परियोजना कार्य क्या है? यह एक सामूहिक कार्य है जिसमें बच्चे शिक्षकों के साथ मिलकर किसी समस्या का समाधान करते हैं। परियोजना कार्य का मतलब लोग केवल मॉडल बनाना, कोलाज बनाना, चार्ट पेपर पर सूचनाओं को लिखना या डायग्राम बनाना समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। बच्चे माचिस की डिबियों से रेलगाड़ी बनाते हैं। तरह-तरह के मोतियों की माला पिरोते हैं। बच्चे एक अच्छे संग्राहक होते हैं, वे विभिन्न तरह की चीजों को जमा करते हैं, ये सभी भी एक प्रकार की परियोजना है। माचिस की डिबियों से खिलौने बनाना, मिट्टी या बालू से घरौंदे बनाना, सभी प्रोजेक्ट हो सकते हैं, बशर्ते कि बच्चों के पास रचनात्मक परिणाम देने की एक चुनौती हो। बच्चे जब घरौंदे बनाते हैं या गुड्डे-गुड़ियों का खेल खेलते हैं तो उसके मस्तिष्क में एक योजना होती है, जिसमें जिंदगी की पूरी संकल्पना (Concept) छुपी होती है। परियोजना कार्य सामूहिक टास्क के अलावा व्यक्तिगत टास्क (Individual Task) भी होता है। कोई बच्चा यदि एक घरौंदा अकेले ही बनाता है तो वह व्यक्तिगत परियोजना कार्य है लेकिन यदि वह साथियों के साथ मिलजुल कर बनाता है तो वह एक सामूहिक प्रयास है।
प्रोजेक्ट विधि (Project Method) की मूल अवधारणा जॉन डीवी ने दी थी और उनके शिष्य किलपैट्रिक ने इस विधि को प्रतिपादित किया था। इस विधि में बच्चे स्वयं समस्या को हल करते हैं और अनुभव प्राप्त करते हैं। प्रोजेक्ट विधि से बच्चे जो भी सीखते हैं, वे बिल्कुल स्थाई होते हैं क्योंकि इसमें करके सीखने (Learning by doing) की तकनीक होती है। बच्चे इसके द्वारा तर्क, चिंतन एवं अन्वेषण करते हैं। परियोजना कार्य एक गतिशील दृष्टिकोण (Dynamic Approach) है जो बच्चों के द्वारा ज्ञान के सृजन पर आधारित है। यह सहयोग, स्वायत्तता और रचनात्मकता को बेहतर बनाती है। प्रोजेक्ट की अवधारणा को समझने के लिए विभिन्न विद्वानों के मन्तव्य को समझना होगा। किलपैट्रिक के शब्दों में," प्रोजेक्ट वह उद्देश्यपूर्ण कार्य होता है जो पूर्ण सलंग्नता के साथ सामाजिक वातावरण में किया जाए।" पार्कर के अनुसार, "प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है, जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और संपन्नता के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है।" बेलार्ड के अनुसार," प्रोजेक्ट यथार्थ जीवन का एक ही भाग है जो विद्यालय में प्रयोग किया जाता है।" स्टीवेंसन के शब्दों में," प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है।" परियोजना विधि की जड़ें कहीं न कहीं 'व्यवहारवाद' में निहित हैं। सामान्यतः इसके छः सोपान होते हैं। जिस प्रकार शोध कार्य को करने के लिए किसी एक समस्या का चयन करना होता है, ठीक उसी प्रकार परियोजना निर्माण हेतु भी किसी एक विषय का चयन करना पड़ता है। सोपान ये हैं: 1.परिस्थितियाँ उत्पन्न करना। 2. योजना का चयन व उसके उद्देश्यों के बारे में स्पष्ट ज्ञान देना। 3. योजना का कार्यक्रम बनाना। 4. योजनानुसार कार्य करना।
5. योजना का मूल्यांकन। 6. सारे कार्य का लेखा-जोखा रखना (अभिलेखन-Records)
