सम्मान की अवधारणा-चन्द्रशेखर प्रसाद साहु - Teachers of Bihar

Recent

Monday 28 December 2020

सम्मान की अवधारणा-चन्द्रशेखर प्रसाद साहु


सम्मान की अवधारणा

          सम्मान कोई जबरन लेने की वस्तु नहीं है और न ही वह किसी से छीनी जा सकतीन है। यह तो सामने वाले की सच्ची श्रद्धा और अनुरागपूर्ण आत्मीयता से उत्पन्न होने वाली चीज है। इसमें श्रद्धा के साथ विश्वास भी मिश्रित है। यह विश्वास कल्पना, तर्कजाल एवं मोहजाल पर निर्भर नहीं होता बल्कि यह कर्मठता, लगनशीलता एवं समर्पणशीलता से उत्पन्न होता है। इसके लिए वाचाल, प्रदर्शन एवं कृत्रिमता की आवश्यकता नहीं होती है।  शिक्षक यदि कर्मठ हों, लगनशील हों, विद्यालय एवं विद्यार्थियों के प्रति समर्पित हों तो  विद्यार्थियों एवं अभिभावकों में उनके प्रति श्रद्धा एवं विश्वास का भाव अवश्य होता है। विश्वास ही ऐसी पूंजी है जो शिक्षकों को समाज में सम्मान दिलाता है। अन्य सभी पेशा की अपेक्षा शिक्षक का कार्य सदैव उत्कृष्ट एवं महान है। शिक्षक का शिक्षण कार्य  अन्य पेशा जैसे चिकित्सा, विज्ञान, राजनीति, प्रशासन के कार्यों से श्रेष्ठ है क्योंकि शिक्षक स्वयं व्यक्तिगत कमजोरियों का शिकार भले हो, फिर भी वह हर दशा में विद्यार्थियों को एक बेहतरीन इंसान बनाने का पूरा प्रयास करता है, इस ओर वह अपनी सारी ऊर्जा लगा देता है। वह बच्चों को एक कुशल नागरिक बनाने की दिशा में सदैव प्रयत्नशील रहता है। वह बच्चों को लौकिक, सामाजिक, आर्थिक कौशलों में निपुण तो बनाता ही है, वह उन मूल्यों से भी उन्हें अवगत कराता है और उनके जीवन में समाहित करने का प्रयास करता है जो शाश्वत है, स्थाई है, सभी कालखंडों एवं सभी समुदायों में प्रासंगिक है। वह बच्चों को करुणा, सहयोग, त्याग ,सादगी, विनम्रता, ईमानदारी, कर्मठता, मर्यादा, रचनाशीलता, श्रमशीलता, प्रेम, न्याय, समानुभूति, समर्पण, सहिष्णुता आदि शाश्वत मूल्यों से बोध कराता है और उसे अपनाने के लिए प्रेरित करता है। वह सत्य को समझने का, तर्क करने का, विवेकशीलता आदि कौशलों का विकास बच्चों में करता है। इसी संदर्भ में वह अन्य पेशा से उत्कृष्ट, आदरणीय एवं महान हो जाता है।
          आदिकाल में शिक्षक (गुरु) विद्यार्थी के शिक्षा के प्रति पूर्णतः समर्पित होते थे। धन संचय एवं अर्थोपार्जन के हिसाब से वह विद्यार्थियों को ज्ञान एवं शिक्षा देने में भेद-भाव नहीं करते थे। आश्रम के सभी शिष्यों को वह समान भाव से एक समान ज्ञान देने का कार्य करते थे। यह उनका व्यवसाय नहीं था, यह उनका जीविकोपार्जन का साधन नहीं था बल्कि इसे वह अपना कर्म, धर्म एवं ईश्वरीय सेवा का कार्य मानते थे। ज्ञान एवं शिक्षा के बदले विद्यार्थियों एवं अभिभावकों से मासिक/वार्षिक या कोई निश्चित शुल्क वसूलने की परंपरा नहीं थी। इस दृष्टि से उनके शिक्षा दान का कार्य नि:स्वार्थ माना जाता था। गुरु के पास जो भी ज्ञान रहता था वह सब अपने शिष्यों के सामने उड़ेल देते थे। एक और बड़ी बात थी - प्राचीन गुरू में वाणी एवं आचरण में समानता थी, उनकी कथनी व करनी में साम्यता थी। शिष्यों को जिन नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती थी, वह गुरु के अंदर एवं बाहर स्पष्ट देखे जाते थे। उन नैतिक मूल्यों एवं चारित्रिक मूल्यों का वह अपने कर्म, आचरण एवं व्यवहार में पालन करते थे । यह सारे गुण उन्हें आदरणीय, आदर्श एवं महान ही नहीं बनाए बल्कि उन्हें साक्षात ईश्वर बनाए। इन्हीं सब आचरणों एवं गुणों के कारण प्राचीन गुरू, विद्यार्थी के लिए ही नहीं बल्कि अभिभावक समाज, साधारण जन एवं शासकों के लिए भी आदरणीय होते थे, सर्वत्र पूजनीय होते थे।
