विश्व जल दिवस - 22 मार्च - Teachers of Bihar

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Saturday, 22 March 2025

विश्व जल दिवस - 22 मार्च

 

विश्व जल दिवस - 22 मार्च

(विश्व जल दिवस 2025 का थीम "अमूल्य जल, अमूल्य जीवन" है। इसका उद्देश्य जल के संरक्षण के महत्व को समझाना और इस प्राकृतिक संसाधन के महत्व को उजागर करना है, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए जल उपलब्ध हो सके।)

जल संरक्षण- एक महान आवश्यकता 

जलमेव जीवनम् ।(जल ही जीवन है।)

..... वेदों में, पुराणों में जलाशय, कुआं आदि खुदवाना पुण्य का काम माना जाता था । पहले कूप, जलाशयों, नदियों के जल भी अत्यंत शुद्ध, पेय और उपयोगी होते थे । भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता के दशम् अध्याय में कहा है,"सरसामस्मि सागर:" अर्थात  "जलाशयों में मैं सागर हूँ।" गंगाजी, यमुना जी आदि की स्तुतियां भी हमारे ग्रंथों में देखने को मिलती है। इन पवित्र नदियों को माता समान मानकर इनका स्तवन किया गया है। वैसे प्रकृति में उपस्थित जीवनदायिनी घटकों को देवतुल्य मानकर उन्हें पूजनीय बताया गया है।

......जल का दान एक बहुत बड़ा दान माना गया है। हमलोग अक्षय तृतीया के दिन एक-दूसरे को शरबत पिलाकर आनंद मनाते हैं। ग्रीष्म ऋतु में जब मुसाफ़िरों के लिए, पक्षियों के लिए जब जल की किंचित् व्यवस्था भी करते हैं तो हमें अत्यंत संतुष्टि मिलती है। फूलों, पेड़ों की सिंचाई करने पर स्वयं में हम हर्ष का अनुभव करते हैं। प्रायः हमलोग जूड़-शीतल पर्व में बांस आदि वृक्षों को जल से सींचते हैं। जल का प्रयोग दैनिक जीवन पूजा-पाठ से लेकर साफ-सफाई तक में करते हैं। 

.....जल को भिन्न-भिन्न भाषा में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं। अंग्रेजी में Water, लैटिन में Aqua, प्राचीन ग्रीक में Hydro, ग्रीक में नेरो, फारसी में आब आदि । जैसे जलवायु को आबोहवा कहते हैं। जल की आवश्यकता हमें लगभग पड़ती ही रहती है। प्यासे को पानी पिला देने पर भी हम संतोष का अनुभव करते हैं।

....आज विकास के दौर में प्रकृति के जीवनदायिनी घटकों जैसे जल, वृक्ष आदि पर संकट गहराया है। विकास के दौरान प्रगति-पथ पर आगे बढ़ते हुए भी हमें इन सबके घटकों के संरक्षण एवं संवर्धन के विषय में अवश्य चिंतन करना होगा, साथ ही इस दिशा में प्रयासरत रहना होगा ।

.... उद्योगों, कारखानों से निकलने वाले प्रदूषकों को जलाशयों में न प्रवाहित कर हमें उसे या तो reuse(पुनः उपयोग) के योग्य बनाना होगा, या उसके लिए कोई दूसरी व्यवस्था करनी होगी।

..... प्रगति-पथ पर बढ़ते हुए भी जल का संरक्षण एक आवश्यक कर्त्तव्य है। साथ ही, उसके रख-रखाव की व्यवस्था भी आवश्यक है। बहुत सारे क्षेत्रों में ऐसा किया जा रहा है और किया जाना भी चाहिए।

रहीम के शब्दों में, रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून ।।



गिरीन्द्र मोहन झा,

+२ भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा

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