पर्यावरण शिक्षण क्या क्यों कैसे-मो. जाहिद हुसैन - Teachers of Bihar

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Sunday 4 April 2021

पर्यावरण शिक्षण क्या क्यों कैसे-मो. जाहिद हुसैन

पर्यावरण शिक्षण क्या क्यों कैसे

          सबको मालूम है कि प्रकृति एक खुली किताब है। बच्चे प्रकृति की किताब को पढ़ने का भरपूर प्रयास करते हैं। प्रकृति को जानना बच्चों की प्रकृति है। शायद बच्चों के पास जो अनुभव होता है, वह पाठ्य पुस्तकों के लेखकों से भी ज्यादा होता है। प्रत्येक बच्चा दुनिया को अपने नजरिए से देखा होता है। वे स्कूल आने से पहले ही अपनी संस्कृति, भाषा, इतिहास, परंपरा और प्रचलन को बहुत कुछ सीख लिए होते हैं। शिक्षक को चाहिए कि बच्चों को इस प्रकार खोजबीन में क्षमतावान बना दें कि वे मस्तिष्क में उठने वाले प्रश्नों की गहराई तक जा सके। पर्यावरण शिक्षण पढ़ाने का नाम नहीं है अपितु पर्यावरण से साक्षात्कार कराना है ताकि बच्चे वैज्ञानिक एवं सामाजिक पहलुओं को जान-समझ सकें।
          पर्यावरण का तात्पर्य  केवल प्राकृतिक और भौतिक वातावरण ही नहीं अपितु सामाजिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक वातावरण भी है। आस-पास जो कुछ भी है, सब  पर्यावरण है। अतः बनी बनाई (Readymade) पाठ्यपुस्तक बच्चों को सिखाने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए तो उन्हें चहुं ओर की आबोहवा से रूबरू कराना होगा और यह भी जानना होगा कि वे किस आबोहवा से आए हैं। स्थानीय परिवेश के आधार पर पर्यावरण शिक्षा इसलिए जरूरी है कि बर्फीले कश्मीर की वादियों और कन्याकुमारी तक की प्रकृति एवं संस्कृति में आसमान जमीन का अंतर है। मेघालय में खासी हिल्स के मासिनराम (सबसे भारी वर्षा वाला स्थान) और गुजरात के कच्छ के रण के मौसम और सांस्कृतिक पैटर्न अलग-अलग हैं। शिक्षक को ऐसा वातावरण बनाना होगा जिसमें अपने साथियों एवं शिक्षक से मिलकर अवलोकनों से निष्कर्ष निकाल सकें। यही वैज्ञानिक विधि है।
          पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य क्या है ? उद्देश्य है: मानव मूल्यों का विकास एवं पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता। संक्षिप्त में कहें तो शिक्षक बच्चों में निहित प्रकृति प्रेम को जागृत कर दें। एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक 'आस-पास' हो या एससीईआरटी, पटना की 'पर्यावरण एवं हम' हो। पाठ्यक्रम परिवार, जल आवास, यात्रा एवं स्व निर्माण के थीम (Theme) पर आधारित है। पाठ्येत्तर स्थानीय अनुभव से बच्चे वर्ग-कक्ष में सहज अंतः क्रिया करते हैं जिससे पाठ समझाना भी सहज हो जाता है।
          वातावरण के साथ अंतः क्रिया सृजन की तैयारी है। अतः बच्चों के द्वारा प्रश्नों की बौछार को झेलने के लिए शिक्षक तैयार रहें। सीखे गए चीजों का सदुपयोग बच्चों के वातावरण के प्रति संवेदनशीलता एवं मूल्यों का पैरामीटर है। वन संरक्षण, जल संरक्षण, स्वच्छता का महत्व एवं स्वास्थ्य लाभ का ज्ञान होने के बाद बच्चों में अपेक्षित क्रियाकलाप दृष्टिगोचर हों। मसलन, पेड़-पौधे को नहीं काटना, व्यर्थ में पानी न बहाना, साफ-सफाई पर ध्यान देना और स्वास्थ्य के प्रति ख्याल रखना आदि। बाह्य परिवर्तन आंतरिक परिवर्तन का दर्शन है और बच्चों में अच्छा परिवर्तन शिक्षण प्रतिफल है।
