भारत में हिन्दू आस्था के कई पर्व त्यौहार मनाए जाते हैं जिनमें दशहरा भी एक खास पर्व है। इसे विजयादशमी के नाम से भी मनाया व जाना जाता है। यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक के रुप में देखा व माना जाता है। इसके अलावा इसे कई धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से भी मनाया जाता है। दशहरा का पौराणिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व वेद, पुराण, महाकाव्यों और अन्य हिन्दू धर्मग्रंथों में व्यापक रूप से वर्णित है जिसे पढ़कर ही समझा जा सकता है।
सर्वप्रथम दशहरा के पौराणिक महत्व के बारे में जानते हैं:
भारत देश में रामायण और गीता को प्रमुख ग्रन्थ के रुप में जाना जाता है। रामायण के अनुसार -दशहरा का सबसे प्रमुख कारण भगवान श्रीराम द्वारा राक्षसराज रावण का वध करने के लिए याद किया जाता है। रावण भले ही प्रकांड विद्वान और ज्ञानी था। मान्यता के अनुसार वह ५२ प्रकार के वेदों का ज्ञाता था परंतु वह अहंकारी और घमंडी था। उक्त काल में अधर्म बढ़ जाने के कारण भगवान राम ने उसकी लंका में जाकर, नौ दिनों तक लगातार युद्ध करके, दसवें दिन उसका वध कर दिया था। इसीलिए दशहरा बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार - भगवान राम ने देवी दुर्गा की उपासना की और उनके आशीर्वाद से रावण पर विजय प्राप्त की। इसलिए दशहरे का सीधा संबंध शक्ति की उपासना और विजय प्राप्ति से है। लोग नौ दिन निर्जला और सात्विक रुप में रहते हैं और दुर्गा शक्ति की पूजा और आराधना करते हैं।
महाभारत के अनुसार - महाभारत काल में धनुर्विद्या में निपुण अर्जुन ने इसी दिन अपने अज्ञातवास के दौरान शमी वृक्ष के नीचे छिपाए गए हथियारों को निकाला और कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए भी इसे विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है। अर्जुन की विजय को धर्म की विजय के रूप में देखा गया है। महाभारत में दशहरे का तात्पर्य धर्म और अधर्म के युद्ध में धर्म की विजय से है। इसलिए मानव जीवन काल में भी इसकी उपमा दी जाती है।
दुर्गा पूजा में कलश स्थापना से लेकर दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है। दुर्गा दसवीं के दिन यानी दशहरा को दुर्गा पूजा के समापन के रूप में भी मनाया जाता है, खासकर पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश बिहार, ओडिशा और असम में यह पर्व मनाया जाता है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार, देवी दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए, यह दिन देवी की विजय और शक्ति का प्रतीक के रुप में भी माना जाता है।
‘दशहरा’ शब्द दश और हर से निकला है, जिसका अर्थ है “दस सिरों का नाश”। यह रावण के दस सिरों का प्रतीकात्मक नाश को दर्शाता है जो दस बुराइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और ईर्ष्या। इसे हम सब मानव जीवन के रुप में भी ग्रहण कर अच्छाईयों को ग्रहण करते व बुराईयों का त्याग करते हैं।
यूँ तो दशहरे का सीधा उल्लेख वेदों में नहीं मिलता लेकिन वेदों में वर्णित ऋत और सत्य की स्थापना के सिद्धांत दशहरा के महत्व के साथ कई मान्यताएँ भी जुड़े हुए हैं। यह त्योहार सत्य और धर्म की विजय का प्रतीक है, जो वेदों के सार्वभौमिक नियमों और नैतिकता के सिद्धांतों से मेल खाता है। वैदिक रीति काल से चली आ रही यह परंपरागत त्योहार हमें नैतिकता का पाठ भी पढा जाते हैं।
