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Thursday, 23 December 2021

सम्राट अशोक के शिलालेख में भाषा विज्ञान-मो. जाहिद हुसैन

सम्राट अशोक के शिलालेख में भाषा विज्ञान

           शब्दकोश अर्थात डिक्शनरी, केवल शब्दों का अर्थ ही नहीं बताते बल्कि इतिहास, भूगोल और  संस्कृति को भी बताते है। यह सुनने में थोड़ा अटपटा-सा लग सकता है क्योंकि सामान्यतः हम लोग शब्दकोश का इस्तेमाल विभिन्न भाषाओं के शब्दों का अर्थ जानने के लिए ही करते हैं। हाँ, कुछ तकनीकी शब्दकोश भी होते हैं जिसमें खास शब्दों का तकनीकी अर्थ दिया जाता है। इसमें इंजीनियरिंग, मेडिकल साइंस तथा विज्ञान के विषय भी शामिल हैं।
          अशोक के शिलालेखों के बारे लगभग हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति जानते हैं लेकिन उसके लिपि और उसमें प्रयुक्त भाषा के शब्दों के अर्थ को बहुत कम लोग जानते या समझते हैं। शायद 1835 ई. से पहले दुनिया अशोक के शिलालेखों के बारे जानती भी नहीं थी। अशोक के शिलालेखों में प्रयुक्त भाषा तथा लिपि की जानकारी उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में दुनिया भर के लोगों को हुई। तब जाकर लोगों को पता चला कि अशोक के शिलालेखों की भाषा मगही (प्राकृत) है और लिपि ब्राह्मी, खरोष्ठी, रोमन (ग्रीक) एवं अरमाईक हैं। डॉ.लक्ष्मीकांत सिंह द्वारा रचित 'डिक्शनरी आफ अशोकाज इंस्क्रिप्शनस' (रेडशाईन पब्लिकेशन) में अशोक के शिलालेखों में प्रयुक्त ब्राह्मी लिपि, उसका रोमन और देवनागरी लिपि में रूपांतरण और अर्थ का संग्रह भरपूर है। अशोक के शिलालेख में न सिर्फ भाषा और लिपि को देखा जा सकता है बल्कि तत्कालीन विश्व और भारत के राजनैतिक, सामाजिक संदर्भों के साथ इतिहास, भूगोल, वनस्पति एवं जीव विज्ञान का अवलोकन भी किया जा सकता है। अशोक के शिलालेख प्राचीन विश्व के "भाषा विज्ञान और लिपियों" का प्रमाणिक विश्व धरोहर हैं। भाषा (भाखा-बोली) ध्वनि का एक समूह है, जिसके माध्यम से मानव या अन्य जीव अपने समूह के साथ संपर्क करता है। आधुनिक भाषा विज्ञान में इसको "शब्द या वर्ण" कहते हैं। इस ध्वनि (बोली) को एक विशिष्ट संकेत चिन्हों (प्रतीकों) के माध्यम से प्रदर्शित की जाती है, उसे अक्षर कहा जाता है और इस लेखन तकनीक को "स्क्रिप्ट" कहते है। ध्वनि और लिपि के संयुक्त रूप को भाषा विज्ञान कहा जाता है। भाषा विज्ञान, भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। इसके द्वारा भाषा का विश्लेषण, अर्थ और संदर्भ को जानते हैं। भाषा विज्ञान सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक कारकों से भी संबंधित है जो भाषा को प्रभावित करते हैं, जिसके माध्यम से भाषाई और भाषा आधारित संदर्भ अक्सर निर्धारित किया जाता है। 
          भाषा विज्ञान का इतिहास अशोक के शिलालेख में छिपा है। यह अजीब लग सकता है लेकिन इसकी वास्तविकता से इनकार नहीं किया जा सकता है। भाषा विज्ञान के प्रारंभिक इतिहास के नजरिए से अशोक का शिलालेख एक अनमोल विरासत है। संभवत: उस काल की विकसित सभ्यता के विविध भाषाई रूप इसमें देखा जा सकता है। शिलालेखों में सम्राट अशोक के विशाल साम्राज्य के साथ-साथ क्षेत्रों में प्रचलित भाषा और लिपि का रहस्य भी शामिल है। इन शिलालेखों की भाषा और लिपियों से अशोक के सबसे बड़े साम्राज्य और उसकी महानता का भी आकलन किया जा सकता है। हालांकि, शिलालेखों की उपलब्धता उनके बड़े साम्राज्य की तुलना में बहुत कम है। 
          अब तक मिले अशोक के शिलालेखों में तीन भाषाओं की पहचान की गई है जिनमें प्राकृत, ग्रीक और अरमाईक शामिल हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में चार लिपियों- ब्राह्मी, खरोष्ठी, रोमन (ग्रीक) और अरमाईक में ये शिलालेख उत्कीर्ण किये गए हैं। अशोक के शिलालेख में जिन तीन भाषाओं (प्राकृत/पाली, यूनानी और अरमाईक) का प्रयोग किया गया है, वे उस समय के आम लोगों की भाषा रही होगी। अशोक के ज्यादातर शिलालेख प्राकृत (मगधी) भाषा में लिखे गए हैं। उत्तर-पश्चिम सीमांत क्षेत्र (अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान में) ग्रीक और अरमाईक भाषा का उपयोग किया गया था। अशोक का कंधार शिलालेख द्विभाषी ग्रीक-अरमाईक है। अशोक का कंधार में ही ग्रीक शिलालेख केवल ग्रीक भाषा में है। अशोक के शिलालेख में उपयोग की जाने वाली ग्रीक भाषा बहुत उच्च स्तर की है और दार्शनिक परिष्करण प्रदर्शित करती है। यह प्रदर्शित करता है कि तीसरी सदी ईसा पूर्व में यूनानी, दुनिया की राजनीतिक ही नहीं बल्कि आमलोगों की भी भाषा थी। इससे उस समय के कंधार में अत्यधिक सुसंस्कृत ग्रीक की उपस्थिति का पता चलता है।

                      
मो. जाहिद हुसैन 
प्रधानाध्यापक                                  
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलह विगहा, चंडी ( नालंदा )

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