राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर - हर्ष नारायण दास - Teachers of Bihar

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Monday 23 September 2024

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर - हर्ष नारायण दास

 

दिनकर जी का जन्म बेगूसराय जिला के गाँव सिमरिया में काश्त कार बाबू रवि सिंह के घर दूसरे बेटे के रूप में 23 सितम्बर 1908 को हुआ। इनकी शिक्षा मोकामा घाट के स्कूल तथा पटना कॉलेज में हुई, जहाँ से उन्होंने बी. ए. ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की।

एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब रजिस्टरार,जनसम्पर्क विभाग के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी योग्यता का परिचय दिया। सन् 1921 में रक्षा ठाकुर की पुत्री श्यामवती देवी के साथ दिनकर जी का विवाह हो गया।

जब दिनकर ढाई वर्ष के थे तो रामधारी सिंह के  पिताजी चल बसे ।

तुलसीदास जी के रामचरितमानस, मैथिलीशरण गुप्त एवं माखनलाल चतुर्वेदी के कविताओं ने दिनकर को पोषित-पल्लवित किया। देश का स्वतन्त्रता संग्राम स्वातंत्र्य कर्मियों के संघर्ष, गाँधीजी के कार्य और विचार, लेनिन के नायकत्व में निष्पादित क्रान्ति, भगतसिंह और गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादतें, स्वामी सहजानन्द सरस्वती का किसान आन्दोलन, स्वामी विवेकानन्द जी,राजाराम मोहन राय जी, स्वामी दयानन्द सरस्वती जी, श्रीमती एनिबिसेन्ट, दो-दो विश्व-युद्ध और उनके कारण, विचारजगत और साहित्य लोक के संघर्ष विवाद का उनके मन पर गहरी छाप पड़ी और उनसे प्रेरणा ग्रहण की।

रविबाबू, इकबाल और नजरुल इस्लाम से उन्होंने गहरी प्रेरणा ली। 

उनकी रेणुका, हुंकार, सामधेनी आदि की कविताएँ स्वतन्त्रता-सेनानियों के लिये बड़ी प्रेरक सिद्ध हुई। कोमल भावनाओं की जो क्षीण धारा रेणुका में प्रकट हुई थी, रसवंती में सुविकसित होकर भुवन मोहिनी सिद्ध हुई। 

राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रीय स्वाभिमान का सबसे ज्वलन्त रूप प्रकट हुआ है उनकी सुविख्यात लम्बी कविता "परशुराम की प्रतीक्षा '' में।

युद्ध और शान्ति की समस्या का द्वन्द्व तो "कुरुक्षेत्र'' में व्यक्त होकर सुप्रतिष्ठित हुई।

संस्कृति के चार अध्याय नामक विशाल ग्रन्थ उनकी गहन गवेषणा, सूक्ष्म अन्वेषण, भारतीय संस्कृति से उद्दाम प्रेम का विशिष्ठ उपहार तो है ही, उनकी विलक्षण क्षमताओं का अत्यन्त सजीव प्रमाण भी है।

"बारदोली विजय'' सर्वप्रथम प्रकाशित रचना थी जो रीवाँ की "छात्र सहोदर'' नामक में छपी थी। 1929 में प्रण भंग प्रकाशित हुआ। अन्तिम कविता संग्रह हारे को हरिनाम''1 रेणुका की कुछ बानगियाँ देखिए

-बिखरी लट, आंसू छलक रहे।

मैं फिरती हूँ मारी-मारी

कण-कण में खोज रही अपनी खोई अनन्त निधियाँ सारी।

मानस के मौन मुकुल में, सजनी कौन सी व्यथा अपार।

बनकर गंध अनिल में जाने को खोज रही लघु द्वार।

अधरों पर मृदु मुस्कान लिये, गिरजा निर्झरणी को रंगने कंचन घट में समान लिये।

मैं नहीं चाहता चिर बसन्त जूही-गुलाब की छवि अनंत।

ग्रीष्म हो तरु की छाँह रहे,

पावस हो प्रिय की बाँह रहे।

दिनकर की अनंदवादी विचारधारा, भावप्रेम और सौन्दर्य से परिपूर्ण है, जबकि दूसरी स्थिति में उनके मन पर सामाजिक दवाब है।

हुँकार की निम्न पंक्तियों में वे साम्य वादी परम्परा का आह्वान करते प्रतीत होते हैं।

आज  कपित मूल क्यों संसार का,अर्थ का दानव भयाकुल मौन है, झोपड़ी हँस  चोंकती वह आ रहा साम्य की वंशी बजाता कौन है?

अब जरा हुँकार में क्रान्ति की हुंकार देखिये--

और जरा तू बोल, सारी धरा हम फूँक देंगे।

पड़ा जो पंथ में गिरी, कर उसे टूक देंगे।

कहीं कुछ पूछने बूढा विधाता आज आया। कहेंगे हाँ ,तुम्हारी सृष्टि को हमने मिटाया।

सामधेनी की निम्न पंक्तियों में आजादी से पहले साम्प्रदायिकता के विरुद्ध कविता का आक्रोश स्पष्ट झलकता है--

जलते हैं हिन्दू मुसलमान, भारत की आँख जलती हैं। आनेवाली आजादी की, लो दोनों पाँखें जलती हैं।

वे छुरे नहीं चलते, छिदती जाती स्वदेश की छाती है।

लाठी खाकर भारत माता, बेहोश हुई जाती है।

26 जनवरी 1950 के भारत के गणतंत्र की स्थापना के अवसर पर लिखी गई थी-जनतंत्र का जन्म। 

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात पहली संसद गठित होने लगी तो अपने प्रेरक कवित्व के कारण कांग्रेस की ओर से निर्वाचित होकर, राज्य सभा के सदस्य के रूप में 1952 से1963 तक रहे। 1963 से1965ई०तक भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति अन्त में 1965 से 1972 तक भारत सरकार के गृह  विभाग में हिन्दी सलाहकार के रूप में कार्य किये।

24 अप्रैल 1974 को रात्रि में  आंध्र के तिरुपति में भगवान व्यंकटेश्वर के दर्शनों से लौटकर मद्रास में शरीर त्याग किये। 25 अप्रैल को अपराह्न 1 बजे उनका शव विमान से दिल्ली होते हुए पटना लाया गया। संध्या 5.45 बजे शवयात्रा आरम्भ हुई और पटना के बांसघाट पर उनका अन्तिम संस्कार सम्पन्न हुआ।

साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कारों से सम्मानित तथा पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत दिनकर जी भारतीय काव्य-गगन के अति देदीप्यमान नक्षत्र थे।उनकी जयन्ती पर कोटिश: नमन!



हर्ष नारायण दास

प्रधानाध्यापक

मध्य विद्यालय घीवहा

फारबिसगंज (अररिया)

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