हमारा देश भारत संस्कृति प्रधान है। यहाँ के प्राचीन इतिहास के पन्ने नारियों की गौरवमयी कीर्ति से भरे-पड़े हैं। हमारे पूर्वजों का कहना है कि जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। प्राचीन श्लोक है-" यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:" परन्तु इसका पूरा श्लोक है-
यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्रा फला: क्रिया:।।
अर्थात् कहने का तात्पर्य है कि जहांँ नारियों को सम्मान मिलता है, वहाँ देवगण वास करते हैं। इसके ठीक विपरीत जहाँ इनका अपमान होता है, वहाँ उन्नति नहीं होती है। यानि कोई भी कार्य फलीभूत नहीं होता है। मार्कण्डेय पुराण में सभी स्त्रियों को आदिशक्ति का स्वरूप माना गया है-
विद्या समस्तास्तव देवि भेदा:। स्त्रिय: समस्ता सकला जगत्सु।।
यहाँ तक कि वेदों में भी नारी को घर कहा गया है। यानि गृहिणी ही घर है। गृहिणी के द्वारा ही गृह का अस्तित्व है। इनसे ही घर की शोभा है। सच में गृहिणी गृहस्थ जीवन रूपी नौका की पतवार है। वह अपने बुद्धि- बल, चरित्र- बल, अपने त्यागमय जीवन से इस नौका को थपेड़ों तथा भँवरों से बचाती हुई किनारे तक पहुँचाने का प्रयास करती हैं। यही भाव संस्कृत में कहा गया है -" न गृहं गृहमित्याहु: गृहिणी गृहमुच्यते:।" यथार्थ के धरातल पर देखा जाए तो यहाँ स्त्रियों की पूजा से मतलब केवल उनकी मान- मर्यादा की रक्षा तथा उनके अधिकारों की रक्षा से है। उन्हें घर की लक्ष्मी और गृह देवी के नाम से सम्बोधित किया जाता था। उन्हें पुरुषों के समान शिक्षा मिलती थी, उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। परिवार में उनका पद अत्यंत ही सम्मानजनक था। गृहस्थी का कोई भी कार्य बिना उनकी सम्मति के नहीं किया जाता था। कई क्षेत्रों में अपने स्वामी से वे आगे रहती थीं। धार्मिक कार्य उनके बिना अपूर्ण समझा जाता था। यहाँ तक कि रण क्षेत्रों में भी अपने पति का बढ़-चढ़कर साथ देती थीं। देवता और असुर के संग्राम में कैकयी ने अपने अद्वितीय कौशल राजा दशरथ को चकित कर दिया था। अपनी बुद्धि, योग्यता और विद्वत्ता के सहारे ही द्रौपदी अपने पतियों को युद्ध व वनवास काल भी सुंदर परामर्श देती थीं। मैत्रेयी, शकुन्तला, सीता, अनुसूया, दमयंती, सावित्री इत्यादि स्त्रियाँ इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि जहाँ नारी का सम्मान, वहाँ देवियों का सम्मान व देवताओं का मान। परन्तु यह सम्मान केवल कहने मात्र से नहीं अपितु उनकी शक्ति की पहचान कर उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने से होगा, उनकी मान-मर्यादा व उनके अधिकारों की रक्षा से होगा। यों कहा जाए कि स्रियाँ बागों की कली हैं, इनसे ही बागों की शोभा है। कलियों को यदि सुरक्षित रखीं जाएंँ तो आगे चलकर वे फूल का रूप बन जाएँगीं और जीवन रूपी बगिया को सुरभित व सुवासित करेगीं। अतः गृह- लक्ष्मी की शोभा से ही समाज, देश, जगत्, सृष्टि व सारे देवताओं व देवियों की शोभा है। इनका अनादर यानि आदिशक्ति का अनादर। सम्प्रति हमारे देश की स्त्रियांँ चाहे वह विज्ञान का क्षेत्र हो या सामाजिक, राजनीति ,खेल या संगीत का क्षेत्र हो किसी में भी कम नहीं हैं। उत्तरोत्तर प्रगति ही हो रही हैं। इस चमक को सम्मान के साथ कायम रखने की आवश्यकता है। यदि हमारे देश के पुरुष हृदय से चाहें कि स्त्रियाँ भी आगे बढ़ें और कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग दें तो देश स्वर्ग बन जाएगा।
देवकांत मिश्र 'दिव्य' 'शिक्षक' मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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