वन महोत्सव-देव कांत मिश्र - Teachers of Bihar

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Sunday, 5 July 2020

वन महोत्सव-देव कांत मिश्र

वन महोत्सव

          वन एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है जिसका उपयोग युगों-युगों से होता आ रहा है। यह नवीकरणीय है जिसे नष्ट होने पर पुनः उगाया जा सकता है। इसकी पूर्ति की जा सकती है। यह हमारे जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है परन्तु सामान्य जन इनके महत्व से भली- भाँति अवगत नहीं हैं। यों कहा जाय इनके बगैर मानव जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है। आदिकाल से ही हमारा गहरा संबंध वनों से रहा है।  वन आर्थिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग होने के साथ-साथ मनोरंजन के अनुपम साधन भी हैं। जब कोई वनों के नैसर्गिक सौंदर्य को देखता है तो उसकी कल्पना जाग उठती है। भाव- विभोर होकर आनंद के सागर में गोता लगाने लगता है। कहने का तात्पर्य है  वन है तो हम हैं। इसी से हरियाली एवं जीवन में खुशहाली है। जरा सोचिए! खुशी, आनंद तो किसी उत्सव में ही मिलता है ना। तो चलिए वन महोत्सव (महा+ उत्सव) के बारे में चर्चा करते हैं।
          वन महोत्सव एक उत्सव है जो पूरे भारत में एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस उत्सव में एक अलग ही रंग है, कशिश है, सजीवता है। जब एक से सात जुलाई तक सम्पूर्ण देश में वृक्षारोपण कार्यक्रम होता है  तो एक नया दृश्य उपस्थित हो जाता है। प्रकृति भी मुस्कराने लगती है, प्रसन्नता से झूम उठती है क्योंकि तब तक हमारे देश में बारिश का आगमन जो हो जाता है। इस समय पेड़ पौधों के लगाने का सबसे अच्छा समय होता है।
          हमारे देश में कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने 1950 ई. में  वन महोत्सव की शुरुआत की थी ताकि लोगों को पेड़-पौधों का महत्व और उसके संरक्षण का पता चल सके। इस महोत्सव को आरंभ करने के निम्नलिखित उद्देश्य थे:- 
* ज्यादा से ज्यादा फलों का उत्पादन हो। 
* खेतों के आसपास सुरक्षा पट्टी बनी रहे। 
* पशुओं को चारा प्राप्त हो।
* मिट्टी का संरक्षण हो तथा उसे क्षरण(erosion) से बचाया जाय इत्यादि। 
          मेरी राय में, सच पूछा जाय तो इसके प्रति उनका मुख्य उद्देश्य था- अधिक से अधिक वृक्षारोपण की जाय, उसे कटने से बचाया जाय। यदि पेड़-पौधे सुरक्षित रहेंगे तो हरियाली के साथ-साथ खुशहाली भी आएगी। मानव के साथ सारे प्राणी भी खुश नजर आएँगे। वस्तुत: ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण कर हम अपने चारों ओर हरियाली व खुशहाली ला सकते हैं।
          By planting more and more trees and keeping them well protected, We should move forward strongly in making the world beautiful.This Will bring greenery all round which will prove to be effective in making the society and world beautiful.  
          सचमुच, वनों से ही हमारी धरती की शोभा है। वन वर्षा के संचालक हैं। इनका नदियों से बहुत गहरा लगाव है। तभी तो डॉ. भगवती शरण सिंह ने सही कहा है- वनों के रहते नदियाँ स्वत: फूट पड़ती है एवं प्रवाहित  होती रहती हैं। वह नहीं रहेंगे तो नदियाँ भी नहीं रहेंगी। अतः वनों की महत्ता अस्वीकार करके न तो हम आर्थिक उन्नति कर सकते हैं और न ही हम स्वास्थ्य एवं सुख की कल्पना कर सकते हैं। वनों के वृक्ष वातावरण से दूषित वायु ग्रहण करते हैं तथा ऑक्सीजन छोड़कर पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखते हैं। वातावरण को संतुलित बनाए रखने में वन बेहतर उपयोगी है। इससे वातावरण का तापमान, नमी और वायु प्रवाह नियंत्रित होता है जिससे जलवायु (climate) में संतुलन बना रहता है। वन के पेड़ पत्ते सड़कर मिट्टी को जीवांश प्रदान करते हैं और उसे उर्वर बनाते हैं। सरकार तथा जन समाज को वनों की सुरक्षा का अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए। हमें वन महोत्सव के अवसर पर ही नहीं बल्कि जन्म दिवस  या राष्ट्रीय त्योहारों  के अवसर पर एक वृक्ष अवश्य ही लगाना चाहिए। वृक्ष पुत्र के समान है। जिस तरह हम अपने पुत्र  का परवरिश व रक्षा करते हैं ठीक उसी प्रकार हम पेड़-पौधों की रक्षा करें। इस सन्दर्भ में हम शिक्षकों की भी भूमिका बढ़ जाती है। हमें बच्चों को विद्यालय में वृक्षों के महत्व एवं संरक्षण के बारे में खुलकर संवाद करना चाहिए। उनके लाभ तथा काटे जाने के दूरगामी प्रभावों के बारे में भी बताना चाहिए और हो सके तो एक-एक वृक्षारोपण हेतु भी समय-समय पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें यह भी कहा जाना चाहिए कि अगर वृक्ष लगाओगे तो फल खाओगे ही, जीवन में सुख भी पाओगे। सच में, यह महोत्सव एक Celebration of life है। इसके अन्तर्गत लाखों, करोड़ों पौधे लगाए जाते हैं। 
           अतः यदि हम ग्लोबल वार्मिंग, विभिन्न तरह के रोग तथा प्रदूषण से निजात पाना  चाहते हैं तो इस प्राकृतिक सौंदर्य को नष्ट होने से बचाएँ। तभी तो प्रख्यात लेखिका व कवयित्री महादेवी वर्मा ने ठीक ही कहा है-  "तारों से भरी चाँदनी रात, रोगी को नर्स से अधिक सुख दे सकत है"।
मेरा भी कहना है-
       गर दोस्त हूँ  तो क्यों काटता है।
       न काटो मुझे, बड़ा दुखता है।।
       मेरे रहते ही हरियाली भाता है।
       मुझसे ही प्राणी सर्व सुख पाता है।।

देव कांत मिश्र  
मध्य विद्यालय धवलपुरा
सुलतानगंज भागलपुर बिहार

3 comments:

  1. बहुत सुंदर आलेख सर 🙏👌👌

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  2. अति उत्तम आलेख। वास्तव में वन प्रकृति का श्रृंगार तथा जीवन का आधार है।स्वस्थ और सुखी जीवन का पर्याय है वन। सुंदर आलेख के लिए बधाई ।

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  3. बहुत-बहुत सुन्दर!

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