गाँधी जी के विचार को आत्मसात करें-विमल कुमार विनोद - Teachers of Bihar

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Friday, 2 October 2020

गाँधी जी के विचार को आत्मसात करें-विमल कुमार विनोद

गाँधी जी के विचार को आत्मसात करें

          वर्तमान समय में सत्य, अहिंसा, भाईचारा तथा सभी संप्रदायों के बीच शांति पूर्ण जीवन जीने की राह दिखाने वाले युगद्रष्टा तथा उच्च कोटि के दार्शनिक महात्मा गाँधी जिनका पूरा नाम मोहन दास करमचंद गाँधी था को मैं उनके जन्म दिन 2 अक्टूबर को कोटि- कोटि प्रणाम करता हूँ। आपने अपने उच्च कोटि के दर्शन से पूरे भारतीय समाज से छूआछूत, ऊँच-नीच का भेदभाव तथा अस्पृश्यता का अंत करने का प्रयास किया जो कि भारत के सामाजिक दर्शन की एक अमिट मिसाल है।
          आप एक उच्च कोटि के बैरिस्टर होने के बावजूद भी आपने जीवन में एक कुली, सफाई कर्मी तथा जीवन के प्रत्येक कार्य को करते हुए पूरे जनमानस को स्वच्छता का संदेश देने की कोशिश की  जिसके लिए आपको पुनः एक बार मैं प्रणाम करता हूँ। उस समय के देश में बढ़ती हुई ईर्ष्या, द्वेष तथा सांप्रदायिकता की जहरीली जिन्दगी से हटकर सांप्रदायिक सदभाव युक्त जीवन जीने की सलाह दी। इनका एक स्लोगन था "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना"। महात्मा गाँधी का सपना था इस देश के सबसे निचले स्तर तक लोगों क शासन में  भागीदारी होनी चाहिए। इन्होंने एक ऐसे राम राज की कल्पना की थी जो कि दशरथ के पुत्र श्री रामचन्द्र जी का रामराज नहीं बल्कि वैसा राज जहाँ पर लोग अपने घरों में बिना ताला लगाकर भी रह सकते थे। इनके जीवन पर आधारित अब तक छः हज़ार पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं जो कि विश्व के किसी भी दूसरे व्यक्ति पर इतनी पुस्तकें नहीं लिखी गई हैं। आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई (गाँधी जी जैसा) व्यक्ति भी धरती पर चलता फिरता था। गुरुदेव श्री रवींद्रनाथ ठाकुर ही इनको महात्मा कहने वाले सबसे पहले व्यक्ति थे। गाँधी जी का मानना था कि नमक और खादी बनाने से औरतों को बड़ी  संख्या में रोजगार मिलेगा।
          जहाँ तक सफाई की बात है, सूट बूट धारी एक आदमी हाथ में झाडू और बगल में टोकरी लेकर कोलकाता शहर के एक भवन के बरामदे पर फैला टट्टी पेशाब साफ कर रहा था। आज के समय में बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के द्वारा विद्यालयों में चेतना सत्र के बाद 'एक था मोहन कथा वाचन' करवा कर महात्मा गाँधी के जीवन पर आधारित घटनाओं के वाचन से बच्चों की मानसिकता में बदलाव लाने का प्रयास किया जाता है। मोहनदास करमचंद गाँधी ने लोगों को स्वावलंबी बनाने के लिए प्रेरित करने हेतु कृषि कार्य करने, सूत की कताई करने, भोजन के लिए आटा की चक्की चलाने, गंदगी को साफ-सुथरा करने का काम भी किया। आन्दोलन के दरम्यान इनका जेल आना-जाना लगा ही रहता था जिसमें शुरू में तो बहुत कष्ट हुए फिर जेल की कठिनाइयों के बीच जीवन जीना सीख लिया। जेल के अंदर अनेक उपयोगी काम जैसे- संडास साफ करना, पढ़ते-लिखते रहना तथा जूते चप्पल इत्यादि बनाने का कार्य करते थे। 
          मुझे लगता है कि एक शिक्षक तथा विद्यालय प्रधान होने के नाते हमलोगों को भी बच्चों के मन- मस्तिष्क में जीवन को स्वावलंबी बनाने हेतु तथा सभी कार्यों को करने के लिये शारीरिक, मानसिक, नैतिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक रूप से तैयार रहने के लिए गाँधी जी के विचारों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। इन सभी बातों को जीवन में अपनाने के लिये बच्चों को प्रेरित करना जीवन का सर्वोत्तम आदर्श हो सकता है। आने वाले समय में पूरे विश्व में महात्मा गाँधी के विचार पुनः लोगों को प्रभावित करेंगे। इस विश्वास के साथ पुनः बापू को कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ।                


श्री विमल कुमार "विनोद" प्रभारी प्रधानाध्यापक 
राज्य संपोषित उच्च विद्यालय
पंजवारा, बांका(बिहार)

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