ईद-संजय कुमार - Teachers of Bihar

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Monday, 25 May 2020

ईद-संजय कुमार


ईद
          
          धैर्य और सौहार्द का नाम है ईद। पवित्र माह रमजान के महीने से शुरू होने वाली  यह  धैर्य शव्वाल माह के प्रथम दिन सौहार्द के रूप में परिलक्षित होती है। त्याग और तपस्या के बलिदान के पश्चात ही हमें खुशियाँ प्राप्त होती हैं क्योंकि जब एक सच्चा मुसलमान पूरे एक माह सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच निर्जला होकर रोजा रखते हैं तो उसके चेहरे पर त्याग और तपस्या की खुशियाँ दिखती है। दिखे क्यों नहीं वे अपने तथा अपने वतन की सलामती के लिए जो दुआएँ माँगता है, आमीन! पवित्र रमजान के सबसे अंतिम शुक्रवार जुम्मा जो महीने का शायद सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है उसे अलविदा कहते हुए अगले बरस फिर मिलेंगे के साथ विदा करते हैं और शव्वाल   महीने के प्रथम दिन ईदगाह में नमाज अदा कर ईद की खुशियाँ मनाते हैं। आपसी भाईचारे और सौहार्द का संदेश ईद ही तो देता है। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद सेवईयाँ में इतने मिठास कहाँ से आते। दूध, शक्कर और सेवईयाँ आपस में मिलकर जो मिठास पैदा करती है वही तो ईद है। इस खुशी के मौके पर सभी अपने जिंदगी की खुशियों को बाँटने के लिए बेताब होते हैं! धैर्य का परिचय बड़े बुजुर्ग तो देते ही हैं लेकिन बच्चे भी धैर्य का मिसाल कायम कर देते हैं। सच कहा जाए तो त्यौहार तो बच्चों के लिए ही होते हैं। उनकी खुशियाँ जो इस दिन देखने को मिलती है। हम और आप इनकी खुशी को देखकर ही खुश हो जाते हैं और हमारी ईद भी हो जाती है क्योंकि बच्चे पूरे धैर्य के साथ अपनी ईदी (नगद राशि) लेने के लिए पूरे एक माह जो इंतजार करते हैं। 
          ईद के दिन बच्चों द्वारा ईदी की मांग दिल को छू जाती है क्योंकि वे इस ईदी को लेकर कई प्रकार के सपने पूरे रमजान देखते हैं। उनके सपने साकार होने का वक्त भी तो आ गया है। हमीद भी तो  ईदी के इंतजार में था और अपनी दादी माँ के द्वारा दिए गए ईदी से उनके लिए चिमटे लाने के सपने पाल रखा था क्योंकि रोज खाना बनाते समय  उनका हाथ रोटियाँ सेकने के क्रम में जल जाते थे। चिमटे देखकर दादी माँ की आँखों में जो खुशी के आँसू थे वे ईद की खुशी के ही तो थे। वैसे महान लेखक और साहित्यकार प्रेमचंद को ईद के अवसर पर मेरी श्रद्धांजलि है जिन्होंने ईद की खुशी में संदेश को छुपाकर समाज में रखा। अगर बच्चे की परवरिश स्वच्छ वातावरण में हो तो उनके संस्कार अपने माँ-बाप को कभी भी चोट नहीं पहुँचा सकती। कहने का तात्पर्य है कि कोई भी त्यौहार बच्चों में एक अच्छे संस्कार को जन्म देता है और ईद एक ऐसा ही त्यौहार है जो हमें सिखाता है कि हमें आपसी भाईचारा और सौहार्द को बनाए रखना है। 
          इस वर्ष हमारी धैर्य की अग्नि परीक्षा है।कोविड-19 की वजह से इस वर्ष के त्यौहारों में कुछ खुशियाँ कम पड़ सकती हैं क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से Corona एक संक्रामक बीमारी है। इसके सामान्य रूप से पाए जाने वाले लक्षणों से हम ही नहीं हमारे वैज्ञानिक भी अनभिज्ञ है क्योंकि आए दिन यह अपने लक्षण को बदलते रहता है। यह गिरगिट की तरह रंग बदलता है। अतः इसके फैलाव को रोकने हेतु हमें पूरी सावधानियाँ भी बरतनी होगी। हम एक दूसरे के गले न मिलकर सलाम कर लेंगे और अगले वर्ष फिर मिलेंगे के साथ खुशियाँ बाँटने का प्रयास करेंगे। इस वर्ष हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि अपने और वतन के हित में समाजिक दूरियाँ (social distancingके नियमों का पालन करते हुए इस त्यौहार को मनाने का कार्य करेंगे क्योंकि  कोशिशें  ही इंसान को कामयाब बनाती है।



संजय कुमार 
प्रधानाध्यापक 
मध्य विद्यालय शिवगंज डेहरी

5 comments:

  1. ईद के बारे में अच्छी व सारगर्भित जानकारी आपके द्वारा दी गई है। लेकिन कुछ शब्द जैसे परवरीश, अपने ज़िन्दगी की जगह परवरिश, अपनी ज़िन्दगी होना चाहिए। आंसू की जगह आँसू एवं आंखो की जगह आँखों होनी चाहिए।यह मेरी व्यक्तिगत राय है। वैसे तो आलेख अच्छा है।

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  2. आपका आलेख जीवन मे त्योहार का महत्व और उसके प्रयोजन को सुन्दर तरीके से दर्शाता है ।
    धन्यवाद सर ।

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