कल्पना से सृजन की शक्ति-पूजा कुमारी - Teachers of Bihar

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Friday 22 May 2020

कल्पना से सृजन की शक्ति-पूजा कुमारी


कल्पना से सृजन की शक्ति

          एक अस्पताल के एक वार्ड में दो मरीज़ एक साथ थे। एक की बेड खिड़की से लगी हुई थी और दूसरे मरीज़ की बेड दीवार से। खिड़की के पास वाले मरीज़ की दोनों किडनी फेल थी और पैसे थे नहीं उसके पास ट्रांसप्लांट के इसलिए उसकी जिंदगी का तो कोई ठिकाना नहीं था लेकिन वो इंसान बहुत जिंदादिल था। वहीं दीवार के पास वाले मरीज़ के पास पैसे तो बहुत थे लेकिन वो दिल से हारा हुआ था इसलिए वो छोटी सी बीमारी के होते हुए भी अस्पतााल में एडमिट था। जल्दी ही दोनों की दोस्ती हो गयी। खिड़की वाला मरीज़ हर दिन उस दूसरे मरीज़ को खिड़की के बाहर की तरफ देखकर बाहर की चहल-पहल सुनाया करता था। कभी बगीचे के पेड़ों के रंग-बिरंगे फूलों के बारे में बताता तो कभी सड़क पर आते-जाते इंसानों की गुदगुदाने वाली गतिविधियाँ। खिड़की वाला मरीज़ उसे हर संभव खुश रहने के प्रयास रखता। 
          कुछ ही दिनों में दीवार की तरफ वाले मरीज़ की हालत सुधरने लगी। वो अब काफी खुश रहने लगा और ठीक भी होने लगा लेकिन एक लालसा आ गई उसके अंदर कि मुझे खिड़की वाले बेड पर शिफ्ट होना है। उसने डॉक्टर्स को कहा कि मुझे खिड़की वाले बेड पर शिफ्ट कीजिये और उस खिड़की वाले मरीज़ को मेरे बेड पर लेकिन बात नहीं बनी क्योंकि उस खिड़की वाले मरीज़ ने कहा कि खिड़की के बाहर का नज़ारा बहुत खूबसूरत है, इसलिए मैं यहाँ से नहीं हटूँगा। दूसरे मरीज़ को उसपर बहुत गुस्सा आया और उससे नफ़रत भी हुई फिर भी उसने ठान लिया कि मैं अब पूरी तरह स्वस्थ होकर खिड़की वाले बेड पर नहीं बल्कि खिड़की के बाहर जाकर तुमको दिखाऊँगा। उसके मन में अब उसके प्रति कड़वाहट रहने लगी लेकिन वो खिड़की वाला मरीज़ पहले की तरह ही उसे हँसाने और खुश रखने की पूरी कोशिश करता। 
          कुछ दिनों के बाद वो दूसरा मरीज़ पूरी तरह स्वस्थ हो गया और आज उसे डिस्चार्ज होना था। सुबह-सुबह वो बेड से उठा और उस खिड़की के पास गया जिसके बाहर की कहानियाँ उसे वह व्यक्ति बड़े चाव से सुनाया करता था। ज्यों ही उसने खिड़की के बाहर देखा तो उसके पैरों तले की जमीन खिसक गयी। वो एकदम अवाक रह गया क्योंकि खिड़की के बाहर कोई बगीचा या कोई सड़क नहीं था। खिड़की के बाहर एक पक्की बेरंग दीवार खड़ी थी। ये सब देखकर उस दूसरे व्यक्ति ने कहा- मैंने ये काल्पनिक कहानियाँ इसलिए बुनी ताकि तुममें ठीक होने की और बाहर की दुनियाँ देखने की जिज्ञासा पैदा हो। इसलिए मैंने तुम्हें यहाँ शिफ्ट भी नहीं होने दिया क्योंकि अगर तुम यहाँ आ जाते तो फिर से तुम्हारे अंदर नीरसता आ जाती और तुम ठीक होने की इतनी कोशिश नहीं करते। उसकी बातें सुनकर वो दूसरा व्यक्ति उसके गले लग गया और फफक-फफक कर रोने लगा। उसे खुद पर ग्लानि हो रही थी कि उसने उसके बारे में कितना गलत सोचा और उससे नफरत की।
