वन महोत्सव एक पावन पर्व-पंकज कुमार - Teachers of Bihar

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Sunday, 5 July 2020

वन महोत्सव एक पावन पर्व-पंकज कुमार

वन महोत्सव एक पावन पर्व

          वन धरती का श्रृंगार है। यह पृथ्वी पर जीवन के आस्तित्व का आधार है। यह पर्यावरण संतुलन और आदर्श जलवायु का सारतत्व है। यह मानवमात्र ही नहीं बल्कि समस्त संसार की उन्नति, समृद्धि, सुंदरता और खुशहाली का पर्याय है।
         वर्तमान युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, यातायात, चिकित्सा, संचार, अंतरिक्ष अनुसंधान इत्यादि क्षेत्र में मनुष्य ने काफी उन्नति की है लेकिन आधुनिकता के इस भाग दौड़ में मनुष्य पर्यावरण, जल, वायु, मिट्टी तथा वन को भूल गया है। आज सारा संसार पर्यावरण असंतुलन, global warming, जलवायु परिवर्तन, ओजोन संकट, जलाभाव, सूखा आदि मौलिक समस्याओं से जूझ रहा है। पर्यावरण असंतुलन जीवन के आस्तित्व को ही गंभीर चुनौती दे रहा है। इसका कारण क्या है? वनों की अंधाधुंध कटाई। कृषि योग्य भूमि प्राप्त करने हेतु, रेलमार्ग, सड़कमार्ग, हवाईअड्डा बनाने हेतु, कल-कारखाना स्थापित करने हेतु, नये-नये नगर बसाने हेतु मनुष्य वनों की अंधाधुंध कटाई कर रहा है। झूम कृषि, इमारती व बहुमूल्य लकड़ी के अवैध व्यापार और दावानल ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। फलतः पृथ्वी पर वन का प्रतिशत लगातार घटता जा रहा है। वनोन्मूलन ही सभी पर्यावरणीय समस्याओं का जड़ है। इसी कारण धरती अपनी सुंदरता खोती जा रही है और वीरान होती जा रही है।
          भारत में वनों की मात्रा को बढ़ाने और उनके संरक्षण के उद्देश्य से प्रतिवर्ष जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव कार्यक्रम मनाया जाता है। सन् 1950 ई. में तत्कालीन केन्द्रीय कृषि मंत्री डॉ कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जी ने इस कार्यक्रम का शुभारम्भ किया था। तब से प्रतिवर्ष इस पवित्र पर्व को मनाया जाता है। इस दौरान नये पेड़-पौधे लगाए जाते हैं तथा उपलब्ध वनों के संरक्षण पर बल दिया जाता है।
           वन हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। हरे पेड़-पौधे ही क्लोरोफिल की सहायता से सौर ऊर्जा को ग्रहण  करते हैं और इसे जीव जगत में प्रवेश कराते हैं। यह लाभदायक फल-फूल, शाक-सब्जी, कंद-मूल, दलहन, तिलहन, मोटे अनाज का स्त्रोत है। यह जड़ी-बूटी, मशाला, रबर, लाह, गोंद, च्विंगम इत्यादि उपयोगी पदार्थ प्रदान करता है। यह जैविक खाद ह्यूमस प्रदान करके मिट्टी की उर्वराशक्ति को बढ़ाता है। यह हमें प्राणवायु ऑक्सीजन प्रदान करता है तथा हानिकारक कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का स्वयं उपभोग करके मानव जाति को "global warming" से बचाता है। यदि पर्याप्त मात्रा में वन न हो तो global warming के कारण धरती का तापमान इतना बढ़ जाएगा कि इसपर मौजूद सारा ग्लेशियर पिघल जाएगा और सारी धरती जलमग्न हो जाएगी। 
         वन वर्षा कराने में सहायक है। पर्याप्त वर्षा से जल संकट दूर होता है। भौम जलस्तर बढ़ता है। सूखे की समस्या नहीं होती है और अनाज का उत्पादन बेहतर होता है। वन सूती वस्त्र उद्योग, रेशमी वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग, चीनी उद्योग, कपड़ा उद्योग, फर्नीचर उद्योग, दियासलाई उद्योग के लिए कच्चा माल प्रदान करता है। यह वन्य प्राणियों का आश्रय स्थल है। यह जैव विविधता का केन्द्र है यह मानव को त्याग, परोपकार और विनम्रता का संदेश देता है। मानव वनों में एकांतवास कर साधना द्वारा शांति और ज्ञान प्राप्त करते हैं।
          इस प्रकार, पेड़-पौधे हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। हमारे पूर्वजों ने इनके महत्व को अच्छी तरह समझा।आदि काल से ही हमारे देश में पीपल, बरगद, अशोक, नीम, तुलसी आदि वृक्षों को पूजा जाता है। राजस्थान के खेजरी गाँव में, उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में वन संरक्षण के लिए  चलाया गया "चिपको आंदोलन" प्रसिद्ध है। भारत सरकार ने वन संरक्षण के लिए सन् 1952 ई. में राष्ट्रीय वन नीति बनाया जिसे सन् 1988 में संशोधित किया गया इसमें कम से कम 33% भूमि पर वन विस्तार का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसके लिए आधिककाधिक वृक्षारोपण तथा वन संरक्षण पर बल दिया गया। इसमें अभी और व्यापक प्रयास की आवश्यकता है।
         वास्तव में "नये वन लगाना और उनका संरक्षण करना" ही पावन पर्व है। पृथ्वी पर पर्यावरण संतुलन और जीवन के आस्तित्व को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमें वन रोपण और वन संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए। आइये वन महोत्सव तथा अपने जन्मदिन जैसे पावन अवसर पर हम प्रतिवर्ष कम से कम एक-एक पौधा अवश्य लगाएँ और अपने सहयोगियों तथा विद्यार्थियों को भी इस पावन कार्य के लिए प्रेरित करें।

