जरा कुछ हट के करें प्रयोग, परिणाम कुछ अलग ही होगा।
एक दिलचस्प कहानी है। एक प्रो. साहब अपने जमाने की मशहूर नायिका मधुबाला के बड़े फैन थे। एक दिन की बात है। वे बस में सफर कर रहे थे। उनके कानों में मुग़ल-ए-आज़म का कर्णप्रिय फेवरिट गाना सुनाई पड़ा।
"जब प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया है चोरी नहीं की,
छुप-छुप आहें भरना क्या
जब प्यार किया तो डरना क्या?"
प्रो. साहब सहसा इस दिलगीर गाने को सुनते ही कान खड़का लिया और
चल रहे वीडियो पर नजर डाली। यह क्या? अनारकली तो जींस-पैंट पहने उछल-कूद मचा रही है और शहजादा सलीम शर्ट के दामन को कमर पर बांधे हुए हाथ में गुलाब लिए डांस कर रहा है। तभी बगल में बैठे एक लड़के ने प्रो. साहब के भाव-भंगिमा और क्रियाशीलता को देखते हुए बताया, "यह रीमिक्स (Remix ) गाना है सर।" रीमिक्स गाना क्या होता है? गाना बहुत पुराना है लेकिन उसे नये ढंग से फिल्माया गया है और एल्बम बनाया गया है, जिसमें नया नया परिवेश और नया चलन दिखाया गया है। इसी को कहते हैं: पुराने गाने में नया तड़का। नई बोतल में पुरानी--? इसमें शहजादा सलीम और अनारकली तो----! प्रो. साहब को इस ट्रेंड्स को देख-सुनकर अल्पज्ञ होने का एहसास हुआ। आज के छोरे-छोरियों के बीच तो हम जीरो हीं हैं। आज नया चलन, नई रीत,नई सोच, नया व्यवहार, नई तकनीक, सब अलग हैं। प्रो साहब पुराने संस्कार के तराजू पर नये चलन को तौलने लगे हैं और फिर वे अपने-आप को समझा लिया। यह तो जेनरेशन गैप (Generation Gap) है। कोई भी नवाचार (Innovation) को तो आज तस्लीम करना ही होगा। Survival of the fittest में फिट नहीं बैठने पर डायनासौर जैसे विशालकाय प्राणी भी जब दुनिया से उठ गया तो हम लोग कौन खेत की मूली हैं ? आज Survival of the innovative civil society में फिट न बैठने पर किनारे कर दिए जाएंगे। प्रो. साहब की नजर फिर एक युवक के जींस पर पड़ी। वह खाते- पीते घर का लग रहा था। प्रो. साहब ने पूछा, "तुमने फटे जींस को क्यों पहन रखा है?" यह तो फिल्मी स्टाइल है सर। तो क्या तुम फिल्मों में काम करते हो? नहीं, लेकिन फिल्मों में काम करना चाहता हूं। सर, यह तो आपुन का स्टाइल है, क्या प्रॉब्लम है? प्रो. साहब के जुबान से अनायास निकल गए। यह तो "नवाचारों का नवाचार (Innovation of the innovations) है"।
एच॰जी॰ बार्नेट के अनुसार,"कोई विचार, व्यवहार या वस्तु जो नया है एवं वर्तमान अवस्थित प्रारूप से जो गुणात्मक दृष्टि से भिन्न है, उसे नवाचार कहते हैं।" ई॰एम॰ रोजर्स के अनुसार, "नवाचार एक ऐसा विचार है जिसमें व्यक्ति नवीनता का अनुभव करता है।" नवाचार को अंगीकार करने वाला इसे एक नई चीज के रूप में देखता और अनुभव करता है। एम॰वी॰ माइक के अनुसार " एक नवाचार जानबूझकर किया जाने वाला नवीन और विशिष्ट परिवर्तन है, जिसे किसी प्रणाली के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अधिक प्रभावकारी माना जाता है।" प्रभावी शिक्षण के लिए पाठ्यक्रम के अनुसार नवीन एवं विशिष्ट परिवर्तन लाना होता है।
