मानसिक शक्ति के आइने में सफलता का भविष्य-देव कांत मिश्र 'दिव्य' - Teachers of Bihar

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Thursday, 30 December 2021

मानसिक शक्ति के आइने में सफलता का भविष्य-देव कांत मिश्र 'दिव्य'

मानसिक शक्ति के आइने में सफलता का भविष्य

          'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' हिन्दी की एक प्रसिद्ध कहावत है। यहाँ मन का अर्थ मानसिक बल (Will Power) से है। यदि हम मन में जीत का संकल्प कर लेते हैं तो हम जीत जाते हैं। इसके ठीक विपरीत यदि हम मन से हार जाते हैं तो हम हार जाते हैं। इसका मूल कारण यह है कि मन जो कुछ सोचता है, वह उसी के अनुकूल संकेत भेजता है और शरीर उसी के अनुसार कार्य करना आरंभ कर देता है।
कहावत का अर्थ- भयंकर विपत्ति आने पर भी साहस व आत्मविश्वास नहीं छोड़ना चाहिए।
उदाहरण: रामू काका का बेटा मोनू गहरे पानी में डूब रहा था। अचानक उसे एक लकड़ी का तख्ता दिखाई दिया तब वह पूरे आत्मविश्वास से उस तख्ते पर चढ़ गया और किनारे लग गया। इसलिए तो कहते हैं मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