          आज भी ऐसे शिक्षक हैं, जिनका विद्यालय एवं विद्यार्थियों से लगाव है, जो अपने शिक्षण कार्य में कर्मठ, कुशल एवं लगनशील हैं, उन्हें विद्यार्थी, अभिभावक एवं समाज निश्चित रूप से सम्मान प्रदान करता हैं। अच्छे शिक्षक समाज में सम्मान के मोहताज नहीं हैं बल्कि उन्हें आज भी प्राचीन गुरू जैसा प्रेम, आदर, श्रद्धा एवं विश्वास प्राप्त होता है परंतु यह भी सत्य है कि सरकार की वर्तमान नीति एवं व्यवस्था के कारण शिक्षक के सम्मान में  ह्रास हुआ है। गैर शैक्षणिक कार्य में शिक्षकों को प्रतिनियुक्त करने से जहाँ शिक्षण कार्य में बाधा आती है वहीं समाज में उनके शिक्षण क्रियाकलाप  पर सवाल खड़े होने लगते हैं। यह बड़ी विडंबना है कि गैर शैक्षणिक कार्य में शिक्षकों का श्रम एवं समय व्यय होने के बावजूद उन्हें शिक्षण कार्य में लापरवाह, निष्क्रिय एवं कामचोर होने के उलाहने  मिलते हैं। ऐसी स्थिति में समाज में उनकी नकारात्मक छवि बन जाती है और उन्हें समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है।
          समाज में सम्मान का पैमाना धन, पैरवी एवं  राजनीतिक पैठ होते जा रहा है। ऐसे में सम्मान पाने का नजरिया बदल रहा है। कुछ शिक्षक यह समझते हैं कि पदाधिकारियों, ऊँचे कद वाले राजनेताओं या रसूखदारों से गहरा संपर्क रखने पर समाज में उनकी इज्जत बढ़ेगी परंतु मेरा मत है कि ऐसा सम्मान क्षणिक एवं अस्थाई है। इससे शिक्षकों को वास्तविक सम्मान नहीं मिलता है। शिक्षकों का वास्तविक सम्मान उसका शैक्षणिक कार्यों के प्रति रुचि एवं समर्पणशीलता है। शिक्षक  की वास्तविक पहचान उसकी शिक्षण शैली ही है। विद्यालय एवं विद्यार्थियों से आत्मीय लगाव ही सम्मान पाने का मूल आधार है। विद्यालय, विद्यार्थी एवं शिक्षण से कटा शिक्षक समाज के नजर में सम्मान का वास्तविक अधिकारी नहीं है।
          विद्यालय में संचालित मध्याह्न भोजन योजना, छात्रवृत्ति-पोशाक योजना आदि निश्चित रूप से कल्याणकारी हैं जो विद्यार्थियों एवं अभिभावकों के हित में हैं परंतु इन योजनाओं से शिक्षकों की विश्वसनीयता समाज में घटी है। शिक्षक इन योजनाओं का क्रियान्वयन पूरी ईमानदारी एवं पारदर्शिता के साथ करते हैं, बच्चों को इसका लाभ पूरा-पूरा मिलता है, परंतु समाज में किसी सरकारी योजना के क्रियान्वयन को लेकर जो पूर्वधारणा है, उसी परंपरागत सोंच वाले  चौखटें में शिक्षकों को फिट कर समाज के कुछ लोग एवं कुछ पदाधिकारी उनकी कार्यशैली का मनमाफिक मूल्यांकन कर लेते हैं। फलतः शिक्षकों की साख पर भी बट्टा लग जाता है, जो बेबुनियाद होता है। इसका भी शिक्षकों के सम्मान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इन गैर शैक्षणिक क्रियाकलापों से समाज में शिक्षकों की विश्वसनीयता को लेकर साख तो गिरी ही है, शैक्षणिक क्रियाकलाप भी प्रभावित हुई है। शिक्षकों को समाज में अपना सम्मान एवं महत्व कायम रखने के लिए विद्यालय, विद्यार्थी एवं शैक्षणिक क्रियाकलाप में मनोयोग से भाग लेने की जरूरत है। इस दिशा में स्थाई जुड़ाव ही उनके सम्मान पाने का जरूरी शर्त है। शिक्षक अपने कार्य एवं दायित्व को पहचाने और उसमें सक्रियता से भाग ले। अपनी कुशलताओं से विद्यार्थियों को एक बेहतरीन इंसान बनाने में अपनी पूरी ऊर्जा लगाए। शिक्षक समाज का अगुआ होता है, वह पथ प्रदर्शक व मार्गदर्शक होता है। अपनी कर्मठता एवं अनुभव के बदौलत वह राष्ट्रीयता, चरित्र, नीति, सामाजिक, संस्कृति एवं जीवन मूल्यों आदि से बच्चों को अवगत कराता है और उसी के अनुरूप उन्हें  अपने भावी जीवन को गढ़ने के लिए प्रेरित करता है। वास्तव में इसी अर्थ में शिक्षक राष्ट्र एवं समाज की दृष्टि में सम्मानित होता है।

चन्द्रशेखर प्रसाद साहु
प्रधानाध्यापक
कन्या मध्य विद्यालय कुटुंबा
औरँगाबाद (बिहार)
  

No comments:

Post a Comment