विद्यालय : अपार संभावनाओं का द्वार - - Teachers of Bihar

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Monday, 3 March 2025

विद्यालय : अपार संभावनाओं का द्वार -


 विद्यालय का जिनने भी अवधारणा विकसित किया होगा , वे बड़े मनस्वी रहे होंगे। प्रथमतः विद्यालय गुरुकुल का ही स्वरूप था , जहाँ प्रायः कुलीन घर के बच्चे गुरु से शिक्षा ग्रहण करते थे। बाद में अन्य वर्गों के बच्चे भी गुरुकुल से शिक्षा पाने लगे । कालांतर में गुरु शिष्य की परंपरा कई कारणों से बढ़ न सका।

     परन्तु शिक्षा तो बुनियादी जरूरतों में से एक है अतः इसका स्वरूप विद्यालय के रूप में परिवर्तित हो गया। शिक्षा के प्रति बढ़ते आकर्षण के कारण विद्यालयों की संख्या भी बढ़ती गई और इसमें समय के रफ्तार में कई आयाम भी जुड़ते चले गए। 

  आज विद्यालय को मूलतः दो भागों में देखा जा सकता है । एक सरकारी और दूसरा निजी विद्यालय। सरकारी विद्यालयों का नियंत्रण सरकार के अधीन होता है जबकि निजी विद्यालय के सर्वेसर्वा उसके खोलनेवाले मालिक ही होते हैं। 

 सरकार का निरंतर प्रयास यह है कि सभी जाति धर्मों के बच्चे विद्यालय में दाखिला लें और शिक्षा ग्रहण करें। परन्तु बौद्धिक स्तर से सभी अभिभावक उतने जागरूक नहीं जो बच्चों को शिक्षा के प्रति अभिरुचि जगा सके, जिस कारण अभी तक शिक्षा के प्रति सभी बच्चे आकर्षित नहीं हो पाए हैं । प्रयास जारी है कई प्रकार की योजनाएँ भी सरकारी माध्यम से चलाई जा रही है, जिसका लाभ सीधे तौर पर बच्चों को मिल रहा है । बच्चों के अनुपात में शिक्षकों की बहाली भी की गई है और निरंतर सरकार इस मामले में सचेष्ट भी है।

 निजी विद्यालयों में मालिक ओर शिक्षक के ऊपर जवाबदेही होती है जिस कारण उपलब्धि के मामले में सरकारी विद्यालयों से वह आगे निकल जाता है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि निजी विद्यालय में जानेवाले बच्चों के अभिभावक भी कुछ अधिक जवाबदेही उठाने को तैयार रहते हैं पर सरकारी विद्यालयों में यह अभाव खटकता रहता है।

    इसके बावजूद कुछ कमी को अगर पूरा कर दिया जाए तो सभी प्रकार के विद्यालय अपार संभावनाओं का केंद्र बन सकते हैं। इसके कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-

1 . प्रधानाध्यापक की सूझ-बुझ     

2 . योग्य शिक्षकों की उपलब्धता 

3 . शिक्षकों में आपसी समन्वय 

4 . शिक्षकों में स्व कर्तव्य के प्रति जागरूकता।

5 . छात्रों को अपने उद्देश्य के प्रति सतत जागरूक करना।

6. अनुशासन के प्रति सजगता।

7 . छात्रों के रुचि आधारित विषयों का चयन करने का अधिकार , जिससे छात्रों में अंतर्निहित गुणों को ससमय विकसित किया जा सके।

8 . अनुश्रवण और निगरानी 

9 . अभिभावक और शिक्षकों की साप्ताहिक बैठक जिसमें एक एक बच्चों का मूल्यांकन वर्ग आधारित हो।

10 . शिक्षकों की योग्यता में सतत निखार लाना।

   ये सब ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जो किसी भी विद्यालय के लिए अत्यंत आवश्यक हैं । इससे छात्रों में नैसर्गिक गुणों और प्रतिभा का समुचित विकास हो सकेगा और इस तरह विद्यालय अपार संभावनाओं के केंद्र बन सकेंगे , इसमें कोई दो राय नहीं , चाहे वह विद्यालय सरकारी हो अथवा निजी।

   इस दीर्घकालिक नीति से हमारे देश में प्रतिभावान व्यक्तियों की कमी नहीं रहेगी जिससे भारत सभी क्षेत्रों में तेजी से विकास कर सकेगा और विश्व में अपना वर्चस्व कायम करने में सफल हो सकेगा। भारत को अभी भी वैश्विक स्तर पर वीटो का अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है। यह कहीं न कहीं किसी संदर्भ में हमारी कमियों को ही इंगित करता है । सशक्त और समृद्ध भारत के लिए प्रत्येक नागरिक को सक्षम और सुयोग्य बनना होगा तभी इस कमी को हम पूरा कर सकते हैं । भारत अभी दोराहे पर खड़ा अपने अधिकार की माँग कर रहा है इसलिए भारत को अब सक्षम , सशक्त और अधिक साहसिक होना होगा तभी भारत एक दिन विश्व गुरु बनने का सच्चा अधिकारी बन सकेगा ।




अमरनाथ त्रिवेदी 

पूर्व प्रधानाध्यापक 

उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा 

प्रखंड-बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर

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