          वो व्यक्ति कुछ दिन बाद अस्पताल फिर आया लेकिन इस बार वो अकेले नहीं था। वो शहर के मशहूर नेफ्रोलॉजिस्ट (किडनी विशेषज्ञ) को भी अपने साथ लेकर आया था। कुछ दिनों बाद उस किडनी वाले मरीज़ का किडनी ट्रांसप्लांट हो गया और अब उन दोनों की ज़िंदगी खुद में इंद्रधनुषी रंगों को समेटे हुए थी। दोनों की ज़िंदगी खुशहाल थी अब!
          बहुत बार कल्पनाएँ यथार्थ से कहीं ज्यादा प्रभावशाली होती है। अगर किसी के हित के लिए या किसी की खुशी के लिए आप काल्पनिक बातों को सच बनाकर प्रस्तुत करते हैं तो हो सकता है कि वो उसकी जिंदगी बदल दे। छोटी-छोटी चीज़ें बड़े-बड़े बदलाव ला देती है जिंदगी में। इंसान की निःस्वार्थता, उसकी परोपकारिता, उसकी इच्छाशक्ति, उसकी ज़िंदादिली बड़े से बड़े पहाड़ को तोड़ डालने की शक्ति रखती है। बस खुद पर और दूसरों पर विश्वास रखने की ज़रूरत होती है। दूसरों के प्रति प्रेम की भावना हमें इंसान बनाती है अन्यथा हम केवल हाड़-मांस से बने एक केमिकल बैग की तरह हैं। 
          स्कूल में बच्चों के साथ भी कुछ इसी तरह की फीलिंग्स की ज़रूरत होती है। हम अगर उन्हें महसूस करवाने में सफल हो जाते हैं कि ये प्रकृति और ये दुनियाँ कितनी खूबसूरत है, ये हमारे लिए क्या महत्व रखती है और उनके अंदर कितनी असीम शक्ति है तो फिर 'पृथ्वी-दिवस' , 'बाल-दिवस' या 'जल-जीवन-हरियाली' जैसे कार्यक्रम बस औपचारिकता मात्र रह जाते हैं। उन्हें बस महसूस हो जाए अपनी क्षमता, फिर तो वो अजेय हो जाते हैं लेकिन ऐसा तभी होता है जब उन्हें भावनात्मक सहयोग मिले, घर और विद्यालय दोनों जगह! हम अगर उन्हें यह विश्वास दिलाने में सफल हो जाते हैं कि हम भी उन्हीं के बीच से हैं, हमने भी कभी उन्हीं की तरह पढ़ाई की है, हमें भी पहले उन्हीं की तरह झिझक महसूस होती थी, हमें भी उनकी तरह चीज़ें समझ नहीं आती थी...तो उनका आत्मविश्वास कई गुणा बढ़ जाता है और वो भावनात्मक रूप से हमसे जुड़ जाते हैं। जैसे ही बच्चे हमसे भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं वो हमारी हर बात को महत्व देने लगते हैं। वो बेझिझक हमसे अपनी हर बात और हर परेशानी शेयर करने लगते हैं। उसके बाद उन्हें समझते हुए, हम जैसा चाहें वैसा आकार उनके व्यक्तित्व को दे सकते हैं। 
          जीवन तथ्य नहीं एक संभावना है। बिल्कुल उस फूल के बीज की तरह जिसमें हज़ारों-लाखों फूल छिपे हैं पर प्रकट नहीं, अप्रकट रूप से! उन्हें प्रस्फुटित करने के लिए उन्हें सींचने और महसूस करने की ज़रूरत होती है। शिक्षक भी एक बीज को ही सींचने का काम करते हैं जिनमें हज़ारों-लाखों बहुमूल्य विचार छिपे हुए हैं। शायद इसीलिए शिक्षक को राष्ट्रनिर्माता कहा गया है!
       
पूजा कुमारी
म. वि. जितवारपुर, अररिया

7 comments:

  1. बेहतरीन विचारयुक्त लेखनी। धन्यवाद

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  2. बहुत-बहुत...सुन्दर!

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  3. सुन्दर व प्रेरक युक्त रचना है।

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  4. 🤔............good👍

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  5. आपकी लेखनी पढ़ने के बाद मेरे पास प्रशंसा के शब्द भी न्यून दिखाई पड़ने लगते है।बधाई बधाई।हार्दिक बधाई।।

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