                           
पंकज कुमार
प्रा. वि. हरिवंशपुर (बाथ)
सुलतानगंज, भागलपुर
मो. 9572080331
                    

10 comments:

  1. वाकई आपने अच्छा लिखा है।वन के वृक्ष पुत्र तुल्य हैं, हमारी वसुंधरा का फेफड़ा है। मित्र हैं। हमें इस पर्व को उत्सव की तरह सानंद मनाना चाहिए।

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  2. वास्तव में वनों का होना पर्यावरण के संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है।वन सभी प्राणियों के लिए जीवनदायक हैं। पेड़ पौधों की महत्ता को समझते हुए हमें इनके रखवाली और ज्यादा से ज्यादा वृद्धि के प्रति जागरूक होना चाहिए।साथ ही साथ एक शिक्षक होने के नाते बच्चों को भी इस कार्य के लिए प्रेरित करना चाहिए।
    अत्यंत ही जानकारी भरा आलेख। बड़े ही सारगर्भित लेख से लेखक वन एवं पर्यावरण के संरक्षण के प्रति प्रेरित करते हैं, इसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं।

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  3. सर जी बास्तव में हम प्राणियों को इस सारगर्भित लेख से वन एवं पर्यावरण के संरक्षण के प्रति प्रेरित करते हैं ,इसके लिए लेखक ( पंकज कुमार) प्रशंसा के पात्र हैं

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  4. प्रकृति मातृतुल्य है। वन, प्रकृति का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है।वन के बिना मनुष्य अपने अस्तित्व का कल्पना भी नहीं कर सकता है। आधुनिकीकरण के अंधदौड़ में वनों के कटाव एवं उपेक्षा ने हमें प्राकृतिक त्रासदी की ओर ढकेल दिया है।
    आपका लेख अत्यंत उत्कृष्ट एवं सारगर्भित है। बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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  5. बहुत-बहुत सुन्दर!

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