाकृष्णन के शब्दों में, "एक शिक्षक आजीवन विद्यार्थी बना रहता है।" शिक्षक, वकील और डॉक्टर का अध्ययनशील होना परम आवश्यक है।

शिक्षक का यह कर्त्तव्य है कि उनके छात्र वैज्ञानिक प्रतिभासम्पन्न, जिज्ञासु और सार्थक प्रश्न पूछने का आदी हो।उनका कर्त्तव्य है कि वे अपने विद्यार्थियों की प्रतिभा व गुण को परखकर बता दे कि अमुक क्षेत्र में आगे बढ़ने से उसका भविष्य अच्छा रहेगा। विद्यार्थियों में सहस्र दोष क्यों न हो, वह फिर भी उनके गुणों और प्रतिभा को खोजकर उन्हें एक vision प्रदान करे, इससे वह(विद्यार्थी) गुण को लेकर आगे बढ़ेगा, उनके दोष स्वत: छूटते चले जाएँगे। श्रद्धा नष्ट करने का प्रयत्न कभी न करें। 'तुममें ये ये ये गुण है, बस इस एक कमी को सुधार लो, तो बहुत आगे बढ़ो।' ऐसे वाक्य छात्रों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। निंदा और अतिशय प्रशंसा दोनों ही घातक है।


शिक्षक नये नये जानकारियों से सदा अवगत रहें। वे विद्यार्थियों को पढ़ाई के अतिरिक्त उनकी रुचिकर विधाओं में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा और अवसर प्रदान करे।

ध्यान रहे विद्यार्थियों के प्रदर्शन पर ही शिक्षकों और संस्थान की छवि निर्भर करती है।

ध्यान रहे, अभिभावकों के पश्चात् विद्यार्थियों पर शिक्षकों के ही चरित्र, व्यक्तित्व, कृतित्व, ज्ञान-विज्ञान-अनुभव और प्रेरक वाक्यों का प्रभाव पड़ता है।

विद्यार्थियों का उत्कर्ष और उनका स्नेहिल सम्मान शिक्षकों की बहुत सारी उपलब्धियों में से एक उपलब्धि है।



गिरीन्द्र मोहन झा, +2 शिक्षक, 

+2 भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर- पड़री, सहरसा

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