विद्यालय में परियोजना कार्य के द्वारा शिक्षण को प्रभावी बनाया जा रहा है। पर्यावरण और हम-3 में आवास के थीम को समझाने के लिए दियासलाई की डिबिया की सहायता से बच्चों के द्वारा ईंट बनवाया गया है और फिर उन ईंटों से दीवार। फिर दीवारों से मकान की अवधारणा दी गई है। इस प्रकार, कोई भी परियोजना बच्चे को वास्तविक दुनिया की चुनौतियों और समस्याओं पर काम करने के जरिए ज्ञान और कौशल हासिल करने का मौका देती है।
अभी शिक्षण में परियोजना आधारित अधिगम (PBL-Project Based Learning) पर जोर दिया जा रहा है। बच्चों को प्रोजेक्ट बनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। शिक्षकों को केवल उनके प्रयास में सहज मोड़ देने की आवश्यकता है, फिर तो बच्चे उसे स्वयं बना लेंगे क्योंकि बच्चे स्वयं ज्ञान का सृजन करते हैं (NCF-2005)। ज्ञातव्य है कि प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों को परियोजना आधारित अधिगम करने हेतु प्रशिक्षण दिया गया है, फिर उन्हें बतलाया गया है कि एमआईपी (MIP-Micro Improvement Project) कैसे किया जाता है।
माइक्रो इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट, किसी प्रक्रिया को सरल, प्रासंगिक और साध्य कार्यों में बाँटने का एक दृष्टिकोण है। सूक्ष्म सुधार परियोजना (MIP-Micro Improvement Project) बच्चों को हर तरह से दक्ष बनाने का कार्यक्रम है। इसके लिए सभी प्रधानाध्यापकों और विज्ञान के शिक्षकों को दीक्षा (DIKSHA) एप्प इंस्टाल करने का निर्देश दिया गया है। इस योजना से बच्चों में खोजी प्रवृत्ति का विकास होगा और उनकी प्रतिभा में निखार आएगी।
परियोजना आधारित अधिगम (PBL) तथा सूक्ष्म सुधार परियोजना (MIP) का उद्देश्य अंततः गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही है। यह कार्यक्रम प्रधानाध्यापकों एवं शिक्षकों में नवाचारी शिक्षण शास्त्र (lnnovative Pedagogy) या गतिविधि आधारित शिक्षण की समझ विकसित करता है। इसमें सभी प्रधानाध्यापकों एवं शिक्षकों को अपने द्वारा उपयोग किए गए नवाचारी शिक्षण शास्त्र पर 500 शब्दों में आलेख लिखने की चुनौती होती है। इस कार्यक्रम के द्वारा शिक्षक शैक्षणिक गतिविधियों का वीडियो बनाना और फिर उसे दीक्षा एप्प पर अपलोड करना आराम से सीख जाते हैं। सभी शिक्षकों में अधिगम प्रतिफल (LO-Learning Outcomes) और फिर उसके आधार पर प्रश्न बनाने की समझ होनी चाहिए।
बिहार में एमआईपी के तहत छठी से आठवीं की कक्षाओं के बच्चों में शिक्षक पीबीएल आधारित पाठ योजना ( Lesson Plan) का उपयोग करके विज्ञान की अवधारणाओं को पक्का करते हैं। इसमें आस-पास की चीजों को इस्तेमाल करके विज्ञान को रोचक तरीके से पढ़ाने की कला की योजना होती है। प्रधानाध्यापक अभिभावकों को कार्यक्रम पर आधारित शिक्षा चौपाल का प्रभावी क्रियान्वन करते हैं, ताकि उनमें विद्यालय और शिक्षकों के द्वारा पढ़ाई-लिखाई पर भरोसा पैदा हो। जो बच्चे प्रोजेक्ट बनाते हैं, वे बच्चे उसका प्रदर्शन शिक्षा चौपाल में करते हैं। इन गतिविधियों की वीडियोग्राफी की जाती है एवं उस वीडियो को MIP पर अपलोड किया जाता है। एक माह में गणित