मानव ने काफी उन्नति किया। नित् नवीन प्रयोग किया----? लेकिन नैतिकता चूल्हे में गयी। इंसान मंगल ग्रह पर जाने वाला है। इंसान ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) प्रोग्राम कर दिया है। AI इंसान के लिए खतरा बन सकता है, इसलिए AI विशेषज्ञ कनाडावासी जैक पाॅल्सन AI के क्षेत्र में शोध की एक सकारात्मक संस्कृति विकसित करने पर जोर दे रहे हैं। AI यदि री-प्रोग्राम (Re-programme) स्वयं कर ले और अपने- आप को उन्नत (Improve) कर ले तो यह इंसान को भी छुट्टी कर देगा और तबाह कर देगा। मशीन इंसान के काम को आसान तो किया, लेकिन मशीनीकरण ने इंसान को संवेदनहीन भी बना दिया। इसलिए प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नैतिकता सुनिश्चित होनी चाहिए। किसी भी ऐसे शोध को हतोत्साहित किया जाए, जिसका नकारात्मक इस्तेमाल मुमकिन हो।
आज शिक्षा में नवोन्मेष या नवाचार की आवश्यकता है, क्योंकि शिक्षा ही जीवन है और जीवन ही शिक्षा है। जीवन में मनुष्य को हमेशा प्रगतिशील रहना चाहिये। शिक्षा समाज का आईना है। शिक्षक नए शैक्षणिक दृष्टिकोण, प्रौद्योगिकी, स्थानीय पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम डिजाइन एवं मूल्यांकन की तकनीक, विधि का प्रयोग नवाचार की दृष्टि से देख सकता है, क्योंकि नवाचार एक अनुप्रयोग (Application) है।
विद्यालय में नवाचार चेतना-सत्र से कालांत तक शिक्षकों के निर्देशन में कलात्मक ढंग से किया जा सकता है। चेतना-सत्र के दौरान मैदान में बच्चों को कलात्मक ढंग से खड़ा किया जा सकता है--कमल, गुलाब, INDIA, गोलाकार, अंडाकार, षष्ठभुजाकार, अष्ठभुजाकार, वर्गाकार, आयताकार, त्रिभुजाकार, भारत आदि की तरह आकृतियां बनाई जा सकती हैं। प्रार्थना, राष्ट्रीय गीत, प्रेरणा गीत प्रतिदिन बदल-बदल कर यहां तक कि उसे आंचलिक या स्थानीय भाषा में भी गढ़ी और गाई जा सकती है।
कभी ---
तू ही राम है, तू रहीम है
तू करीम, कृष्ण खुदा हुआ ।
तो कभी ---
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी।
तो कभी ---
ऐ मालिक तेरे बंदे हम। इत्यादि गाया जा सकता है। चेतना-सत्र को कभी हिंदी तो कभी अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषा में भी चलाया जा सकता है।
O, Father who art in heaven, hallowed be thy name.
Father in Heaven who lovest all,
Oh, help thy children when they call.
Great is thy faithfulness, O, God my father,
There is no shadow of turning with thee.
Motivation Song---
We shall overcome some day,
Deep in my heart I do believe.
---We shall live in peace someday.
शिक्षक /बालक/ बालिका और VSS को टीम वर्क करना होगा। विद्यालय की दीवारों पर छात्र-छात्राओं और कार्यक्रम के विवरण के साथ-साथ विद्वानों के प्रेरक वाक्य, राष्ट्रीय नायकों के चित्र और परिचय, चित्रकला, डिस्प्ले बोर्ड, बाल समाचार पत्र आदि के लिए स्थान दी जानी चाहिए। चिल्ड्रन कॉर्नर और शिकायत पेटी की भी व्यवस्था हो। आज का विचार, बाल संसद, मीना मंच के पदाधिकारियों के नाम फ्लैक्स बोर्ड पर प्रदर्शित हो। वर्ग-कक्ष ऐसा हो कि प्रवेश करते ही जीवंत लगे, शिक्षा का स्वर्ग की अनुभूति हो। शिक्षण-अधिगम जीवंत हो चले। वर्ग-कक्ष को जीवंत बनाए रखने के लिए गतिविधि कोना (Activity Corner), बच्चों के द्वारा बनाए गए टेरी कोटा, चित्र, मॉडल, कोलाज, फूल-पत्तियां से सजाए जाने चाहिए। हां, इस बात को ध्यान में रखना होगा कि बच्चे के द्वारा सृजित आकृति श्यामपट्ट की तरफ न लगाया जाए। अक्सर आकर्षक देवी-देवताओं की तस्वीरें श्यामपट्ट की ओर ही लगा दी जाती है, उसे अगल-बगल के दीवारों पर ही लगाया जाना चाहिए; क्योंकि चित्रों पर बच्चों की नजरें चली जाती हैं और शिक्षण-अधिगम पर बुरा असर भी पड़ता है। मॉडल, टेरी कोटा ( मिट्टी के खिलौने