गॉंधी जी के विचारों को आत्मसात करें - भवानंद सिंह - Teachers of Bihar

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Wednesday, 2 October 2024

गॉंधी जी के विचारों को आत्मसात करें - भवानंद सिंह


2 अक्टूबर का दिन इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में लिखा हुआ है। इसलिए नहीं कि वह अक्टूबर माह की दूसरी तिथि है बल्कि इसलिए कि उस दिन एक महान आत्मा का इस भारत भूमि पर अवतरण हुआ था। जी हॉं मैं बात कर रहा हूॅं हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का। उन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा का परिचय देते हुए अंग्रेजों को न बल्कि धूल चटाई उनको नाक में दम कर रखा था। 

      गॉंधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई. को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वे अपने पिता करमचंद गाँधी एवं माता पुतली बाई के चौथे संतान थे। जीवनसंगिनी के रूप में उन्हें कस्तूरबा गाँधी से काफी सहयोग मिला। 

     वे पढ़ने-लिखने में साधारण विद्यार्थी थे। वे नकल करना पाप मानते थे। उनका मानना था कि ऐसी विद्या का जीवन में कोई काम नहीं,जो समय पर काम न आए। मैट्रिक की पढ़ाई करने के बाद गॉंधी जी कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए। 1891 ई. में कानून की पढ़ाई पूरी कर गॉंधी जी भारत वापस लौटे। इसी समय दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद चरम पर था। वहॉं काले लोगों को गोरे अर्थात अंग्रेजों के द्वारा बहुत ज्यादा प्रताड़ित किया जाता था। इसी से संबंधित मुकदमे की पैरवी में 1893 ई. को उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इस दौरान जब वह रेलगाड़ी से डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे। गॉंधी जी प्रथम श्रेणी का टिकट लेकर प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे। ट्रेन जब मारिट्जवर्ग स्टेशन पर पहुँची तो कुछ रेलवे कर्मचारी स्थानीय पुलिस की मदद से उन्हें प्रथम श्रेणी से धक्के मारकर सामान सहित बाहर फेंक दिया गया। महात्मा गॉंधी जी के साथ दक्षिण अफ्रीका में किया गया यह दुर्व्यवहार विश्व व्यापी घटना बन गया। इनके अलावा बहुत सारी यातनाएँ सहते हुए गॉंधी जी दक्षिण अफ्रीका में अपने काम को अंजाम तक पहुॅंचाया। अब लोगों में हिम्मत जगी कि वह गलत का विरोध कर सके। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने दो आश्रम की स्थापना की टॉल्स्टोय आश्रम एवं फिनिक्स आश्रम। दक्षिण अफ्रीका में क्रांति का अलख जगाकर गॉंधी जी लम्बे प्रवास के बाद 9 जनवरी 1915 ई. को भारत लौट आए।

         भारत में उस समय अंग्रेजों का अत्याचार चरम पर था। उस समय अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाना बहुत बड़ा जुर्म माना जाता था। लेकिन गॉंधी जी यहाँ भी बैठे नहीं रहे। गॉंधी जी भारत में सबसे पहला आंदोलन बिहार के चंपारण से प्रारंभ किया। यहाॅं पर किसानों ने अंग्रेजों के खिलाफ एक आंदोलन छेड़ रखा था। तब राजकुमार शुक्ल के द्वारा गाॅंधी जी को आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया गया। चंपारण आंदोलन नील की खेती तीन कठिया प्रणाली के खिलाफ था। इस आंदोलन का परिणाम यह रहा कि तर्कसंगत कर प्रणाली के लिए किरायेदारों और अंग्रेजों के बीच कानूनी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए और तीन कठिया प्रणाली को समाप्त किया गया। यह गाॅंधी जी का पहला आंदोलन था जो सफल रहा।

            भारत को स्वतंत्र कराने तक गॉंधी जी ने अनेक आंदोलनों का सफल नेतृत्व किए। जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता मिली। उनके द्वारा चलाए गए प्रमुख आंदोलन निम्न है - चंपारण आंदोलन सन् 1917 ई., खिलाफत आन्दोलन 1919 ई., असहयोग आंदोलन 1920 - 22 ई., दांडी यात्रा 1930 ई. , भारत छोड़ो आंदोलन 1942 ई. प्रमुख हैं ये प्रमुख आंदोलन थे जिन्होंने अंग्रेजों की जड़ें हिला कर रख दिया। इन सभी आंदोलनों के अलावा उनके द्वारा भारत के हित में कुछ समझौते, सम्मेलन, मिशन, पैक्ट आदि में सकारात्मक भूमिका निभाया।

          इन सभी आंदोलनों में एक खास बात यह रहा कि सभी आंदोलन सत्य और अहिंसा पर आधारित था। जो उनके जीवन का प्रमुख सिद्धांत था। गाॅंधी जी हिंसा को विकास का बाधक मानते थे। उनका एक सबल पक्ष सत्याग्रह पर आधारित था। सत्याग्रह अर्थात सत्य के लिए आग्रह। ये निम्न प्रकार से है - हड़ताल, उपवास, प्रार्थना, प्रतिज्ञा, असहयोग, धरना, सविनय अवज्ञा, अहिंसक प्रदर्शन, आमरण अनशन आदि।

       गाॅंधी जी एक सफल तथा महान संचालन कर्त्ता एवं निर्भीक नेतृत्वकर्ता थे। वे मानते थे कि हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं बल्कि अहिंसा और प्रेम से देना चाहिए। वे यह भी मानते थे कि समस्याओं का समाधान शांति और सत्य के मार्ग पर चलकर ही संभव हो सकता है। इसलिए उनका ध्यान हर प्रकार के सामाजिक बुराइयों पर गया। उनका लक्ष्य आत्मनिर्भरता और नैतिक सुधार के माध्यम से स्वराज प्राप्त करना था। वे हिन्दू - मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। गॉंधी जी समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को भी आगे लाने में अपनी अहम भूमिका निभाया। इन सब कार्यों में गॉंधी जी सफल भी रहे। उनका यह सिद्धांत और विचार हमें आज भी प्रेरणा देता है। आज समय की मांग है कि हम सभी को उनके विचारों को आत्मसात करना चाहिए और उनके सपनों का भारत बनाने में अपना अमूल्य योगदान देना चाहिए।

             अंत में एक हिंसावादी प्रवृत्ति के सिरफिरे व्यक्ति नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 ई. को इस महान आत्मा को अपनी गोली का शिकार बनाया और गॉंधी जी "हे राम" कहते हुए इस धरा से विदा हो गए। लेकिन आज भी गॉंधी जी मरकर भी अमर है, हमें उनकी प्रेरणा से आगे बढ़ने का हौसला मिलता है।


       


 भवानंद सिंह ( शिक्षक )

      मध्य विद्यालय मधुलता

          रानीगंज, अररिया

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