गणित का जादूगर-नसीम अख्तर - Teachers of Bihar

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Wednesday 30 December 2020

गणित का जादूगर-नसीम अख्तर

गणित का जादूगर 

          एक शिक्षक के द्वारा अपने विद्यालय के कक्षा तीन में शिक्षण कार्य करते हुए अपने छात्र/छात्राओं को यह बताया जा रहा था कि यदि तीन आम तीन व्यक्तियों में बराबर-बराबर बाटेंगे तो प्रत्येक के हिस्से में एक आम आएगा। यदि 1000 आम 1000 व्यक्तियों में बांटते हैं तो प्रत्येक को एक एक आम मिलेगा। इसका अर्थ यह हैं कि अगर किसी संख्या को उसी संख्या विभाजित करें तो भजनफल एक आता हैं। सभी छात्र/छात्राओं ने अपनी सहमति देकर शिक्षक के पाठ को समझकर आत्मसात करने का संकेत दिया पर उसी कक्षा में बैठा एक छात्र कुछ अन्य विचारों में खोया था। शिक्षक ने उसे अपने पास बुलाया और उसकी परेशानी के कारण को पूछा तो उस छात्र ने कहा अगर मेरे पास एक भी आम नही हो और मैं किसी को भी आम नहीं देना चाहता हूं तो भी क्या मेरे पास एक आम होगा। पूरी कक्षा इस अजीब प्रश्न को सुन ठहाकों से गुंज गई। शिक्षक के कहने पर नन्हे छात्र ने श्यामपट्ट पर लिखा- क्या 0/0=1 होगा? प्रश्न पूछने वाला यह छात्र कोई और नहीं बल्कि विश्वपटल पर सबसे ख्याति प्राप्त गणितज्ञों में से एक भारत का श्रीनिवास रामानुजन था।
          श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से लगभग 400 किलोमीटर दूर इरोड नगर में हुआ था। इनका बचपन अभावों एवं मुश्किलों में बीता। उनकी आरंभिक शिक्षा कुम्भकोणम के प्राइमरी स्कूल में हुई और फिर 1898 में टाउन हाई स्कूल में एडमिशन लिया और सभी विषय में अच्छे अंक प्राप्त किए। यहीं पर उनको जी.एस. कार की लिखी हुई गणित विषय की पुस्तक जिसमें 6500 प्रश्नों का संग्रह था पढ़ने काअवसर मिला जिसे बिना किसी की सहायता के हल करने और कई प्रश्नों का एक से अधिक हल निकालने में सफलता प्राप्त की, जिससे प्रभावित होकर उनकी रूचि गणित में बढ़ने लगी। साथ ही उन्होंने गणित विषय में काम करना प्रारंभ कर दिया। ग़रीबी का आलम यह था कि पढ़ने के लिए नई किताबें तो दूर लिखने के लिए कॉपी की जगह स्लेट का इस्तेमाल करना पड़ता था फिर भी ऐसी परिस्थितियों से समझौता किए बगैर विद्यालयों में मित्रों से किताबें उधार लेकर, लाइब्रेरी से प्रतिदिन नईं किताबें मंगवाकर उन्हें पढ़ना उनके जीवन का अंग बन गया था। कहावत हैं कि सफलता सुविधा और संसाधनों की मोहताज नहीं होती। मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में एस एल लोनी की पुस्तक त्रिकोणमिति पर महारत हासिल कर बिना किसी की सहायता से खुद से कई प्रमेय विकसित किए। श्रीनिवास रामानुजन की प्रतिभा एवम् गणित ज्ञान की चर्चा विद्यालय ही नहीं बल्कि पूरा शहर में फ़ैल चुकी था। उनके एक शिक्षक ने तो यहां तक कह दिया कि यदि मूझे रामानुजन को 100 अंको के प्रश्नपत्र में 1000 अंक देने की अनुमति होती तो मैं ऐसा कर खुद को सौभाग्यशाली समझता। 
