विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस- १० अक्तूबर - Teachers of Bihar

Recent

Sunday, 12 October 2025

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस- १० अक्तूबर



आलेख: गिरीन्द्र मोहन झा, 

विद्यालय अध्यापक, +२ भागीरथ उच्च विद्यालय

चैनपुर-पड़री, सहरसा


विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत 10 अक्तूबर, 1992 को हुई। इसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाना है। इसे पहली बार विश्व मानसिक स्वास्थ्य संघ की पहल पर मनाया गया, जो एक वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य संगठन है । इसके सदस्य 150 से अधिक देशों में है।इस दिन दुनियाभर में हजारों लोग मानसिक बीमारी और लोगों के जीवन पर इसके प्रमुख प्रभावों पर ध्यान देने के लिए इस वार्षिक जागरूकता कार्यक्रम को मनाते हैं।

इस वर्ष का थीम है, "सभी के लिए मानसिक स्वास्थ्य और भलाई सुनिश्चित करना वैश्विक प्राथमिकता ।"

.....वेद में शिवसंकल्पसूक्त में कहा गया है, 'तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु।' अर्थात् हमारा मन सदैव शुभ संकल्पों से युक्त हो । संकल्प की शक्ति को न्यूरोसाइंस भी मानता है। ऋग्वेद में कहा गया है, "आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वत: ।" अर्थात् चारों ओर से हमारे मन में अच्छे व कल्याणकारी विचार आते रहें।

.....सनातन शास्त्रों में मानस पूजा अर्थात् मन से की गयी पूजा का विशेष महत्व है। आदि शंकराचार्य ने मन को ही बन्धन और मोक्ष का कारण बताया है।

......श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, "इन्द्रियाणां मनश्चाश्मि(इन्द्रियों में मैं मन हूँ।)" उन्होंने कहा है, "जिनका मन वश में है, वे अपने मित्र हैं, जिनका मन वश में नहीं है, वे अपने शत्रु हैं। मन को वश में करना अत्यंत कठिन है, किन्तु इसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वश में किया जा सकता है। जो जितना सूक्ष्म होता है, वह उतना ही शक्तिशाली और श्रेष्ठ होता है। स्थूल शरीर से सूक्ष्म इन्द्रियां, इन्द्रियों से सूक्ष्म मन, मन से सूक्ष्म बुद्धि, बुद्धि से सूक्ष्म और श्रेष्ठ आत्मा है। बुद्धि के द्वारा मन को वश में करना चाहिए अर्थात् सही दिशा में लगाना चाहिए।"

......प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते ।

प्रसन्नचेतसो ह्याशु‌बुद्धिपर्यवतिष्ठते ।।(श्रीमद्भगवद्गीता, २/६५)

अर्थात् मन की प्रसन्नता प्राप्त होने पर सारे दुखों का नाश हो जाता है। प्रसन्नचित्त व्यक्ति की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है।


मन: प्रसाद सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रह: ।

भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ।।(श्रीमद्भगवद्गीता, १७/१६)

अर्थात् मन की प्रसन्नता, विनम्रता, मौन, आत्म-नियंत्रण, विचारों/भावों की शुद्धता ये सब मानसिक तप कहलाते हैं।

..... गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है, "कलि कर एक पुनीत प्रतापा । मानस पुण्य होय नहि पापा ।।"

..... स्वामी विवेकानंद ने कहा है, "मन जितना एकाग्र होता है, उतना ही एक लक्ष्य पर केन्द्रित होता है। यही रहस्य है।" उन्होंने कहा है, "मन को जो वस्तु प्रिय लगती है, उस पर मन एकाग्र रहता है। मन जिस वस्तु पर हम एकाग्र करते हैं, वह वस्तु हमें प्रिय लगने लगती है। एक कुरूप पुत्र अपनी मां को सर्वाधिक प्रिय लगता है, क्योंकि वह उस पर अपने मन को एकाग्र करती है।"

.....हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में, "सुख और दु:ख तो मन के विकल्प हैं। सुखी वही है, जिसका मन वश में है और दु:खी वही है, जिसका मन परवश है।"

......साहिर लुधियानवी के शब्दों में, "मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय । मन उजियारा जब जब होय, जग उजियारा होय ।"

......मन को प्रसन्नता, उत्साह, आत्मविश्वास और उत्तम विचारों से भरकर रखना चाहिए। ध्यान, प्राणायाम, आदि करके हम अपने मन को बलवान, उत्साही और ऊर्जावान बना सकते हैं। अपना कार्य करके, कर्त्तव्य-पालन करके जरूरतमंद लोगों की सेवा व सहायता करके हम अपने मन को संतोष और आनंद प्रदान कर सकते हैं। भारतीय दर्शन है, "सदा अपने आप में प्रसन्न रहें, शुभ सोचें, शुभ व श्रेष्ठ करें, शुभ देखें, शुभ सुनें।"

....हमारे व्यक्तित्व पर हमारे चिंतन का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। जैसा हम सोचते हैं, हमारा व्यक्तित्व वैसा ही बन जाने की दिशा में होता है।

No comments:

Post a Comment