भारत को विश्वगुरु कहे जाने की परंपरा कोई नई नहीं है। यह धरती ज्ञान, संस्कृति और दर्शन का केंद्र रही है। आज भी भारत तकनीकी शक्ति, लोकतांत्रिक ढाँचे और जनसंख्या बल के आधार पर वैश्विक मंच पर मजबूत स्थिति रखता है। लेकिन यह मजबूती तभी सार्थक होगी जब हम अपनी व्यवस्था की खामियों को दूर करेंगे।
दुर्भाग्य से आज़ादी के सात दशक बाद भी हमारे समाज और राजनीति का केंद्रबिंदु "बेचारगी" है। साहित्य, संस्थाएँ और सरकारें अधिकतर उन्हीं लोगों को उभारती हैं जो जाति, लिंग या संसाधन की कमी की कहानियाँ सुनाते हैं। व्यवस्था सुधार की जगह यह दिखावा होता है कि पीड़ित का नाम लेकर ही लोकप्रियता हासिल कर ली जाए। लेकिन वास्तविकता यह है कि समाज बेचारगी की चर्चा से नहीं, बल्कि उसके स्थायी समाधान से आगे बढ़ता है।
यह समस्या केवल भारत की नहीं है। हमारे पड़ोसी देश नेपाल में भी हम यही दृश्य देख रहे हैं। लोकतंत्र और संविधान वहाँ भी लागू हुआ, लेकिन वहाँ की राजनीति बार-बार अस्थिरता और सत्ता संघर्ष में उलझ जाती है। सरकारें बदलती रहती हैं, लेकिन जनता की मूलभूत समस्याएँ जस की तस बनी रहती हैं। वहाँ भी नेताओं का जोर मुद्दों के स्थायी समाधान पर नहीं, बल्कि नारेबाज़ी और सत्ता समीकरणों पर है।
नेपाल का यह कांड हमें आईना दिखाता है कि केवल संविधान लिख देने या लोकतंत्र घोषित कर देने से व्यवस्था सुधरती नहीं। अगर राजनीतिक दल और नेता केवल अपने स्वार्थ में डूबे रहें, यदि अपराधी या अवसरवादी लोग कानून बनाने लगें, तो जनता को न्याय कभी नहीं मिलेगा।
भारत और नेपाल दोनों के सामने यह साझा चुनौती है—लोकतंत्र को सिर्फ़ कागज़ी नहीं, बल्कि वास्तविक बनाना।
समाधान भी साझा है:
जनता को "बेचारगी" की मानसिकता छोड़कर अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों पर भी ध्यान देना होगा।
नेताओं और संस्थाओं को दिखावे की सामाजिकता नहीं, बल्कि ठोस सुधार और नीति पर ध्यान देना होगा।
न्याय व्यवस्था निष्पक्ष और सशक्त बने, ताकि अपराधी राजनीति और कानून पर कब्ज़ा न कर सकें।
सबसे महत्वपूर्ण यह कि समाज और राजनीति का केंद्र "स्वार्थ" नहीं बल्कि "समर्पण" हो।
भारत यदि विश्वगुरु बनना चाहता है तो उसे न केवल अपने भीतर सुधार करना होगा बल्कि अपने पड़ोसियों के लिए भी सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। नेपाल का मौजूदा परिदृश्य हमें चेतावनी देता है कि लोकतंत्र केवल नारों से जीवित नहीं रहता, वह तभी सार्थक होता है जब नेतृत्व जिम्मेदार, नैतिक और जनता के प्रति जवाबदेह हो।
इसलिए आज दोनों देशों के नागरिकों और नेताओं को आत्ममंथन करना होगा।
क्या हम केवल अतीत के गौरव पर गर्व करेंगे या वर्तमान की जिम्मेदारी निभाएँगे?
क्या हम केवल नारे लगाएँगे या सचमुच व्यवस्था सुधार की ओर बढ़ेंगे?
यदि हमने इस प्रश्न का सही उत्तर ढूँढ लिया, तभी भारत पुनः विश्वगुरु कहलाएगा और नेपाल भी स्थिर व समृद्ध लोकतंत्र का उदाहरण बन पाएगा।
ओम प्रकाश
मध्य विद्यालय दोगच्छी, नाथनगर, भागलपुर

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