को पका दिया जाता है), कोलाज, TLM आदि को दीवारों में काष्ठ की तख्ती को फिट कर, उसके ऊपर रखे जा सकते हैं। बच्चे अपने सृजन को देखकर गर्व महसूस करते हैं। शिक्षक और विद्यार्थियों के गतिविधियों का दस्तावेजीकरण (Documentation) हो ताकि उसका उपयोग बाद में बच्चे कर सकें। इसे बाल-निर्मित डब्बे में एक कोने में सहेजा जा सकता है। परियोजना कार्य की रिपोर्टिंग को पुस्तक का रूप देकर कार्यालय की शोभा बनाया जाए ताकि कोई भी आगन्तुक अनुश्रवणक (Monitor) देखकर प्रभावित हुए बिना न रहे और अन्य विद्यार्थी देखकर सीखे बिना न रह सके। छोटे-छोटे बच्चे हरे-हरे पत्तों को किताब और अखबार में रखकर हरबेरियम (Herbarium) बना सकते हैं। पत्तों के विभिन्न आकार दे सकते हैं। शिक्षक पत्तों से ज्यामितिय आकार बनवाकर गणित पढ़ा सकते हैं। अखबार का इस्तेमाल भाषा शिक्षण में ही नहीं होता, बल्कि विभिन्न पैटर्न पर आकृतियां एवं कलाकारी बनाई जा सकती है। कपड़ों से बच्चों के द्वारा ही पशु-पक्षी, कठपुतलियां, गुड़िया एवं मिट्टी तथा काष्ठ की अनेकों सामग्रियां बनाए जा सकते हैं। पाठ्यक्रम के अनुसार कठपुतली को शिक्षण में उपयोग किया जा सकता है और कठपुतली नृत्य (Puppet Dance) से नाट्य-प्रदर्शन किया जा सकता है। बच्चों में कौतुहल पैदा किया जा सकता है। शिक्षक सिर्फ सुगमकर्ता के रूप में रहें। शिक्षक उन्हें पैटर्न और मार्गदर्शन दें। रंगोली, कोलाज, मेहंदी प्रतियोगिता, खेल, गणित प्रतियोगिता, बुद्धि जांच आदि करवाई जा सकती है। बाल मेला का आयोजन भी नवाचार है। बच्चों के द्वारा निर्मित सामानों को अभिभावक, आमजन और शिक्षक जब खरीदेंगे तो उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा और पेशेवर अभिवृत्ति आएगी। यह विधा जीवन शिक्षा है जो जीवन मूल्यों को आगे बढ़ाएगी। कला-केंद्रित शिक्षा और परियोजना को सीखने के लिए सीसीआरटी में प्रशिक्षण का प्रावधान है, जहां कला आधारित शिक्षण अधिगम सामग्री और पाठ योजना बनाने के लिए सिखाया जाता है। बच्चों को नाट्य कला एवं नाट्य लेखन के लिए प्रोत्साहित करें। फिर उन्हें अभ्यास (Rehearsal) से निपुण कराएंगे। भाषण कला (Elocution) सिखाएं। मंचन ऐसा हो कि नाटक के दौरान खामोशी (Pin Drop Silence) हो। संवाद बोलते समय बच्चों के चेहरे दर्शक के सामने हों। इन सब चीजों के लिए शिक्षकों को कड़ी मेहनत करने की जरूरत है।
बाल संसद भारतीय संसद का प्रतिरूप है, जिसमें प्रधानमंत्री, उप प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, बागवानी मंत्री,आपदा मंत्री से लेकर शिक्षा मंत्री तक होते हैं। बाल संसद की सक्रियता नेतृत्व क्षमता लाती है। विद्यालय कार्य योजना में बच्चों की भागीदारी शिक्षकों के थकान को भी कम करेगी।
आज अल्प समय में गतिविधियों के द्वारा अवधारणा को स्पष्ट करने की जरूरत है और अधिगम व्यावहारिक एवं टिकाऊ भी हो। शिक्षक नवाचार के द्वारा बच्चों में शिक्षा की प्यास बढ़ा दें, ताकि वे स्वयं समस्या का हल निकाल लें; हालांकि प्यास बुझनी नहीं चाहिए। प्यास बुझने का मतलब जिज्ञासाओं का अंत और ज्ञान के दरवाजे को बंद कर देना है। ' कौवा और घड़ा ' में क्या हुआ ? वह कैसे हल निकालता है? ऐसा भी तो हो सकता है कि कौवा घड़े में कंकड़ डालता गया और पानी ऊपर आया ही नहीं। शायद कौवा, जिसे कंकड़ समझ रहा है, स्पंज हो। यदि 'कौवा और घड़ा' की कहानी से बच्चों में भाषा-रचना, विज्ञान की