स्कंद पुराण, कालिका पुराण और मार्कण्डेय पुराण में विजयादशमी के दिन देवी दुर्गा की विजय और शक्ति के बारे में कई कथाओं का उल्लेख मिलता है। स्कंद पुराण में देवी के महिषासुर मर्दिनी रूप का विस्तृत वर्णन है और बताया गया है कि इस दिन देवी दुर्गा ने बुराई का नाश किया। कालिका पुराण में भी दशहरे के दिन देवी की उपासना का उल्लेख मिलता है, जिसमें नवरात्रि के नौ दिनों के बाद दसवें दिन को विजय के प्रतीक के रुप में मनाया जाता है।
दशहरा की प्रासंगिकता और परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, और इसका प्रथम संदर्भ त्रेता युग से मिलता है, जब भगवान राम ने रावण का वध किया। इसके बाद द्वापर युग में अर्जुन की विजय भी इस पर्व से जुड़ी है। इन कथाओं के अनुसार दशहरा का उत्सव कई हज़ार वर्षों से मनाया जा रहा है।
त्रेता युग में श्रीराम द्वारा रावण पर विजय प्राप्त करना
द्वापर युग में अर्जुन द्वारा विजय युद्ध में विजय प्राप्त करना।
कलियुग में नवरात्रि और दुर्गा पूजा की परंपरा, जिसमें देवी दुर्गा की उपासना की जाती है और दशहरा को उनकी विजय के रूप में मनाया जाता है।
आज के संदर्भ में दशहरा का महत्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। समाज में बुराइयों का नाश करना और सत्य, धर्म, और नैतिकता का पालन करना इसका मुख्य संदेश है। आज दशहरे का उत्सव निम्नलिखित रूपों में महत्वपूर्ण है:
दशहरे का संदेश है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और न्याय की विजय होती है। यह संदेश आज के युग में अत्यंत प्रासंगिक है, जहाँ समाज में नैतिकता और न्याय का पालन आवश्यक है। लेकिन आज समाज में सांस्कृतिक और धार्मिकता में बदलाव भी चिंता का विषय है। नैतिकता और न्याय प्रदान करना इस पर्व का संदेश है।
नवरात्रि के बाद दशहरे का पर्व यह भी सिखाता है कि व्यक्ति को आत्मबल, संयम और शक्ति की आवश्यकता है ताकि वह जीवन में आने वाली बुराइयों और चुनौतियों का सामना कर सके। देवी दुर्गा की उपासना शक्ति प्राप्त करने का प्रतीक है। लेकिन इस पर्व के नाम पर पशु बलि और जीव हत्या को जोड़ दिया गया है जो व्यभिचार और असमाजिकता का रुप लेता जा रहा है। हमें अपनी सांस्कृतिक मूल्यों, विरासतों और धार्मिक आस्था को भी बरकरार रखने की जरूरत है। यानी हमें आज शक्ति और आत्मबल रखकर इस पर्व को मनाने की बात की जानी चाहिए।
दशहरा भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है,जैसे रावण दहन, दुर्गा पूजा, और शस्त्र पूजा। यह पर्व सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक है, जो आधुनिक समाज में लोगों को एकजुट करने का माध्यम बनता है। सांस्कृतिक विविधता में ही समान भाईचारा को बनाए रखने में इस पर्व का महत्त्व समझा जा सकता है।
दशहरा पर्व का निष्कर्ष यह है कि यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसका पौराणिक महत्त्व पूर्व में भी बतलाया जा चुका है। इसकी महत्ता रामायण, महाभारत, पुराण और तंत्र-शास्त्रों से जुड़ी हुई है। यह पर्व सदियों से धर्म,न्याय और सत्य की स्थापना के लिए मनाया जाता रहा है और आज भी इसका महत्व हमारे समाज में बहुत गहरा है। हमें पर्व और त्योहार भी अच्छाईयों के प्रतीक के रुप में समझा जाते हैं। यह पृथ्वी के घूर्णन चक्र, काल क्रम वार्षिकी के अनुसार दिन और तारीख की गणना से बता जाते हैं। आप सभी को दशहरा पर्व की असीम शुभकामनाएँ और बधाई।
सुरेश कुमार गौरव
उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
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