भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य में कहा जाता है कि बेटी है तो कल है, बेटी से ही संसार है, बेटी ही संसार है। बेटी एक नहीं दो कुलों को तारती है। बेटी हर घर की आन-बान और शान है। दूसरी तरफ लड़कियों को सामाजिक कारणों से, भेदभाव भी किए जाते रहे हैं। उनके विकास और समान अधिकार के लिए दुनियाभर में वैचारिक लड़ाई भी लड़ी जाती रही है।
इसी परिप्रेक्ष्य को दृष्टिगत करते हुए दुनियाभर में हर साल ११ अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। इस दिन के मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन् २०११ में की गई थी। इस दिवस को मनाने के पीछे का उद्देश्य लड़कियों को विकास के अवसर प्रदान कर समाज में उनको सम्मान और अधिकार दिलाना है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हर साल पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।
जब से हमारा समाज विकसित और सुशिक्षित हुआ तब से ही कहा जाता है कि जब लड़कियाँ शिक्षित होती है तो देश ज्यादा मज़बूत और सशक्त होता है। इसीलिए विश्वभर में प्रत्येक वर्ष ११ अक्टूबर २०११ से अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बालिका दिवस मनाने की पहल एक ग़ैर सरकारी संगठन "प्लान इंटरनेशनल" नाम के प्रोजेक्ट के रूप में की गई थी। इस संगठन के द्वारा "क्योंकि मैं एक लड़की हूँ" नाम से जागरूकता अभियान की शुरुआत की गई थी। इसके बाद इस अभियान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पहुँचाने का संकल्प लिया गया। इसके लिए कनाडा सरकार से बातचीत की गई और उसके बाद कनाडा सरकार ने इसके प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा की ५५ वीं आम सभा में रखा। फिर संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह प्रस्ताव १९ दिसंबर २०११ को पारित किया गया और तब से विश्व में ११ अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत हुई।
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने के पीछे का उद्देश्य:
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने के पीछे का उद्देश्य लड़कियों के जीवन में आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में जागरुकता फैलाने और लड़कियों के अधिकारों से रू-ब-रू कराना है। अपने देश भारत में लड़कियों द्वारा सामना की जाने वाली सभी प्रकार की असमानताओं को दूर करने के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। बालिकाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के महत्व को भी गंभीरता से समझना है। इस दिवस की महत्ता यह भी है कि समाज में फैली कुरीतियों, ढकोसलों, सामाजिक वर्जनाओं, अंधविश्वासों को तो दूर भगाने हैं साथ ही साथ उनके साथ किए जा रहे अमानुषिक अत्याचार, अनाचार और मानसिक दबाव को भी कम करना है। एक ओर लड़कियों को कन्या रुप में पूजा जाता है दूसरी ओर इनके साथ शारीरिक और मानसिक शोषण भी किया जाता है। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश भारत में राष्ट्रीय बालिका दिवस २४ जनवरी को मनाया जाता है। भारत में सर्वप्रथम २००८ में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरूआत की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य लड़कियों और महिलाओं को जीवन भर जिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है उन कठिनाइयों को दूर करना और उससे ऊपर उठकर लड़कियों की मदद करना है।
भारत में अशिक्षा के कारण लड़का-लड़की में भेदभाव जगजाहिर है। कम उम्र में बाल विवाह, कम उम्र में माँ बनना यह बालिकाओं के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन जाता है और लड़कियाँ कुपोषण का शिकार भी हो जाती हैं। सामाजिक विषमताओं में भ्रूणहत्या, दहेज प्रथा, घर की सीमा के अंदर सीमित दायरे में रखना इन सभी को दूर करने के उद्देश्य को सामाजिक स्तर से भी दूर किया जा सकता है।
हमें लड़कियों को लड़के के समान देखना, समझना होगा और बराबरी का दर्जा देना होगा। प्रारंभिक से उच्च शिक्षा को प्रोत्साहन देना होगा। लड़कियों को सिर्फ विवाह, बच्चे पैदा करने की मशीन न समझकर देश के विकास से जोड़कर देखना होगा। तभी यह दिवस अपना सार्थक रुप ले सकेगा।
सुरेश कुमार गौरव
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
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