पराया श्रृंगार - Teachers of Bihar

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Tuesday, 8 July 2025

पराया श्रृंगार

               

मो.ज़ाहिद हुसैन

(संज्ञानात्मक विकास एवं शिक्षा-3)

   

      किशोरावस्था में लड़के का लड़की के प्रति और लड़की का लड़के के प्रति आकर्षण होता है। वे एक दूसरे को दिखाने के लिए सजते-धजते भी हैं।

बबली अब समस्या-उम्र में है। किशोरावस्था संघर्ष, तनाव और आंधी की अवस्था है। बबली सांस्कृतिक आदत एवं मानक के कारण मृदु पथ पर थी, इसलिए उसमें न तो कोई चिंता थी और न ही आंतरिक संदीप। व्हाइट हिल में मिले शिक्षकों का प्यार, सहेलियों का झुरमुट, कामयाबी, मनोहर परिदृश्य बबली में कुंठा को पलने नहीं दिया।  बबली को अनुशासन, समायोजन क्षमता, खुली हवा, बाल केंद्रित शिक्षण अधिगम, प्रगति तथा खुशनुमा एहसास ने किशोरावस्था के आंधियों से बचा लिया। 

किशोरावस्था की गतिशीलता (Adolescence movement and activities) विभिन्न आयामों पर निर्भर करती है, जिसमें सर्वप्रथम किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन संबंधी उलझने, जिसमें कि  किशोरावस्था के प्रारंभ में ही मासिक धर्म के दौरान रक्त का प्रवाह लड़कियों को अनावश्यक रूप से चिंतित बना देता है।  इस स्वाभाविक कार्य से बिल्कुल अपरिचित होने की दिशा में कई बार ऐसी लड़कियों को  दिमागी परेशानी से घिरा हुआ पाया जाता है। इसी प्रकार लड़के भी स्वप्नदोष के परिणाम स्वरुप अपनी अमूल्य निधि को व्यर्थ होने की चिंता में घुले रहते हैं। इस प्रकार लड़के और लड़कियां दोनों किशोरावस्था में ही अज्ञानता वश चिंता ग्रस्त हो जाते हैं तथा बहुधा अंतर्मुखी प्रवृत्ति और अपराधी भावना के शिकार हो जाते हैं। मानव मात्र में व्यक्तिगत अंतर पाया जाना एक स्वाभाविक बात है। जैसे-उसकी वाणी में, उसकी लंबाई में, उसके भार में, पतलापन में, मोटापे में, चेहरे की कांति में, शारीरिक गठन में, रंग-रूप एवं व्यवहार इत्यादि में वे एक दूसरे से तुलना करते हैं और दूसरे की अपेक्षा अपने में कुछ कमी होने से हीन भावना भी अनुभव करते हैं। लड़कियां जहां अपने पतलेपन के कारण अक्सर चिंतित रहती हैं। वहां लड़के अपने सीने की चौड़ाई, भुजाओं की लंबाई इत्यादि छोटे बड़े होने की दुविधा में पड़ जाते हैं। इस तरह से लड़के और लड़कियों के लिए अपने शरीर के विभिन्न अवयवों का दूसरे साथियों की तुलना में व्याप्त रूप में विकसित न होना एक चिंता का विषय बन जाता है। लड़कियां लड़कों की दृष्टि में अधिक से अधिक आकर्षक बनना चाहती हैं। इस प्रकार अपने स्वयं के शारीरिक ढांचे और विकास से संतुष्ट होना किशोर और किशोरियों के लिए बहुत ही महत्व का विषय है तथा अपने शारीरिक परिवर्तनों को एक स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में स्वीकृत करना भी उनके लिए बहुत आवश्यक होता है। किशोरावस्था में लड़के लड़कियों के प्रति आकर्षण का होना स्वाभाविक है, वे एक-दूसरे को दिखाने के लिए सजते-धजते हैं, किशोरावस्था की गतिशीलता में आत्म चेतना जगती है। इसलिए किशोरावस्था को पराया श्रृंगार का समय कहा जा सकता है। किशोरावस्था उफान और तूफान का समय है। इस अवस्था में शिक्षकों और अभिभावकों को चाहिए कि सही मार्गदर्शन एवं परामर्श करें। 

विद्यालय में यौन शिक्षा देने की आवश्यकता है।  विद्यालय में यौन शिक्षा की व्यवस्था सांस्कृतिक कार्यक्रम, पाठ्येत्तर एवं सह-संज्ञानात्मक क्रियाकलाप के द्वारा दिया जा सकता है। महान लोगों की जीवनी से बच्चों में एहसास कराया जा सकता है कि दुबला-पतला, नाटा,  छोटा, काला और बदसूरत आदि होना सफल जीवन के लिए बाधक नहीं है। बहुत सारी विभूतियां ऐसी हुई हैं जो कुरूप थे, लेकिन उनके कर्मों का सौंदर्य इतना था कि पूरी दुनिया उसे जानती है और उनके पद चिन्हों पर चलना चाहती है। जीवन में सफल होने के लिए सुंदर होना कोई जरूरी नहीं। कहते हैं न 'सिंदुरिया आम,नमक हराम'। 

यौन शिक्षा इस प्रकार दी जानी चाहिए कि उन्हें आभास भी न हो और वे यौन शिक्षा में प्रशिक्षित हो जाएं। लड़कियों को यौन शिक्षा देने में  शिक्षिकाओं की अहम भूमिका होती है। हालांकि पुरुष शिक्षक भी अभिभावक की तरह हैं और जो उचित समझें, मर्यादित भाषा में बच्चों को यौन शिक्षा दें। किशोर किशोरियों में भटकाव न हो, इसलिए यौन शिक्षा बहुत जरूरी है।

   संदर्भ: मो.ज़ाहिद हुसैन;"शिक्षण

तकनीक की रूपरेखा"(2021),रेड शाइन पब्लिकेशन

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