शिक्षा में कला की आवश्यकता-अपराजिता कुमारी - Teachers of Bihar

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Monday, 13 July 2020

शिक्षा में कला की आवश्यकता-अपराजिता कुमारी

शिक्षा में कला की आवश्यकता

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           शिक्षा के साथ  कला शिक्षण से बच्चों के शरीर एवं मस्तिष्क दोनों की सक्रिय भागीदारी होती है। 
अन्य विषयों को सीखने में भी कलात्मक गतिविधियाँ सहयोगी होती हैं। विद्यार्थी आक्रोश एवं उदंडता से दूर होकर सृजनशील और ज्ञानवान व्यक्तित्व का धनी हो जाता है। कला शिक्षा विद्यार्थियों के सृजनात्मक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण उपयुक्त माध्यम के रूप में पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा माना जा रहा है। विभिन्न कलाएँ जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, सज्जात्मक कला, संगीत, नृत्य, थियेटर, ड्रामा आदि के माध्यम से बच्चों को उसकी वंशानुगत क्षमताओं को प्रकट करने एवं अभिव्यक्त करने का अवसर प्राप्त होता है।
           भारतीय परम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं को कहते हैं जिनमें कौशल अपेक्षित हो। यूरोपीय शास्त्रियों ने भी कला में कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। कला एक प्रकार का कृत्रिम निर्माण है जिसमें शारीरिक और मानसिक कौशलों का प्रयोग होता है।यह  एक ऐसी बहुमूल्य सम्पत्ति है जो होती तो सभी के पास है पर इसका आभास हर किसी को नहीं होता है। और अगर हो भी जाए तो कभी-कभी अपनों के द्वारा या कभी परायों के द्वारा दबा दिया जाता है। कला बच्चों के मन में बनी स्‍वार्थ, परिवार, क्षेत्र, धर्म, भाषा और जाति आदि की सीमाएँ मिटाकर विस्‍तृत और व्‍यापकता प्रदान करती है। बच्चों के मन को उदात्‍त बनाती है। वह व्‍यक्ति को “स्‍व” से निकालकर “वसुधैव कुटुम्‍बकम्” से जोड़ती है। कला ही है जिसमें बच्चों के मन में संवेदनाएँ उभारने, प्रवृत्तियों को ढालने तथा चिंतन को मोड़ने, अभिरुचि को दिशा देने की अद्भुत क्षमता है। मनोरंजन, सौन्‍दर्य, प्रवाह, उल्‍लास न जाने कितने तत्त्वों से यह भरपूर है।
          अध्ययनों से सिद्ध हुआ है कि कला के सम्पर्क और परिचय में आने से बच्चों के मस्तिष्क की गतिविधि को बढ़ावा मिलता है। बच्चा समस्याओं का हल निकालना सीखता है। वह अपने विचार अलग-अलग तरह से दूसरों तक पहुँचाना भी सीखता है। यह बच्चे के समग्र व्यक्तित्व का विकास करती है। उसमें आत्म-सम्मान का निर्माण होता है और अनुशासन भी आता है। कला से सम्बद्ध होने की वजह से एक बच्चा अधिक रचनात्मक और नवाचारी बनता है तथा दूसरों के साथ सहयोग करना सीखता है। सारांश में कहा जाय तो कला-गतिविधियाँ बच्चे के व्यक्तित्व-विकास, बौद्धिक प्रगति तथा अवलोकनात्मक दक्षताओं में बेहतरी लाने के लिए आवश्यक हैं।
          इसमें कोई शक नहीं कि बच्चे के व्यक्तित्व और दक्षताओं के विकास में कला-शिक्षा का महत्व है। कला से बच्चे की बुद्धि का विकास होता है। देखा गया है कि कला से सम्बद्ध गतिविधियों में शामिल बच्चे अन्य विषयों की भी बेहतर समझ विकसित कर पाते हैं फिर वह चाहे भाषा हो या भूगोल या फिर विज्ञान। विभिन्न पाठ्यक्रमों के विषय वस्तु को सीखने सिखाने के लिए कला से जोड़ देने से बहुत सरलता से विषय की अवधारणा स्पष्ट रूप से समझाई जा सकती है।
          हमें जरूरत है बच्चों में कला के प्रति रुचि जागृत करना, कला के द्वारा अवधारणाओं को स्पष्ट करना, कला के महत्व को जीवन की अन्य गतिविधियों से जोड़कर विषय वस्तु को स्पष्ट करना। हमें जरूरत है बच्चों में विषयों के प्रति रुचि जागृत करने के लिए कला को एक माध्यम बनाया जाए। 
अपराजिता कुमारी 
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय जिगना जगन्नाथ
 ब्लॉक-हथुआ, गोपालगंज

5 comments:

  1. Ati sunder 👌👌🙏🙏

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  2. बहुत सुंदर आलेख

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  3. बहुत सुंदर और प्रेरणा दायक आलेख

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