अवधारणा, गणित, आयतन, घनत्व, आर्किमिडीज का सिद्धांत आदि समझा दें तो यह शिक्षण में उत्कृष्ट नवाचार होगा और यह संपूर्ण देशी होगा। मिट्टी से घड़ा बनाया गया। कच्ची मिट्टी और पक्की मिट्टी में क्या अंतर है ? मिट्टी क्या पदार्थ हैं ? यह भौतिकी का प्रश्न है। मिट्टी कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर है: चिकनी, दोमट और बलुआ मिट्टी। घड़ा किस मिट्टी से बनती है ? चिकनी मिट्टी से। यह भूगोल है। उत्खनन में मिले ब्लैक या नॉर्दर्न ग्रे पेंटेड वेयर (Black/Northern Gray Painted Ware) की बात करें तो पुरातत्व विज्ञान होगा। चाक पर कुम्हार घड़े को कैसे बनाता है ? तो यह कला एवं कौशल है। ये सारी विधाएं शिक्षकों और बच्चों के द्वारा रचित नवाचार हैं। पहले के बच्चे चोर ,सिपाही, राजा, मंत्री और स्वनिर्मित जहाज से खेलते थे। दो खपड़े की टोंटियों में कागज को साट लिए जाते थे और फिर एक लंबा-सा धागा लिया जाता था। उन धागों के दोनों सिरों में तिनके को बांध दिए जाते थे। एक तिनके को एक टोंटी में तो दूसरे तिनके को दूसरे टोंटी में छेद कर डाल दिये जाते थे, फिर दो लड़के दूर जाकर एवं धागे को खींचकर टेलीफोन की तरह बातें करते थे। एक-दूसरे को सुनाई पड़ती थी। आज बहुत छोटे बच्चे भी मोबाइल से इंजॉय करते हैं। आज के बच्चे एके-47 और एके-56 से भी खतरनाक खिलौने से खेलता है। बच्ची पहले गुड्डे-गुड़िया और चूल्हे-चौके आदि से खेलती थी, अब वे सिलेंडर और ओवेन पर पकाने का नकल करती हैं। आज खिलौने का व्यापार डायमंड बेचने जैसा है, क्योंकि यह बच्चों के संवेदना से जुड़ा हुआ है।
राजा हरिश्चंद्र ' से ' आलम आरा' तक और आज तक की मार-धाड़, पाश्विक कृतियों को मात देने वाली इंसानी फितरत वाली फिल्में समाज का आईना है । 50-60 के दशक के फिल्मों में यदि कली खिलकर फूल बन जाते या मोमबत्ती गुल हो जाती तो यह समझ लिया जाता था कि नायक और नायिका का मिलन हो गया। नायिका पूरे के पूरे गाने पेड़ के नीचे आंख-मटक्का कर हल्की थिरकन के साथ गा लेती थी और हीरो हाथ में गुलाब लेकर दूर से ही पगलेटी करता था। आज तो हीरो हीरोइन एक दूसरे के दिल में ही नहीं बल्कि एक दूसरे के जिस्म-ओ-जां बन जाते हैं और हद से पार होकर एक दूसरे में विलीन हो, परमानंद को प्राप्त हो जाते हैं-'संभोग से समाधि की ओर।'
नवाचार का रोड मैप (Road Map) शिक्षण विधियों को अद्यतन करता है। ICT के बिना ग्रामीण परिवेश में बेहतर शिक्षण को संभव बनाने की चुनौती भी एक नवाचार है। उपलब्ध साधनों का प्रयोग कर नवाचार का उद्घाटन शिक्षक कर सकते हैं। शिक्षक यदि कुछ भी सिखाना चाहे तो किसी युक्ति से सीखा ही देगा और वही नवाचार होगा। शिक्षक सुविधाविहीन स्थिति में लूडो के पासे से घन, ईंट से घनाभ, रिंग-बॉल से वृत, बाॅल से गोला, बगीचे से जीव विज्ञान, पैसों से इतिहास, सूर्य से प्रकाश-संश्लेषण, चांद-तारों से नक्षत्र विज्ञान, आंचलिक भाषा को मानक भाषा से जोड़ना, गिनती, पहाड़े, जोड़, घटाव और भाग आदि बच्चों को सहज सीखा सकते हैं। उदाहरण स्वरूप- बाला (BALA-BUILDING as LEARNING AID) नवाचार का एक अच्छा उदाहरण है। जमीन, दीवार, दरवाजे, खिड़कियों आदि पर इस तरह की आकृतियां बनाई जा सकतीं हैं कि बच्चे उसे देख-देख कर विभिन्न तरह के अक्षरों, गणितीय आकृतियों, पशु- पक्षियों और कला-कृतियों आदि को पहचान पाते हैं। गेट पर D B H A बनाया जा सकता है तो रास्ते में हिंदी वर्णों को। इस प्रकार विद्यालय के आधारभूत संरचनाओं में सीखने के बिंदुओं को डाल कर शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया की जा सकती है। गणित की गतिविधि है। ढेर सारे स्ट्रा लिए जा सकते हैं। 10-10 स्ट्रा का बंडल, 100-100 का बंडल, 1000-1000 का बंडल से क्रमशः इकाई, दहाई, सैकड़े और हजार की अवधारणा बता सकते हैं। यथा,