विस्तार: यह संसार परिवर्तनशील है। यहाँ कुछ व्यक्ति अनुकूल माहौल, प्रेरणा और पर्याप्त मदद मिलने पर भी अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ पाते हैं। जबकि ये शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट होते हैं, मानसिक रूप से मजबूत व अच्छे रहन-सहन वाले होते हैं परन्तु उपलब्धि उनके कदम चूम नहीं पाती है और न ही वे इसके लिए कोई ठोस प्रयास करते दिखते हैं। असफलताओं और संघर्षों से वे दूर भागते हैं। इसके साथ-साथ कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जो देखने में सूखे या यों कहें अस्थि-पंजर मात्र परन्तु भयंकर तूफान भी उन्हें अपने स्थान से हटा नहीं सकता। इस संबंध में सही कहा गया है- "न पादपीन्मूलनशक्तिरैह: शिलोच्चये मूर्छति मारुतस्य।" वस्तुत: प्रबल प्रभंजन सिर्फ पेड़ों को उखाड़ने में ही सक्षम होता है, पर्वत को हिला भी नहीं सकता। इसका एक ही कारण है उनका मन अर्थात् मानसिक बल, उनके मन का मजबूत होना। हिन्दी में भी कहावत है- " मन चंगा तो कठौती में गंगा।" एक बात दीगर है कि शक्ति के तीन भाग हैं: शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्ति। सबसे पहले यहाँ शारीरिक और मानसिक शक्ति पर विचार करना लाजिमी है। यों तो शरीर और शारीरिक बल की दृष्टि से प्रत्येक मनुष्य चाहे वह अमेरिका, ब्रिटेन, ईरान या अफ्रीका, भारत का हो प्रायः समान रूप से स्वस्थ होते हैं परन्तु प्रश्न है कि मनोबल या मानसिक शक्ति का वहाँ प्रत्येक में अन्तर मिलता है। इसके साथ-साथ जब हम महापुरुषों  के जीवन चरित्र का अध्ययन करते हैं तो एक बार हमें सोचने को विवश कर देता है कि आखिर उनमें कौन-सी असाधारण शक्ति विद्यमान थी, जिसके कारण उन्होंने कल्पनातीत कार्य कर दिखाये। स्पष्ट पता चलता है कि उनकी मानसिक शक्ति प्रबल थी अन्यथा थोड़े से वीर मराठों को लेकर शिवाजी और मुट्ठी भर हड्डियों को लेकर गाँधी जी क्या ऐसा सबकुछ कर पाते? इतिहास गवाह है कि नेपोलियन बोनापार्ट ने एक बार कहा था कि आल्प्स नहीं है और यह नहीं रहा यानि उसकी सेना ने इसे देखते-ही-देखते पार कर लिया। गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपना यह कथन  "चिड़ियों से मैं बाज बनाऊँ, तभी गोविन्दसिंह नाम कहाऊँ।"
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 'आजाद हिन्द फौज' बना डाली। सारी दुनियाँ के साथ-साथ हमारा देश कोरोना वायरस के चपेट में था। असंख्य लोग असमय काल कलवित हो गये। हमारे देश की सरकार, कोरोना वारियर्स व जनता ने एकजुटता, साहस व आत्मविश्वास का परिचय दिया और हमने विजय पाई। यही तो असली मनोबल है। चाहे राजनीति, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या खेल क्षेत्र हो हमें मन को मजबूत रखना चाहिए। तात्पर्य है कि यदि मनुष्य का मन मर जाता है तथा हिम्मत टूट जाती है तो शरीर भी निष्क्रिय हो जाता है और जब तक मन नहीं हारता तब तक शरीर कितना ही अशक्त हो जाए, मनुष्य संघर्ष से मुँह नहीं मोड़ता। इसलिए तो कहा गया है कि-
"हारिये न हिम्मत बिसारिये न हरि नाम,
 जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये।"
सच में, मनुष्य की मानसिक शक्ति उसकी इच्छा शक्ति पर निर्भर करती है। जिस मनुष्य की जितनी इच्छा शक्ति बलबती होगी उसका मन उतना ही दृढ़ और संकल्पवान होगा। इसी इच्छा शक्ति के बलबूते मनुष्य वह दैवी शक्ति प्राप्त कर लेता है, जिसके आगे करोड़ों व्यक्ति, स्वयं नतमस्तक हो जाते हैं। प्रबल इच्छाशक्ति से मनुष्य एकबार मृत्यु के क्षणों को टाल सकता है। भीष्म पितामह इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। सूर्य के उत्तरायण होने पर ही इनके प्राणों का विसर्जन हुआ था। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को उपदेश दिया कि- "हे अर्जुन!  मेरा स्मरण करो और युद्ध करो।" इसका मतलब यह है कि मनुष्य को भगवान का स्मरण करते हुए संघर्ष करना चाहिए। इसी को दूसरे शब्दों में कर्मयोग भी कहा जाता है। संस्कृत में श्लोक है:
जानामि धर्म न च मे प्रवृत्ति: जानाम्यधर्म न च मे निवृत्ति:
"त्ववा हृषीकेश! हृदिस्थितेन। तथा नियुक्तोस्मि, तथा करोमि।।"
वस्तुत: मनोबल ही समस्त सफलताओं की कुंजी है। जिस मनुष्य का मनोबल ही समाप्त हो गया वह जीवित रहते हुए भी मृत के समान है। इससे मनुष्य लौकिक ही नहीं लोकोत्तर शक्तियाँ भी प्राप्त कर सकता है। छात्र जीवन में छात्रों को भी अपने मन को मजबूत रखते हुए अध्ययन के प्रति सक्रिय रहना चाहिए। यदि वे ऐसा करते हैं तो उन्हें जीवन में आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है। शिक्षक को भी अपने मानसिक बल को प्रबल रखते हुए पाठ्यक्रम के साथ-साथ व्यावहारिक व नैतिक ज्ञान की शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। यदि वे ऐसा करने में खरा उतरते हैं तो मानो वो एक सफल शिक्षक हैं। मन की मजबूती जीवन में अग्रसर होने के लिए आवश्यक है। अतः मनुष्य को अपना मनोबल कायम रखना चाहिए। कहा गया है-
"मानसिक शक्ति के संचय में ही सच्ची सफलता का अंकुर निहित है।"


देव कांत मिश्र 'दिव्य' 
भागलपुर, बिहार

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