माता के नौ स्वरूपों की वैज्ञानिक व्याख्या - डॉ शालिनी कुमारी 'शिक्षिका' - Teachers of Bihar

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Sunday, 13 October 2024

माता के नौ स्वरूपों की वैज्ञानिक व्याख्या - डॉ शालिनी कुमारी 'शिक्षिका'


माँ जो सृष्टि स्वरूपा है। मांँ जो संसार की जननी है। संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति जिनके गर्भ से हुई। उनके नौ रूपों की उपासना अत्यंत प्राचीन काल से चली आ रही है ।वेदों, पुराणों व विभिन्न ऐतिहासिक ग्रन्थों में उनके विभिन्न स्वरूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है। 'तैत्तिरीय अरण्यकम' देवी उपनिषद, अथर्ववेद, ऋग्वेद आदि विभिन्न ग्रंथों में हम मां दुर्गा को 'स्त्री शक्ति का आइकन' अर्थात स्त्री की उन सभी स्वरूपों का ब्रांड एंबेसडर मान सकते हैं जो एक कन्या के रूप में जन्म के पश्चात उसके जीवन पर्यंत आगे बढ़ता है।  

माँ के प्रथम शैलपुत्री का रूप एवं उनके दोनों हाथों में कमल और त्रिशूल का धारण यह बताता है कि नवजात के पास असीम संभावना होती है। उसके पास प्रवीण शक्तियाँ होती हैं। अब हम पर निर्भर करता है कि उनके मस्तिष्क का विकास कमल स्वरूपा कोमलांगी सौम्या विचारधारा में भर दे। त्रिशूल स्वरूपा विध्वंस की विचारधारा उनके मस्तिष्क में उपजाएँ। माता का शैलपुत्री रूप बताता है कि यह निर्भर है अपने जन्मदाताओं पर पालन कर्ताओं पर। उन्हीं में उनकी शक्तियों के सदुपयोग अथवा दुरुपयोग की क्षमताएँ निहितार्थ है। 


माँ का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी शैशवावस्था के उपरांत बाल्यावस्था को दर्शाता है। जब एक बालक विद्यालय जाना प्रारंभ करता है, वह वहाँ शिक्षा ग्रहण करने के लिए पूर्ण रूप से खुद को ब्रह्म में लीन करता है। धैर्य पूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।हमारे प्राचीन इतिहास की बात करें तो गुरुकुल में अध्ययन करने हेतु पूर्ण अनुशासन रखना होता था। सीखने की सही उम्र में मस्तिष्क को एकाग्रचित करना पड़ता है। माता ब्रह्मचारिणी अपने सफेद वस्त्रों से हमेंज्ञ ज्ञान देती है कि भौतिकताओं से भी विलग रहकर ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। सांसारिक मोह से दूर त्याग, तपस्या की भावना को बलवती करना ही माता अपने इस स्वरूप में बताती है। माता ने हाथों में कमंडल और माला धारण किया है। जिसका अर्थ है कि ज्ञान एवं समर्पण की यदि आप जीवन में सफल होना चाहते हैं तो बहुत आवश्यक है।


माँ का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा है। इस स्वरूप में माँ के १० हाथ हैं सभी हाथों में माँ ने विभिन्न अस्त्र और शस्त्र धारण किया है जिसका अर्थ है जब आप शिक्षा को पूरी तरह से ग्रहण करते हैं तो विभिन्न प्रकार की तकनीकियों से लैस हो जाते हैं। आप में विभिन्न गतिविधियाँ, आचरण की अभिव्यक्ति का गुण भर जाता है।

माता का चौथा स्वरूप कूष्मांडा का है कूष्मांडा माता का यह स्वरूप एक गर्भवती स्त्री को दर्शाता है जो अपनी उष्मा से अपने शरीर में पल रहे नवजात को निषेचित करती है। ठीक उसी प्रकार जैसे माँ ने अपने कूष्मांडा स्वरूप में इस नवजात को गर्भ में धारण किया है। हमारे पौराणिक कथाओं में मटके को गर्भ का प्रतीक माना जाता है। माता का यह स्वरूप इसी रूप को परिलक्षित करता है।