45= 10-10 के 4 बंडल और 5 स्ट्रा =10×4+5
उसी तरह 475= 100-100 के 4 बंडल,10-10 के 7 बंडल और 5 स्ट्रा। =100×4+10×7+5
निज मान और स्थानीय मान (Face Value and Place Value ) को सरल ढंग से समझाने के लिए यह एक अच्छा नवाचार हो सकता है।
3 विद्यार्थियों-सोहन, मोहन और किशन को खड़ा किया गया। उनके पाॅकेट पर क्रमशः 8, 6,7 टैग कर दिया गया। सोहन का मान 8, मोहन का मान 6 और किशन का मान 7 है। फिर सोहन के स्थान पर किशन को और किशन के स्थान पर सोहन को, कर बच्चों से पूछेंगे। फिर बच्चे अपने-आप सोहन का मान 8, किशन का मान 7 बताएंगे ही बताएंगे। इसी तरह उलट-पुलट कर निजमान की अवधारणा दी जा सकती है। उदाहरण-
8 6 7
सोहन मोहन किशन
6 8 7
मोहन सोहन किशन
7 8 6
किशन सोहन मोहन
स्थानीय मान की अवधारणा के लिए सोहन, मोहन, किशन के पीछे रीता, गीता, सुनीता क्रमशः 1, 10 और 100 का बैनर लेकर पीछे खड़े हो जाएंगे। इस प्रकार सोहन का मान 8 ,मोहन का मान 60 और किशन का मान 700 हुआ। इसे इस प्रकार समझें-
8 6 7
सोहन मोहन किशन
रीता गीता सुनीता
100 10 1
सैकड़ा दहाई इकाई
स्थानीय मान इस प्रकार हुआ।
किशन =7×1=7
मोहन =6×10=60
सोहन =8×100=800
इसी प्रकार, इसे उलट-पुलट कर अवधारणा पक्की की जा सकती है।
7 8 6
किशन सोहन मोहन
रीता गीता सुनीता
100 10 1
स्थानीय मान-
मोहन =6×1=6
सोहन=8×10=80
किशन=7×100=700
नवाचारी औसत गतिविधि: औसत को अल्प समय में इस प्रकार सीखाया जा सकता है। विद्यालय के परिसर से 25 कंकड़ ले लें। 5 बच्चों को खड़ा करें और उसे जितना मन हो, उसे अलग-अलग संख्याओं में कंकड़ बांट दें। मान लें कि ये कंकड़ नहीं मिठाइयां हैं। रोहन को 8, सुजल को 1, पूनम को 4 और नीतू को 7 तथा मनीष को 5 कंकड़ दें। बच्चों से पूछेंगे क्या यह इंसाफ है ? नहीं। ऐसा होना चाहिए ? नहीं, सर। सब को बराबर- बराबर मिठाइयां मिलनी चाहिए। तो हम किसी बच्चे को बुलाएंगे और उसे बराबर-बराबर भागों में पांचों को बांटने के लिए कहेंगे। उसका तरीका यह हो सकता है कि पहले को 1, दूसरे को 1, तीसरे को 1, चौथे और पांचवें को भी एक-एक दें। बांटने की क्रिया तब तक किया जाए, जब तक कि वे खत्म न हो जाएं, फिर उन पांचों बच्चों से पूछेंगे कि आप लोगों के पास कितनी- कितनी मिठाइयां हैं। अब बराबर-बराबर सब को 5-5 मिठाइयां मिल गईं। यही तो औसत मिठाइयां हैं। इस तरह, 8, 1, 4, 7 एवं 5 का औसत 5 है। इसे इस प्रकार लिखा जाता है-
8+1+4+7+5 25
-----------------= ---
5 5
या औसत = 5
नवाचारी शिक्षण एक अनूठी शैली है जो विद्यार्थियों में अधिगम के प्रति जुनून भर देता है। नवाचारी शिक्षण-अधिगम विधि या प्रविधि बच्चों में दिलचस्पी, जिज्ञासा और तल्लीनता भर देती है। शिक्षक यदि स्वरचित नवाचार का प्रयोग करें तो बच्चों के बस्ते का बोझ कम होगा और मानसिक बोझ ( Learning without burden) भी। छोटे बच्चे को विद्यालय में पुस्तक लाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और वे विद्यालय परिसर तथा वर्ग-कक्ष में आनंद में सीखेंगे।