          रामानुजन ने बिना किसी सहायता के हजारों रिजल्ट्स, ज्यादातर identities और equations के रूप में संकलित किए। कई रिजल्ट्स पूरी तरह से original थे जैसे कि रामानुजन प्राइम, रामानुजन थीटा फ़ंक्शन, विभाजन सूत्र और mock थीटा फ़ंक्शन। इन रिजल्ट्स और identities ने पूरी तरह से काम के नए क्षेत्र खोल दिए और आगे रिसर्च करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने divergent series पर अपने सिद्धांत को बनाया। इसके अलावा, उन्होंने रीमैन श्रृंखला (Riemann series), the elliptic integrals, हाइपरजोमेट्रिक श्रृंखला (hypergeometric series) seriesऔर जेटा फ़ंक्शन के कार्यात्मक समीकरणों पर काम किया। काफी परिश्रम के कारण रामानुजन बीमार रहने लगे थे और मात्र 32 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनकी कई प्रमेयों (Theorems) को छपवाया गया और इनमें से कई ऐसी Theorems भी हैं जिनकों कई दशक तक सुलझाया भी नहीं जा सका।
          इसमें कोई संदेह नहीं है की रामानुजन द्वारा की गई गणित के क्षेत्र में खोज आधुनिक गणित और विज्ञान की आधारशिला बनी। यहां तक कि उनके संख्या-सिद्धान्त पर किया गये कार्य के कारण ही उन्हें 'संख्याओं का जादूगर' कहा जाता हैं। ज्ञातव्य हो कि 1729 को रामानुजन संख्या कहा जाता हैं। इस संख्या के बारे में श्रीनिवास रामानुजन ने कहा कि विश्व की यह ऐसी छोटी संख्या हैं जो दो अलग-अलग घनों के योग के रूप में लिखी जा सकती हैं।
1729 = 1³ + 12³ = 10³ + 9³ 
          श्रीनिवास रामानुजन ने अपने जीवन में तीन नोटबुक्स लिखे जिनमें लगभग 3400 प्रमेय थे। पूरे विश्व में श्रीनिवास रामानुजन के नाम पर हजारों शोध हुए, कई डॉक्यूमेंटरी और फिल्में भी बनी। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा चेन्नई में महान गणितज्ञ श्रीनिवास  रामानुजन की 125वीं वर्षगाठ के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में श्रीनिवास रामानुजन को श्रद्धांजलि देते हुए वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष और साथ ही उनके जन्मदिन को यानी 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया। सबसे पहले यह दिवस 22 दिसंबर 2012 को मनाया गया था जिसके बाद से देश भर में हर साल 22 दिसम्बर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय गणित दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में गणित के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि देश की युवा पीढ़ी के बीच गणित सीखने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को प्रेरित करने, उत्साहित करने और विकसित करने के लिए कई पहल की जाती रही है इसलिए, इस दिन गणित के शिक्षकों और छात्रों को ट्रेनिंग दी जाती है। विभिन्न जगहों पर कैम्प का आयोजन किया जाता है ताकि गणित से संबंधित क्षेत्रों में टीचिंग-लर्निंग मैटेरियल्स (TLM) के विकास, उत्पादन और प्रसार पर प्रकाश डाला जा सके।
          वास्तव में गणित मानव मस्तिष्क की उपज हैं। मानव की गतिविधियों एवं प्रकृति के निरीक्षणों द्वारा ही गणित का उद्भव हुआ। जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे ऊपर हैं, उसी प्रकार सभी वेदांगो और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे ऊपर हैं। अपने दैनिक जीवन में प्रतिदिन हम गणित का प्रयोग करते हैं, यथा समय जानने हेतु घड़ी देखते हैं, खरीदारी करते समय हिसाब जोड़ते हैं, खेलों में स्कोर का लेखा जोखा रखते हैं आदि। 
कभी करते हैं जोड़ तो कभी घटाना पड़ता हैं।। 


नसीम अख्तर
बी॰बी॰राम+2विद्यालय
नगरा, सारण




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