पण्डित जवाहरलाल नेहरू -हर्ष नारायण दास - Teachers of Bihar

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Friday, 15 November 2024

पण्डित जवाहरलाल नेहरू -हर्ष नारायण दास


स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू केवल एक राजनीतिज्ञ ही नहीं थे, अपितु वे एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न महान पुरुष थे।वे एक अनूठे चिन्तक भी थे। मानवीय संवेदनाओं से भरपूर यह व्यक्तित्व भारत के लोगों का ही नहीं दुनिया के लोगों का भी अभूतपूर्व प्यार और सम्मान पा सका। भारत ने तो उन्हें राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान "भारत रत्न'' से अलंकृत किया। विश्व ने उन्हें एक महान राजनीतिज्ञ एवं मानवतावादी माना। भारतीय क्षितिज पर एक लम्बे समय तक अपनी आभा फैलाये हुए यह नक्षत्र स्वतन्त्र चिन्तन के क्षेत्र में भी अपनी अमिट छाप छोड़ गये।

पण्डित नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद के आनन्द भवन में हुआ था। इनके पिता प्रसिद्ध वकील पण्डित मोतीलाल नेहरू तथा माताश्री स्वरूप रानी थी।उनकी शिक्षा 16 वर्ष की आयु तक घर में ही हुई। शिक्षकगण घर पर ही आकर विभिन्न विषय पढ़ाते थे। उनका बचपन बहुत लाड़-प्यार में बीता।सन 1905 में इंग्लैंड गये जहाँ पहले हैरो स्कूल में तथा बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। सन 1912 में बैरिस्टरी पास कर भारत लौटे। 1916 में इनका विवाह कुमारी कमला कौल के साथ दिल्ली में हुआ।19 नवम्बर 1917 को इनके यहाँ एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम प्रियदर्शनी रखा गया।

1919 ईस्वी में रॉलेट एक्ट के विरोध में जब महात्मा गाँधी ने एक अभियान शुरू किया, तब नेहरू जी उनके सम्पर्क में आए। गाँधीजी के व्यक्तित्व एवं विचारधारा का नेहरूजी पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने वकालत छोड़ दी और स्वतन्त्रता संग्राम में उनके साथ हो गए। गाँधीजी के प्रभाव से ही उन्होंने ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को त्याग कर खादी कुर्ता एवं गाँधी टोपी धारण करना शुरू किया। जब 1920-22 ई०में गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन का बिगुल बजाया,तो इसमें नेहरूजी ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। इस कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पहली बार गिरफ्तार कर जेल भेज दिया ।1924 में वे इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।इस पद पर दो वर्षों तक बने रहे।1926 ई०से 1928 ई०तक जवाहरलाल नेहरू भारतीय काँग्रेस समिति के सचिव रहे।

भारत सरकार अधिनियम 1935 ई०के अध्यारोपित होने के बाद जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में चुनाव करवाये तो नेहरूजी के नेतृत्व में काँग्रेस ने लगभग सभी प्रान्तों में अपनी सरकार का गठन किया एवं केंद्रीय असेम्बली में भी सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की। 1939 ई० में भारतीय सैनिकों को द्वितीय विश्वयुद्ध में भेजने के ब्रिटिश सरकार के निर्णय के खिलाफ नेहरू जी ने केंद्रीय असेम्बली भंग कर दी। नेहरू जी के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन 2 सितम्बर 1946 को हुआ।

15 अगस्त1947 को जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो वे देश के प्रथम प्रधान मंत्री बने। इसके बाद लगातार तीन आम चुनावों 1952,1957ई०एवं 1962 ई० में उनके नेतृत्व में काँग्रेस ने बहुमत से सरकार बनाई और और तीनों बार वे प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।देश के विकास के लिये उन्होंने सोवियत रूस की पंचवर्षीय योजना की नीति को अपनाया। उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि एवं उद्योग का एक नया युग शुरू हुआ। इसलिये उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा जाता है। देश के नौजवानों को कर्मठ बनने की प्रेरणा देने के लिये उन्होंने नारा दिया-"आराम हराम है।" उनकी उपलब्धियों एवं देश के प्रति उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1965 ई० में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत-रत्न " से सम्मानित किया। उन्हें बच्चों से बहुत लगाव था तथा बच्चों में वे चाचा नेहरू के रूप में प्रसिद्ध थे। इसलिये उनका जन्मदिन14 नवम्बर "बाल दिवस" के रूप में मनाया जाता है।

नेहरूजी ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने जोसेफ ब्रोज टीटो और अब्दुल कमाल नासिर के साथ मिलकर एशिया एवं अफ्रीका में उपनिवेशवाद की समाप्ति के लिये गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत की। नेहरू जी शान्ति के मसीहा थे, उन्होंने 'पंचशील सिद्धान्त'के साथ चीन की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया, लेकिन 1962 ई०में चीन ने धोखे से भारत पर आक्रमण कर दिया।नेहरूजी के लिये यह एक बड़ा झटका था और इसी वजह से 27 मई 1964 को दिल का दौरा पड़ने के बाद उनकी मृत्यु हो गई।

तत्कालीन राष्ट्रपति एवं भारत के महान दार्शनिक डॉ०राधाकृष्णन ने नेहरुजी की मृत्यु पर कहा था-"वे हमारे युग के एक महानतम व्यक्ति थे।वे एक ऐसे अद्वितीय राजनीतिज्ञ थे जिनकी मानव मुक्ति के प्रति की गई सेवाएँ चिरस्मरणीय रहेगी। 

नेहरूजी न केवल एक महान राजनेता एवं वक्ता थे, बल्कि वे एक महान लेखक भी थे। इसका प्रमाण उनके द्वारा रचित पुस्तकें-डिस्कवरी ऑफ इंडिया एवं ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री हैं। इसके अतिरिक्त अपनी पुत्री इन्दिरा प्रियदर्शिनी को नैनी जेल से लिखे गए उनके पत्रों का संकलन "पिता का पात्र पुत्री के नाम'' पुस्तक के रूप में प्रकाशित हैं। इस पुस्तक में जिस तरह उन्होंने सामाजिक विज्ञान, सामान्य विज्ञान एवं दर्शन का वर्णन किया है, उससे पता चलता है कि वे उच्च कोटि के विद्वान थे। उन्होंने विश्व को शांतिपूर्ण सहअस्तित्व एवं गुटनिरपेक्षता के महत्वपूर्ण सिद्धान्त दिये। जवाहरलाल नेहरु भारत के सच्चे सपूत थे। उनका जीवन एवं उनकी विचारधाराएँ हम सबके लिये अनुकरणीय हैं। उनके जन्मदिन पर उन्हें कोटिशः नमन!



हर्ष नारायण दास

प्रधानाध्यापक

मध्य विद्यालय घीवहा(फारबिसगंज)

अररिया

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