माता का पांचवाँ स्वरूप स्कंद माता का है अर्थात स्त्री जब शिशु को जन्म देती है वह उसकी माता होती है। इसलिए वह अपने शिशु के नाम से उच्चारित होती है। यह बहुत गर्व, आनंद और उत्सव का वक्त होता है। जब कोई महिला माँ बन जाती है तो अनायास ही उसमें वात्सल्यता के भाव प्रकट हो जाते हैं। माता के इस रूप में उनके सभी हाथ खाली हैं। उन्होंने कोई भी शास्त्र या अस्त्र धारण नहीं किया है। अभी उनका सारा ध्यान अपने शिशु पर है। शिशु के विकास पर है तो माँ का यह स्वरूप बताता है कि जब एक स्त्री मांँ बनती है तो वह संपूर्ण संसार के भौतिकताओं से स्वत: खुद को भी अलग कर लेती है।

माता का षष्ठ अवतार कात्यायनी स्वरूप है। जब एक स्त्री माँ बन जाती है तो वह सर्वशक्तिमान होती है। वह अपने संतान की रक्षा करती है। ठीक उसी प्रकार माँ ने समस्त संसार को राक्षसों के आतंक से मुक्त बनाया। माँ ने इसी रूप में महिषासुर को मारा है।माँ दुर्गा बताती है कि एक माँ अपने शिशु अर्थात सृष्टि को संपूर्ण व्यभिचारों से, बाहरी आक्रमण से, रक्षा करती है। माँ का यह शक्ति स्वरूप एक स्त्री के माँ बन जाने के बाद की शक्ति को प्रदर्शित करती है। माँ बनने के बाद स्त्री किसी पर निर्भर नहीं रहती। वह स्वयं में परिपूर्ण हो जाती है।

माँ का सातवांँ स्वरूप कालरात्रि का है,जिसका अर्थ है काल को निकल जाने वाली। कालरात्रि का अर्थ है अंधेरी रात। सृष्टि का विनाशकारी रूप, जिसे माँ ने अपने इस रूप में सँभाला है। माता का यह रूप अंधकार, अज्ञान व व्यभिचार को दूर करता है। इस रूप में माँ ने रक्तबीज को मारा है। यह माँ का काफी रौद्र रूप है। इस रूप में माँ के क्रोध को शांत करने के लिए उनके पति शिव को स्वयं खाना पड़ा था। वह भी बालक का रूप लेकर। माँ के इस स्वरूप से हमें ज्ञान प्राप्त होता है कि एक स्त्री यदि सृष्टि का निर्माण अपने वात्सल्यता से कर सकती है तो उसका विनाश करने की क्षमता भी रखती है।

माँ का आठवाँ स्वरूप महागौरी का है जो यह बताता है कि पुनः वही स्त्री शांत, सौम्य होकर मधुरता को भी महत्त्व देती है। वह स्त्री अपने परिवार के साथ रहकर मिलने वाले सुकून को दर्शाती है। इतने सारे रूपों से गुजर कर माँ हमें ज्ञान देती है कि सृष्टि का निर्माण, सृष्टि में प्रलय और इन सब के बाद भी यानी अपने समस्त दायित्व का निर्वहन करने के बावजूद। एक स्त्री की प्राथमिकता उसका स्वयं का परिवार होता है।

इन सब के बाद अंत में आता है माँ का सिद्धिदात्री रूप जो माँ का नवम स्वरूप है। एक स्त्री अपने जीवन में जन्म से लेकर बाल्यावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था से गुजरते हुए अब तक बहुत ही खट्टे मीठे अनुभवों से गुजरती है। अब यहाँ वह अपने अनुभवों का सदुपयोग आगे की पीढ़ी को सही मार्गदर्शन देने के लिए करती है। अब वह अपने अनुभवों से समस्त विश्व को कल्याण का आशीर्वाद देती है। यही तो है हमारी मातृ-शक्ति की विशेषता जिसको समझना थोड़ा कठिन है परंतु असंभव भी नहीं।



डॉ शालिनी कुमारी 'शिक्षिका' 

मध्य विद्यालय शंकरपुर चौवनियाँ

नाथनगर, भागलपुर

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