शिक्षक राष्ट्र निर्माता-भवानंद सिंह - Teachers of Bihar

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Wednesday 22 July 2020

शिक्षक राष्ट्र निर्माता-भवानंद सिंह

शिक्षक राष्ट्र निर्माता

शिक्षक हूँ शिक्षा का दीप जलाता हूँ
मोम की तरह जल-जलकर प्रकाश जगत में फैलाता हूँ।

          शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है । चाणक्य ने कहा था कि निर्माण और प्रलय शिक्षक के गोद में पलता है लेकिन यहाँ हम निर्माण की बात करेंगे। शिक्षक महज एक शब्द नहीं है। इसका अर्थ बहुत व्यापक होता है तथा यह बहुत विशेष अर्थ वाला शब्द है। जैसा कि हम जानते हैं शिक्षक शब्द तीन अक्षरों के मेल से बना है। अगर इन तीनों अक्षरों को अलग कर विश्लेषण किया जाय तो निम्न अर्थ निकलता है :--
            एक अच्छे शिक्षक अपने छात्रों का हमेशा भला चाहते हैं। शिक्षक ऐसा शिल्पी अथवा कलाकार होता है जो अपने हुनर और पारखी नजर से छात्रों को परखते हैं।
और उनकी क्षमता के अनुसार  अपन हुनर से उसके अंदर ऐसा रंग भरते हैं जो छात्रों को जीवन भर काम आते हैैं और वह समाज का मजबूत और ईमानदार स्तम्भ बनकर समाज का पथ प्रदर्शक का काम करते हैं।
          शिक्षक शब्द के मध्य में 'क्ष' अक्षर आता है जो बहुत ही खास महत्व रखता है। शिक्षक में वे सारे गुण मौजूद होने चाहिए जो छात्रों को क्षमतावान बना सकें। और कदाचित शिक्षकों  में यह गुण होता भी है। बच्चे जब सीखते हैं तो उनसे गलतियाँ भी होती रहती हैं। सच्चे और अच्छे शिक्षक का दायित्व है कि उनकी गलतियों को नजरअंदाज कर उसे फिर से वो बात बताई जाय जहाँ छात्र गलती कर रहे हैं। देखा जाए तो शिक्षक तब तक परिश्रम करते रहते हैं जब तक छात्र सही तथ्य को सीख न जाय
          'क' से कल्याण अर्थात अपने छात्रों की हर कमजोरी को दूर करते हुए उसे उस शिखर तक पहुँचाना होता है जहाँ वह पूर्णता हासिल कर सके। अगर छात्र पूर्णता हासिल कर ले तो उसे अपने जीवन पथ पर अग्रसर होने में कभी कोई परेशानी का सामना करना नहीं पड़ेगा और वह देश का सच्चा नागरिक बनकर देश की सेवा करेगा। उसे पूर्णता हासिल करने में शिक्षक हमेशा उसका मददगार साबित होता है ।
          इन सबके अलावा भी शिक्षक का कार्य क्षेत्र और भी है। सर्वप्रथम शिक्षक अपने छात्रों को संस्कार की शिक्षा देते हैं ताकि बच्चे संस्कारवान बन सके। यह गुण प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। ऐसे गुणों से ओतप्रोत व्यक्ति समाज में एक मिसाल कायम करते हैं। उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है । संस्कार की तरह छात्रों में अनुशासन का होना भी जरूरी है । अनुशासन हीन व्यक्ति कभी भी राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान नहीं दे सकता है। कहा भी गया है कि- "अनुशासन ही देश को महान बनाता है"। अतः व्यक्ति में अनुशासन का होना अत्यंत आवश्यक है। यह अनुशासन का ज्ञान बच्चों में शिक्षक ही भरते हैं।
          शिक्षक अपने छात्रों से देश प्रेम करना भी सिखाते हैं। देश हमें सब कुछ देता है जिसकी हमें आवश्यकता होती है, तो हमारा भी दायित्व हो जाता है कि हम भी देश के लिए कुछ विशेष करें। हवा, जल, अन्न, शिक्षा, स्वास्थ्य, घर आदि संसाधन का हम उपयोग करते हैं। इसके अलावा शिक्षक अपने छात्रों को उन्हें उनके कर्त्तव्य तथा अधिकार के विषय में विस्तार से बताते हैं। देश के लिए उनके क्या-क्या कर्त्तव्य हैं। अपने कर्त्तव्य को करते हुए ही कोई व्यक्ति अपना अधिकार पा सकता है । ये सारा ज्ञान छात्रों को शिक्षकों से ही प्राप्त होता है ।
          इस प्रकार देखा जाय तो एक शिक्षक अपने छात्रों को आग में तपाकर, सर्दी में ठिठुराकर तथा ज्ञान की वर्षा में भिगोकर उसे होनहार व्यक्ति बनाते हैं, उसका चरित्र निर्माण करते हैं, उसे संस्कारवान, अनुशासित तथा देश प्रेमी बनाते  हैं जिससे वह अच्छे समाज का निर्माण कर सके। देश उन्नति के रास्ते पर आगे बढ़ सके। यह सब एक अच्छे शिक्षक की निशानी है। इसलिए शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है जो बिल्कुल सही है ।

     
                 

भवानंद सिंह 
रानीगंज, अररिया

4 comments:

  1. बहुत बढ़िया👌👌

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  2. बहुत-बहुत सुन्दर!

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  3. सुन्दर आलेख ।A teacher is like the candle, which lights other in consuming it self. इसका सुन्दर वर्णन आपने किया ।प्रशंसनीय है ।

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