में 9 और विज्ञान में 9, कुल मिलाकर 18 प्रोजेक्ट करने होते हैं। इस प्रकार तीन माह में 54 PBL करना होता है। एमआईपी करने के बाद शिक्षकों को एक सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। पीबीएल के प्रति प्रशिक्षित शिक्षकों की बड़ी जवाबदेही होती है। सभी प्रधानाध्यापक अपने विद्यालयों में रीडिंग कैंपेन (Reading Campaign) के अंतर्गत माइक्रो इंप्रूवमेंट प्रोजेक्ट 'पढ़े बिहार, बढ़े बिहार' की गतिविधि आयोजित करते हैं। फिर वे सप्ताह तक चले रीडिंग कैंपेन की समीक्षा और छात्रों के पढ़ने के कौशल और उनकी क्षमता का मूल्यांकन करते हैं।
लेकिन याद रखें कि परियोजना कार्य सिर्फ विज्ञान में ही नहीं होते हैं। यह सभी विषयों में होते हैं। सामाजिक विज्ञान के परियोजना कार्य को उदाहरण से इस प्रकार समझा जा सकता है। बाल मजदूर (Child Labour) को समझने के लिए बच्चों का समूह बनाकर यह पता करने को कहा जा सकता है कि तुम्हारे आस-पास कितने बाल मजदूर हैं। उनकी उम्र कितनी हैं? वे क्या-क्या कार्य करते हैं? उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है? उन्हें विद्यालय से जोड़ने के लिए क्या-क्या करना होगा। इसका दस्तावेजीकरण (Documentation) के समय एक शिक्षक की सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है। इस परियोजना पर काम करने से पहले शिक्षक को 'बाल मजदूर' किसे कहते हैं?' बच्चों को समझाना होगा। जिस बच्चे की उम्र पढ़ने की है लेकिन पढ़ाई छोड़कर वह कोई काम करता है तो वह बाल मजदूर है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO-International Labour Organisation) के अनुसार, बाल श्रम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों द्वारा किया जाने वाला वह काम है जो किसी भी तरह से उनका शोषण करता है, उन्हें मानसिक, शारीरिक या सामाजिक नुकसान पहुँचाता है, या उन्हें जानलेवा खतरे में डालता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-24 के मुताबिक,14 साल से कम उम्र के बच्चों को कारखानों, खदानों, या किसी खतरनाक काम में काम पर नहीं रखा जा सकता। यहाँ तक कि बच्चों के द्वारा बीड़ी बनाना भी खतरनाक काम माना गया है। बीड़ी वर्कर्स को टीवी रोग से ग्रसित होने की ज्यादा संभावना रहती है।
इसी तरह भाषा में भी परियोजना आधारित शिक्षण-अधिगम की व्यवस्था की जा सकती है और बच्चों में चुनौती भरी जा सकती है, जिसके द्वारा बच्चों के सहजात गुणों एवं सृजनशीलता का साक्षात्कार हो सकेगा। उदाहरण स्वरूप, तीन अक्षरों वाले, चार अक्षरों वाले तथा पाँच अक्षरों वाले शब्दों का संग्रह यदि हिंदी और अंग्रेजी में बच्चों के समूहों के द्वारा करवाया जाए, फिर उसका दस्तावेजीकरण करवा लिया जाए फिर यदि उसे विद्यालय प्रशासन के द्वारा एक पुस्तक का रूप दे दिया जाए तो हम समझते हैं कि यह भी एक अच्छी परियोजना होगी। इसी तरह किसी स्थानीय या आंचलिक शब्दावलियों की डिक्शनरी भी बनाई जा सकती है।
मो.ज़ाहिद हुसैन
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय
मलहबिगहा, चण्डी, नालन्दा
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