विज्ञान,भाषा, गणित, शारीरिक शिक्षा आदि एक ही साथ केवल एक गतिविधि से सिखाया जा सकता है। बच्चों को निर्देशानुसार अभिनय करने को कहें। निर्देशन इस प्रकार होगा।
बदबू आती है तो क्या करते हैं? नाक पकड़ लेते हैं। जोर से आवाज सुनने पर क्या करते हैं ? कान पर हथेली रख लेते हैं। कैसे खाते हैं ? मजे लेकर। किस अंग से ? मुंह से और दांत से। सोते कैसे हैं ? आंखें बंद करके। पानी गर्म है, तुम कैसे पता कर सकते हो ? पानी में उंगली डालकर। अब इससे शरीर के अंगों और उसके कार्य और ज्ञान-इंद्रियों को बता सकते हैं। इसी से क्रिया (Verb ) को समझा सकते हैं, यथा,- पकड़ना-Catch, मजे लेना-Taste, करना-Do, रखना-Put, सोना- Sleep (Action is a verb and verb is an action), इस गतिविधि में शारीरिक हलचल तो होता ही है, मनोरंजन भी होता है।
नवाचार में वर्ग-स्तर को ध्यान में रखना जरूरी है। ऐसा नहीं हो कि घड़ी और समय की अवधारणा पांचवी कक्षा में देने के बजाय इसे आठवीं कक्षा में दिया जा रहा है कि जब दोनों छोटे-बड़े कांटे एक साथ मिल जाते हैं तो 12:00 बज जाते हैं।
नवीन प्रक्रिया पूर्णत: शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच अंतः क्रिया (Interaction) है। अंतः क्रिया को इस उदाहरण से समझा जा सकता है। चीनी मीठी होती है या तीखी ? उत्तर है :मीठी। क्या हथेली पर इसे रखेंगे तो भी यह मीठी लगेगी ? उत्तर है: नहीं। यदि जिह्वा पर चीनी को रखेंगे तो यह मीठी महसूस होती है। मतलब कि चीनी संवेदनशील ग्रंथि से घुलने-मिलने के बाद ही मीठी लगती है, अन्यथा नहीं। यही अंतः क्रिया कहलाती है। शिक्षक और बच्चों में इसी तरह की क्रिया-प्रतिक्रिया होनी चाहिए, तब बच्चे ग्रहण कर सकेंगे। विद्यालय केवल चहारदीवारी से बना भवन नहीं है। विद्यालय वह है, जहां शिक्षक और विद्यार्थी उचित वातावरण में अंतःक्रिया करते नजर आते हों।
अधिगम-योजना (Learning Plan) एक अभिनव प्रयोग है। सीखने की योजना अनुदेशन और आकलन का व्यापक, अनुकूलित एवं बहु-दिवसीय योजना है, यह ऐसा ढांचा है जिसके भीतर प्रश्न, रीडिंग और अनुदेशनात्मक रणनीति (Strategy) एवं आकलन शामिल है। मूल्यांकन Common Core State Standard से जुड़े होते हैं। अतः उपलब्धि के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा एवं राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की रूपरेखा को ध्यान में रखकर अधिगम योजना बनाई जाती है। यह योजना बिल्कुल सृजनवाद (Constructivism) की नींव पर टिकी होती है, जिसमें बच्चे को ज्ञान का सृजक समझा जाता है। पाठ योजना पुरानी घिसी-पिटी योजना है, जिसमें शायद शिक्षक वही उत्तर की अपेक्षा करते हैं जो वे प्रश्न करते हैं; जबकि वर्ग में योजना की योजना (Plan of the plans) होनी चाहिए। वातावरण ऐसा हो, जहां बच्चे प्रश्नों की बौछार करें, जिसके उत्तर बच्चों के बीच से ही निकल कर आए और यह शिक्षण-कला शिक्षकों में होनी चाहिए। शिक्षक बीच में प्रश्न उठाए और समस्या का समाधान मिलकर निकालें। पाठ योजना को नवीन आयाम अधिगम-योजना ही देता है। पाठ योजना को ज्ञान, भाव और कौशल से जोड़ना चाहिए, तो हमेशा से प्रयोग में लाए जाने वाले पाठ योजना धारदार हो जाएगी। योजना में लचीलापन लाने के लिए गतिविधि आधारित नवाचार जोड़ना प्रभावी होता है।
