जीवन जीने के लिए कभी-कभी विकट परिस्थितियों से भी समझौता करना पड़ता है तो कभी ताने भी सुनने पड़ते हैं। कभी अपमानित भी होना पड़ता है परंतु जो मनुष्य अपने श्रम और बुद्धिकौशल से बढ़ना चाहता है उसे कोई रोक नहीं सकता। जीवन में चौराहे रूपी कई मोड़ आते हैं, जहाँ यह तय करना होता है कि किस मार्ग का अनुसरण किया जाए जिससे अपेक्षित परिणाम मिल सके।
एक गाँव में रवि नाम का व्यक्ति अपने आलस्यपन के कारण मशहूर था। उसे बातें बनाना खूब आता परन्तु कर्त्तव्य के नाम पर पूर्ण रूप से फिसड्डी था जिस कारण वह लोगों की नज़रों से गिर चुका था। आलसी व्यक्ति में इस दुर्गुण के साथ अन्य दुर्गुण भी अपने आप समाहित हो जाता है जो रवि के साथ भी था, वह था झूठ बोलना। वह किसी को कुछ भी बोल देता पर वचन का तनिक भी ख्याल न रखता।
इस कारण जो भी उसके संपर्क में आता, कुछ ही दिनों में उससे भिन्न हो जाता।
उसकी पत्नी निभा उसे इस बाबत बहुत समझाती परन्तु वह उसकी बातों की अनसुनी कर देता।एक बार किसी से रवि ने पाँच हजार रुपए उधार लिए थे परंतु रुपए लौटाने का वह नाम ही नहीं ले रहा था। जब रुपए उधार देनेवाला उससे रुपए माँगने जाता तब वह अपने बेटा रोहित को सीखा देता कि पापा अभी घर पर नहीं हैं, कह देना। ऐसे में वह बार- बार मायूस होकर लौट जाता।
एक बार उसने निश्चय किया कि उसकी साइकिल और मोबाइल रास्ते में आते- जाते कहीं से भी छीन लेगा और उसे कुछ शारीरिक दंड भी देगा।
रवि कहीं साइकिल से जा रहा था तभी अशोक ने उसे घेर लिया । कुछ उसे गालियाँ भी दी और साइकिल भी छीन लिया। उस समय रवि के पास मोबाइल नहीं था। बेचारा रवि अपना सा मुंह लिए घर पहुँचा। पत्नी निभा
ने जब यह हाल जाना तो वह भी दुःखी हुई और अपने पति को अपनी अँगूठी देते हुए कहा कि इसे बेचकर कर्ज जल्द से जल्द चुकाइए। रवि ने वैसा ही किया।
रवि को इस बात से बड़ी ठेस लगी जिस कारण उसकी साइकिल छीन गई थी। उसे पश्चाताप हो रहा था कि अब तक का नाकामी भरा जीवन कैसे काट लिया। अगर वह कुछ करता तो परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक होती। उसे अब पूरी तरह से समझ आ चुका था कि परिश्रम के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
पत्नी निभा ने एक बार और उदारता दिखाते हुए अपने सोने की कुंडल रवि के आगे रखते हुए बोली कि आप इससे रोजगार शुरू कीजिए। मैं भी इसमें सहयोग करूँगी ।
पत्नी की यह बात उसे अच्छी लगी। इसपर उसे शाबाशी देते हुए कहा कि तुम महान हो, तुमने अपना गहना मुझे देकर मुझ पर बड़ा कृतार्थ किया है । मैं इससे रोजगार करूँगा और अपने माता-पिता को और लज्जित न करूँगा।
रवि जब गहना बेचकर आ रहा था तभी उसके मन में ख्याल आया कि वह अब सब्जी की दुकान लगाएगा और उससे ही रुपए अर्जित करेगा।
इस कार्य को करते हुए उसके तीन वर्ष बीत चुके थे। उसने अब साइकिल की जगह मोटरसाइकिल से बाहर से सब्जी लाकर गाँव के चौराहे पर बेचने लगा। लोग भी उसे देख आश्चर्यचकित होते। अब उसके भाग्य बदल चुके थे, उसकी किस्मत खुल चुकी थी।
जब वह कहीं बाहर से सब्जी लाने जाता तब पत्नी दुकान चलाती। कुछ वर्षों बाद ही उसकी हैसियत पूरी तरह से बदल चुकी थी।
उसे छोटे छोटे दो बच्चे थे, उसे भी अच्छे स्कूल में पढ़ाने लगा । घर जो टूटा फूटा था उसे हटाकर छतदार मकान बना लिया। उसकी इज्जत समाज के सामने अब बढ़ चुकी थी। अब वह दूसरे को कर्ज दे सकता था।
कर्त्तव्य की सही परिभाषा का अंदाजा उसे लग चुका था तभी तो प्रतिकूलताओं को सुअवसर और अनुकूलता में बदलना जान चुका था। जो जीवन पहले आलस्यपन में कटता वही रवि का एक एक मिनट सार्थक काम में बीतता। उसे अब समय व्यर्थ गँवाना कतई अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उसे अब परिश्रम का फल उसकी अपनी मर्जी के अनुसार मिलने लगा था।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर
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