१. प्रस्तावना
सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें पूरा भारत सम्मानपूर्वक "नेताजी" के नाम से पुकारता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और प्रेरणास्रोत थे। उनकी दृढ़ता, साहस और मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम ने उन्हें इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया। उनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष, त्याग और बलिदान की अद्वितीय कहानी है। स्वतंत्रता संग्राम के दो दल हुआ करते थे। नरम दल और गरम दल। गरम दल का नेतृत्व नेताजी ही किया करते थे।
२. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक प्रसिद्ध वकील और माँ प्रभावती देवी धर्मपरायण महिला थीं। बाल्यकाल से ही सुभाष बुद्धिमान, अनुशासनप्रिय और निडर स्वभाव के थे।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉ कॉलेजिएट स्कूल में प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। सुभाष बचपन से ही देशभक्ति के भाव से प्रेरित थे और अंग्रेजी साम्राज्य की दमनकारी नीतियों के प्रति विद्रोही स्वभाव रखते थे।
ब्रिटिश सरकार के दबाव में उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए और प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन देश की सेवा के प्रति समर्पण और स्वतंत्रता की प्यास ने उन्हें इस उच्च पद को त्यागने के लिए प्रेरित किया और वे भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े।
३. राजनीतिक जीवन की शुरुआत
सुभाष चंद्र बोस महात्मा गाँधी और कांग्रेस से प्रेरित होकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। गाँधीजी के अहिंसा सिद्धांत का सम्मान करते हुए भी, बोस यह मानते थे कि केवल संघर्ष और बलिदान से ही आजादी प्राप्त की जा सकती है।
1921 में, उन्होंने स्वराज पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। जलियाँवाला बाग हत्याकांड और साइमन कमीशन जैसे घटनाक्रमों ने उनके मन को गहराई से झकझोर दिया।
1930 के दशक में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनकी सोच और दृष्टिकोण उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती थी।
४. भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का गठन
सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि आजादी केवल अपील करने से नहीं मिलेगी, बल्कि इसके लिए सशस्त्र संघर्ष आवश्यक है। इसी विचारधारा के तहत उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया।
उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों को संगठित कर एक सेना खड़ी की। "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा" का नारा देते हुए उन्होंने युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया। यह नारा पूरी फिजाओं में फैलता गया और स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं में मानों रच बस गया।
आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ी। नेताजी ने आजाद हिंद सरकार की स्थापना की और इसे जापान तथा जर्मनी जैसे देशों का समर्थन मिला। हालांकि, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान और जर्मनी की हार के कारण को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, लेकिन यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
५. नेताजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपने भाषणों में कई संदेश और नारे भी दिए उनमें तीन नारे काफी लोकप्रिय हुए जो आज भी हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की भावना जगाते हैं।
"जय हिंद"- यह नारा आज भी भारत की एकता का प्रतीक है।
"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।"
"स्वतंत्रता बलिदान मांगती है।"
उनके विचार और नेतृत्व ने लाखों युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने का काम किया।
६. नेताजी के मौत का रहस्य:
18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु की खबर आई। लेकिन उनकी मौत आज भी रहस्य बनी हुई है। कई लोग मानते हैं कि नेताजी उस दुर्घटना में मारे नहीं गए और उनकी जिंदगी के बाद का सच आज तक अनसुलझा है।
७. सुभाष चंद्र बोस का योगदान:
सुभाष चंद्र बोस का योगदान केवल स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं था। उन्होंने भारतीय युवाओं में आत्मनिर्भरता, साहस और संगठन की भावना जागृत की। उनके नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने भारतीय सेना के भीतर क्रांति के बीज बोए।
८. निष्कर्ष:
सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे नायक हैं, जिनकी विचारधारा और त्याग आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है, अगर उसे प्राप्त करने का जज्बा और साहस हो।
सुभाष चंद्र बोस के शब्द आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा हैं।
"भारत माता की आजादी के लिए सब कुछ बलिदान कर देना ही हमारा धर्म है।"
सुरेश कुमार गौरव, उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
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