कुछ बच्चे पास ( Pass), कुछ छिजित (Drop out) और कुछ कमजोर होने के कारण उसी वर्ग में रह जाते हैं, हालांकि अब उसी वर्ग में रहने (Repeater) का प्रावधान आरटीई (RTE) के अनुसार नहीं है। छिजन कम करने के लिए प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। अनामांकित बच्चों को खोज-खोज कर नामांकन कराया जा रहा है और विशेष प्रशिक्षण (Special Training) देकर मुख्यधारा (Streamline) किया जा रहा है। RTE के तहत उसे आयु-वर्ग के अनुसार ही नामांकन दिया जाता है। इसका मनोवैज्ञानिक कारण है कि बड़े बच्चे छोटे बच्चों के साथ रहते हैं तो उनमें हीन भावना पनप सकती है या वे छोटे-छोटे बच्चों पर धौंस भी जमा सकते हैं। किशोर किशोरी हम उम्र के साथ रहना पसंद करते हैं और उनसे खुलकर बातें करते हैं। किशोरियों को तो कुछ अलग अपनी निजी समस्याएं भी होती हैं, जिसे अपने हम उम्र सहेलियों से ही साझा करते हैं, वे उनसे कुछ-कुछ सीखते भी रहते हैं। शिक्षार्थी को शिक्षार्थी से सीखाने की भी अच्छी तकनीक है।
मैदान में 6-7 की संख्या में बच्चे गोलाकार बनाकर किसी एक विषय-वस्तु को अध्ययन करेंगे और बच्चे ही आपस में चर्चा करेंगे। अर्थ और भाव आपस में मिल-जुल कर निकाल लेंगे। उठाए गये प्रश्नों को हल करेंगे। बच्चे स्वयं शिक्षण-अधिगम परस्पर करते हैं। इसे वर्ग-कक्ष में भी एक ही टेबल पर बैठे बच्चों के द्वारा करवाया जा सकता है। फर्ज कीजिए अंग्रेजी में कोई कहानी है। उसका अर्थ और भाव बच्चे आपस में मिलकर निकालते हैं। यदि हल नहीं निकल पाए तो सहपाठियों की सहायता से हल निकालें। इस तरह यह प्रक्रिया संपूर्ण वर्ग-कक्ष में आगे-पीछे के साथियों में पट जाएगी और अवधारणा संपूर्ण वर्ग-कक्ष के बच्चों में सशक्त हो जाएगी। यह तकनीक AI से भी धांसू है जो शिक्षक रहित शिक्षण-अधिगम नवाचार (Teacherless Teaching-Learning Innovation ) है।
वर्ग-कक्ष के सभी बच्चों की जांच कर प्रारंभिक समूह, शब्द समूह, अनुच्छेद समूह और कहानी समूह का निर्माण किया जाता है, सभी को कहानी समूह तक लाने का लक्ष्य होता है, हालांकि यह कम कारगर है; इसमें बच्चों से बच्चे को सीखने का अवसर नहीं मिलता, क्योंकि समूह एक ही स्तर का होता है दो ही बातें हो सकती हैं, बच्चे को निम्न समूह से उच्च समूह में न जाने का मलाल हो सकता है या बिना नवाचार के अक्षम शिक्षण से बच्चों में हीन भावना पैदा हो सकती है। यदि शिक्षक ऊपर के समूह में ले जाने के लिए बच्चों को प्रतिस्पर्धी बना दें, तो अच्छी उपलब्धि हो सकती है। यही तकनीक गणित में संक्रियाओं का प्रयोग कर हल निकालने की तरकीब दी जा सकती है। नवाचारी शिक्षण कर मिडलाइन (Midline) टेस्ट कर उपलब्धि देखी जाती है और अंत में इंड लाइन (End Line ) टेस्ट किया जाता है। यदि उपलब्धि कहानी पढ़ने तक ले जाती है तो यह तकनीक अच्छी है।
परिभ्रमण, शिक्षण का एक स्रोत है (Tour is a source of learning), इसको एक साधन के रूप में नवाचारी शिक्षण-अधिगम बनाना होगा। परिभ्रमण (Tour) केवल स्मारकों, दर्शनीय स्थलों, भौगोलिक एवं प्राकृतिक छटा, गार्डन, चिड़ियाघर, तारामंडल तथा विज्ञान भवन आदि देखने का नाम भर नहीं है, बल्कि एक परियोजना है; जिसमें शिक्षकों और गाइड की मदद लेकर शैक्षणिक दृष्टिकोण से प्रत्येक चीजों को देखा जाना चाहिए। बच्चों में प्रत्येक चीजों की खोजी दृष्टि होती है। बस, शिक्षकों को उसकी प्रवृत्ति और दृष्टि को पहचानने की जरूरत है, जिसका उपयोग वे बच्चों को सिखाने में सहज ढंग से कर सकते हैं। परिभ्रमण जहां कराना चाहते हैं, वहां के लिए प्रश्नावली या परियोजना कार्य बच्चों को देना जरूरी है, ताकि दर्शनीय स्थलों पर लिखे अभिलेखों एवं सूचनाओं को पढ़कर नोट कर सकें। फिर विद्यालय में आकर बच्चों से सकारात्मक चर्चा कर उनका ज्ञानवर्धन किया जा सकता है। बच्चों के लिए वर्कशीट अवश्य बनाया जाय।