          पेड़-पौधों के वृद्धि एवं विकास- अंकुरण से फूल-पत्ती तक अवलोकन तो बच्चे करते ही हैं लेकिन इसे विद्यालय में सीखने-सिखाने से जोड़ना शिक्षक के दिमाग की उपज होगी। जड़ और धड़ के साथ उन पेड़-पौधों पर कौन-कौन से जीव रहते हैं। मकड़ी कीड़े को पकड़ने के लिए कैसे जाला बुनती है। पेड़ों पर कौन-कौन सी चिड़िया बैठती है। गोरैया घोंसले कैसे बनाता है। गोरैया मौसम की मार से सुरक्षित कैसे रहती है? चीटियां क्या-क्या करती हैं? कैसे कतारों में चलती है? क्यों कतारों में चलती हैं। प्रत्येक क्रियाकलाप पर ध्यान रखना किसी खास मकसद से यदि हो तो वह अवलोकन है। अवलोकन उन सभी प्रक्रियाओं की चाहत को बढ़ा देता है जो पर्यावरण शिक्षण को उद्देश्यपूर्ण बना देता है। माना कि बच्चे विभिन्न  प्रकार के फूलों की सूची बनाते हैं। फिर इसी तरह समूहीकरण या वर्गीकरण करते हैं। उजले फूल, गुलाबी फूल, लाल और नीले फूल इत्यादि। किस-किस पौधे में किस रंग के फूल होते हैं? उसका आकार- प्रकार क्या होता है ? कोई दो या तीन पौधे के फूल एक जैसे तो नहीं होते? कौन छोटा फूल है और कौन बड़ा? बच्चे विश्लेषण एवं संश्लेषण कर निष्कर्ष तक पहुंचते हैं। वास्तव में  यही चिंतन का वातावरण निर्माण पर्यावरण शिक्षण है।
          पर्यावरण को जानने के लिए बच्चों में अवलोकन (Observation), सूचीकरण (Listing), समूहीकरण (Grouping), वर्गीकरण (Classification), आंकड़ों का एकत्रीकरण (Data Collection), विश्लेषण-संश्लेषण (Analysis and synthesis) एवं अनुप्रयोग (Application) जैसी मानसिक क्षमताएं चाहिए होती हैं ताकि बच्चे स्वयं के मंथन से ज्ञान, व्यवहार और कौशल का अमृत पान कर सकें। 'पर्यावरण और हम' में सूचना को ढूंसने के बजाय, ऐसी तकनीक पर जोर दिया गया है जिससे कि बच्चे स्वयं ज्ञान का सृजन कर सकें। पाठ्य पुस्तक में मानव मूल्यों एवं जीवन-शिक्षा पर काफी जोर दिया गया है। बच्चों के द्वारा स्व निर्माण, यथा- दियासलाई में मिट्टी डालकर ईंट बनाने और फिर उससे दीवार लगाने तक की अवधारणा दी गई है तो लिट्टी चोखा बनाने की विधियां भी बच्चों से पूछी गई हैं। परियोजना कार्य एकदम सहज इसलिए है कि बच्चों के दैनिक जीवन के रोचक प्रसंगों से दिया गया है। जैसे-खाद्य पदार्थ के स्वाद, फूल, फल इत्यादि के सूचीकरण, समूहीकरण और  वर्गीकरण तथा पत्तों से हरबेरियम का निर्माण इत्यादि। प्रत्येक पाठ पाठ्यवस्तु (Content) और अभ्यास (Exercise) दोनों के द्वारा पूर्ण होता है। बल्कि यह कहना ज्यादा उचित है कि पर्यावरण की पूरी किताब ही को पूर्णता के रूप में (Holistic Approach) समझा जाना  चाहिए। 'आस पास' हो या 'पर्यावरण और हम' दोनों को बच्चे कहीं से भी पढ़ना शुरू कर सकते हैं और सीख सकते हैं।



मो. जाहिद हुसैन
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलह बिगहा चंडी नालंदा

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