Saturday, 18 April 2020
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बिहार कोकिला 'विन्ध्यवासिनी देवी'--हर्ष नारायण दास
बिहार कोकिला: विन्ध्यवासिनी देवी
बिहार कोकिला: विन्ध्यवासिनी देवी का जन्म 05 मार्च 1920 को उनके नाना बाबू चतुर्भुज सहाय के घर हुआ था। इनके पिता बाबू जगत बहादुर प्रसाद ब्रह्मपुर रोहतक(नेपाल) के रहने वाले थे। बचपन में घर वाले उन्हें बिंदा कहकर पुकारते थे। पढ़ने-लिखने में उन्हें मन नहीं लगता था। नन्ही बिंदा ने नाना के साथ अयोध्या की यात्रा की। वहाँ बाबा गोमती दास को उन्होंने
"जय जय गिरिबर राज किशोरी।
जय महेश-मुखचंद्र चकोरी।।
जय जय वदन षडानन दुति त्राता।
जगत जननि दामिनी दुति गाता"।।
गाकर सुनाया। 15 वर्ष की उम्र में सारण जिले के राई पट्टी (दिघवारा) निवासी सहदेवेश्वरचंद्र वर्मा के साथ उनका विवाह हुआ। वर्माजी पारसी थियेटर में अच्छे रंगकर्मी और हारमोनियम वादक थे। उन्होंने विंध्यवासिनी देवी को संगीत की शिक्षा भी दी। 1945 ईस्वी में पटना आई और आर्य कन्या विद्यालय में संगीत शिक्षिका के पद पर नियुक्त हुई। पटना में आकाशवाणी केन्द्र की स्थापना का उद्घाटन समारोह विंध्यवासिनी देवी के स्वरचित गीत- "भइले पटना में रेडियो के शोर, बटन खोल द तनि सुन सखिया" के साथ सम्पन्न हुआ। उनके गाये भोजपुरी लोकगीत सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि "मॉरीशस, फिजी" जैसे देशों में गूँजते रहे। उनके गीत भावे ना मोहि अँगनवा, बिनु मोहनवाँ बादल गरजे ला, चमके बिजुरिया ता पर बहेला पवनवाँ। जैसे सावन झहरत बुंदिया वइसे झरेला मोर नयनवाँ, जाइ बसल मधुबनवाँ। कुब्जा सवत साजन मिलमावल, जाइ बसल मधुबनवाँ। अबले सखि! मोर मोर पिया न अइले, बीतल मास सवनवाँ।
विंध्य कहे जिया धड़केला, सजनी कगवा बोलत अँगनवां।
विंध्यवासिनी देवी बहुमुखी प्रतिभा शाली लोकगायिका थी। उन्होंने सभी ऋतुओं, पर्व-त्योहारों और संस्कारों से जुड़े परंपरागत गीत को तो अपना स्वर दिया ही है साथ में मौलिक लोकगीतों की भी रचना की है।1962-63 में पहली मगही फ़िल्म "भइया'' के संगीत निर्देशक चित्रगुप्त के निर्देशन में उन्होंने अपना स्वर दिया। हरिमोहन झा लिखित मैथिली फ़िल्म "कन्यादान'' में गायन के साथ-साथ संगीत निर्देशन भी किया। रेणु के "मैला आँचल" पर बनी फिल्म "डागदर बाबू'' में भी उन्होंने स्वर दिया। भूपेन हजारिका के संगीत-निर्देशन में बनी फिल्म "छठ मइया की महिमा" में भी स्वर दिया है। "विमाता", "डोमकच'' और "झिझिया" की लोक प्रस्तुति से उन्हें काफी ख्याति और प्रशंसा मिली। उन्होंने पटना में विन्ध्यकला मंदिर नाम की संगीत संस्था की स्थापना की जहाँ छात्रों को संगीत की शिक्षा दी जाती है। 1983 में रामनवमी के दिन इन्होंने लोक रामायण का प्रणयन आरम्भ किया। ये गीत रामायण के सातों काण्डो पर आधारित है। उन्होंने लोकसंगीत सागर नामक एक ग्रन्थ की रचना की है जिसमें 15 हजार से अधिक लोक गीत हैं। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा प्रकाशित भोजपुरी, मगही और मैथिली के संस्कार गीतों की स्वरलिपि तैयार कर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया है। उनकी एक और कृति ऋतुरंग भी उल्लेखनीय है। ऋतुरंग में भारत की छहों ऋतुओं की सुषमा, महत्ता और विशेषताओं को गीतबद्ध गाया है। इसके अतिरिक्त समसामयिक विषयों पर आधारित मौलिक गीत रचकर सफल गीतकार होने का परिचय दिया है। उनके वर्षामंगल, सामा-चकेवा, जाट-जाटिन, झिझिया, डोमकच, बखो-बखाइन, पवड़िया आदि का उल्लेख किया जा सकता है। 1957 में संगीत-नाटक अकादमी द्वारा प्रथम बार नाटक प्रतियोगिता में सम्मिलित बेनीपुरी जी की प्रसिद्ध नाट्यकृति अम्बपाली का उन्होंने सफल निर्देशन किया था। 1974 में उन्हें आचार्य शिवपूजन सहाय द्वारा "लोकसंगीत आचार्या" तथा भारत सरकार द्वारा "पद्मश्री'' से सम्मानित किया गया। इसके अलावा पृथ्वीराज अवार्ड, बिहार रत्न, बिहार गौरव जैसी सम्मान उपाधियों के अतिरिक्त 1954 में संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के प्रथम राष्ट्रपति संगीत महोत्सव में स्वर्णपदक देकर इन्हें सम्मानित किया गया।
18 अप्रैल 2006 को पटना के कंकड़बाग में 86 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया। ऐसे महान सुर साधिका के जन्मशती पर कोटिशः नमन।
हर्ष नारायण दास
फारबिसगंज वार्ड नं० 21
अररिया
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अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी।
ReplyDeleteविंध्यवासिनी देवी ने केवल बिहार बल्कि भारत भर में अपनी कला के बल पर लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध रही हैं। उनकी जीवनी पर आधारित तथ्यपरक एवं ज्ञानवर्धक लेख हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं......
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