नवाचार शिक्षक के दिमाग की उपज है। शिक्षक स्वमूल्यांकन भी करें और अपनी कमियों को दूर करते रहें। स्वाध्याय करें। "शिक्षक के पास कलम न हो और हाथ में कोई किताब न हो तो वह शिक्षक ही क्या है ?" समाज विद्यालय का लघु रूप है और बच्चों के चेहरे पर तेज अभिभावकों के द्वारा पढ़ा जाता है। वे संस्कार और विश्वास से भरा देख फूलों नहीं समाते। विद्यार्थियों को आधुनिकता से परिचित और नैतिकता से लबरेज़ होना चाहिए। अच्छी चीजें कहीं से भी सीखी जा सकती हैं। एक अक्लमंद इंसान से जब किसी ने पूछा," आपने अक्ल कहां से सीखा?" तो उन्होंने उत्तर दिया: बेवकूफों से। वह कैसे ? बेवकूफ लोग जो करते थे, उसे मैंने नहीं किया। नवाचार की पैदाइश नवीन सोच से ही होती है।
चेतना-सत्र में एक अच्छी बात जोड़ी जा सकती है। विद्यालय परिसर या वर्ग-कक्ष में किसी भी विशेषज्ञ, यथा-वकील, पत्रकार, कवि, लेखक, अभियंता, मैनेजर, शिक्षाविद, प्रोफेसर, समाजसेवी, खिलाड़ी, योग प्रशिक्षक आदि को आमंत्रित कर उनके अनुभव को जानना एक अच्छा नवाचार है। डॉक्टर साहब स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देंगे। वकील साहब सामान्य कानून की जानकारी, पत्रकार समसामयिक घटनाओं का विश्लेषण, लेखक विचार और अभिप्रेरणा एवं लेखन के गुर सिखाएंगे तो अभियंता बच्चों में विज्ञान के प्रति जुनून भरेंगे। आपदा प्रबंधक बाढ़,भूकंप, प्राथमिक उपचार और अग्निशमन के बारे में जानकारी देंगे। सत्र में बच्चे प्रश्न कर काफी लाभान्वित हो सकते हैं। यह इकट्ठे ज्ञानार्जन का उत्कृष्ट नवाचार है।
विद्यालय के प्रांगण में शिक्षा का अभिनव प्रयोग एक नवाचार है। स्टेज पर शिक्षक, टेक्नोक्रेट, गायक, वादक, संगीतकार, इवेंट मैनेजर, दल शिक्षण (Team Teaching) में भाग लेकर अच्छा प्रदर्शन करेंगे। जिसका जो रोल होगा, जब वे करेंगे तो सीखना-सिखाना एक मनोरंजक जश्न होगा, खेल-खेल में सीखना हमेशा याद रहेगा।
वर्ग-कक्ष में यदि कोई शिक्षक इतिहास लेखन के स्रोत पढ़ा रहे हैं और वहां वह शिक्षक कार्बन डेटिंग (C-14) की प्रक्रिया को नहीं जानते हैं तो उसकी तकनीक या प्रक्रिया विज्ञान के शिक्षक की सहायता से बच्चों को बताया जा सकता है। यदि कोई शिक्षक इतिहास में जी टी रोड किन- किन राज्यों से होकर गुजरती है तो भूगोल के शिक्षक से सहायता ली जा सकती और टेक्नोक्रेट की सहायता तो अहम है ही। यदि कोई शिक्षक नक्षत्र-विज्ञान पढ़ा रहे हैं तो आर्यभट्ट के इतिहास को बताने के लिए इतिहास शिक्षक की सहायता ले सकते हैं। इस प्रकार दल शिक्षण (Team Teaching ) बहुत ही रोचक नवाचार है। शिक्षकों में एक-दूसरे से सीखने-सिखाने में बिल्कुल संकोच नहीं होना चाहिए।
प्रज्ञा-कल्प या कृत्रिम बुद्धिमता (Artificial Intelligence -AI ) द्वारा समस्या-निवारण सॉफ्टवेयर से होता है। शिक्षण में AI का उपयोग 'अलाउद्दीन के चिराग' के समान है, बशर्ते कि उपयोग नकारात्मक न हो, नहीं तो अधिगम में अत्यधिक उपयोग, विद्यार्थी के प्राकृतिक बुद्धिमत्ता को अल्पबुद्धि या मंदबुद्धि में बदल सकता है। इससे पहले कि यह मुसीबत न खड़ा कर दे, इसका शिक्षण-अधिगम में सीमित उपयोग हो। आज ' सब की खबर, सब पे नजर ' होनी चाहिए।
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