धीरजवा- राकेश कुमार - Teachers of Bihar

Recent

Sunday 2 February 2020

धीरजवा- राकेश कुमार

 धीरजवा




     जी हाँ, इसी नाम से जानते हैं सब उसको। जब मैं वर्तमान विद्यालय में पदस्थापित हुआ, तो विद्यालय आने-जाने के क्रम में भैंस पर बैठा एक बच्चा जोर से चिल्लाता था, प्रणाम सर! तब मेरे मुख से अनायास हीं हँसी निकल जाती थी ।
वक़्त बीतता गया, वो बच्चा मेरे विद्यालय के सामने प्राथमिक विद्यालय का छात्र था। उसकी सभी गतिविधियों से मैं भी वाकिफ था, लेकिन उसके अपने गुरुजनों से मेरी गुफ्तगू होते रहती थी। उनकी बातें सुनकर ऐसा प्रतीत होता था कि वो सभी उस बच्चे से त्रस्त थे। उनकी बेचारगी मुझे भी भयभीत कर रहा था।
एक शिक्षक होने के नाते मुझे नकारात्मक सोच अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए था लेकिन यहाँ पर मैं स्वाभाविक प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा हूँ।
वो बच्चा प्राथमिक शिक्षा पूरी कर मेरे विद्यालय जो वर्ग VI से संचालित होता है में नामांकन लिया। उस बच्चे का नामांकन मेरे विद्यालय के लिये चुनौती था।लगभग सभी शिक्षक मानसिक रूप से तैयार थे जिसमें मैं भी शामिल था। वो वाकई एक शिक्षक के लिए , जो शिक्षक कि परिभाषा  
शि - शिखर तक ले जानेवाला
क्ष - क्षमा की भावना रखनेवाला
क- कमजोरी दूर करने वाला का अवसर उपलब्ध करा रहा था।
समय बीतता गया वो अपने धुन में आगे बढ़ता रहा। शायद हीं कोई दिन हो जिस दिन उसकी शिकायतों से वास्ता न पड़ता हो। अब हमलोग भी अभ्यस्त हो गए थे। कभी-कभी उसके साथ हमलोग भी अठखेलियाँ कर लेते थे।
समय बीतता गया उसकी शिकायतें भी बढ़ती गई। हमलोग इंतजार करने लगे कि कब वह वर्ग VIII उत्तीर्ण कर जाए और हमलोग उसके शैक्षिक उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाएँ। यहाँ पर उल्लेखनीय है कि मेरे विद्यालय की अंतिम कक्षा वर्ग VIII है।
        दिन था 2 अक्टूबर 2019 और अवसर था महात्मा गाँधी जयंती का, कार्यक्रम था स्वच्छता पर प्रभातफेरी का, बापू की पाती का कथा वाचन एवं अन्य विविध कार्यक्रमों का। सभी कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हो गए। बच्चे अपने घर की ओर लौट रहे थे। मेरे विद्यालय के प्रवेश एवं निकास द्वार पर एक छोटी सी पुलिया है। वहाँ शिक्षक खड़े थे और बच्चे जा रहे थे।बच्चों के जाने के बाद सभी कार्यालय की ओर लौटे हीं थे कि आवाज आई गिर गया, गिर गया। हम सभी शिक्षक उस ओर दौड़ कर गए। वहाँ जाने पर देखा कि भीड़ थी उस भीड़ में मैंने देखा की धीरजवा पूरी तरह से भींगा हुआ था। मैं जाते हीं उस पर बरस पड़ा और कहा कि ये बहुत हीं शैतान बच्चा है। हमलोगों को परेशान कर दिया है। तब उसने कहा- सर पानी से लबालब नाले में मैं नहीं गिरा था मैंने तो बचाया है। तब नजर पड़ी उस बच्चे पर जो उस पानी से भरे नाले में गिर पड़ा था। वहाँ पर उपस्थित लोगों ने कहा कि अगर आज धीरजवा  नहीं होता तो उस बच्चे की जान चली जाती। इसने उस बच्चे को बचाने के लिए तुरंत भरे पानी में छलांग लगा दी औऱ उस बच्चे की जान बचा गई। हम सभी शिक्षक हतप्रभ थे कि जिस बच्चे की शरारत  से सभी परेशान थे उस बच्चे में नैतिक मूल्यों से लैस इतना साहसिक गुण कहाँ से आया ? इसने शिक्षा के उस मानक को स्थापित कर दिखाया कि केवल शैक्षिक आधार पर हम बच्चों का मूल्यांकन नहीं कर सकते ।
उसके इस साहसिक एवं वीरतापूर्ण कार्य हेतु उसे 71वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर संकुल स्तरीय बाल वीरता पुरस्कार 2019 से सम्मानित किया गया और वह धीरजवा से धीरज कुमार बन गया।













 राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
 मनेर ( पटना)

6 comments:

  1. धीरज कुमार के जैसे नैतिक मूल्य वाले बच्चे सदैव होते हैं हमारे विद्यालय में, हमारी कक्षाओं में, हम शिक्षक ही अक्सर उन्हें पहचानने में भूल कर बैठते हैं। जो बच्चे ज्यादा शैतानी करते हैं या ज्यादा शैतान समझे जाते हैं वो कम से कम इतना तो साबित कर ही रहे होते हैं कि उनके पास एक तेज दिमाग है। एक शिक्षक के रूप में हमें इस इशारे को समझ कर उस बच्चे की उर्जा को सही दिशा में मोड़ने के लिए प्रयास करना चाहिए।एक शिक्षक के रूप में यह हमारा दायित्व भी है।
    अच्छी रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं💐💐💐

    ReplyDelete
  2. जैसा कि हमारे संजय सर ने लिखा है, बच्चों का मन-मस्तिष्क बिल्कुल कोरा और निर्मल होता है, उसमें शिक्षा के साथ-साथ नैतिकता भी विद्यमान होती है।हम शिक्षक उसे ही तो समझकर,समझाकर निखारने का प्रयास-प्रयत्न करते हैं।अच्छे अनुभव को बताया....🌹🌹

    ReplyDelete
  3. धीरजवा से धीरज कुमार बनने की बहुत ही सुंदर और प्रेरक कहानी 👌👌💐💐

    ReplyDelete
  4. धीरज जैसे बच्चे हर विद्यालय में होते हैं जरूरत है उन्हें समझने की

    ReplyDelete