समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों-शफक फातमा - Teachers of Bihar

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Saturday 3 April 2021

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों-शफक फातमा

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों

       समावेशी शिक्षा को अंग्रेजी में Inclusive Education कहा जाता है जिसका अर्थ होता है सामान्य तथा विशिष्ट बालकों का बिना किसी भेदभाव के एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करना। समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था होती है जिसमें सामान्य बालक-बालिकाएं और मानसिक तथा शारीरिक रूप से बाधित बालक एवं बालिकाएँ सभी एक साथ बैठकर एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। समावेशी शिक्षा सभी नागरिकों के  समानता के अधिकार की बात करता है और इसीलिए इसके सभी शैक्षिक कार्यक्रम इसी प्रकार के तय किए जाते हैं। ऐसे संस्थानों में विशिष्ट बालकों के अनुरूप प्रभावशाली वातावरण तैयार किया जाता है और नियमों में कुछ छूट भी दी जाती है जिससे कि विशिष्ट बालकों को समावेशी शिक्षा के द्वारा सामान्य विद्यालयों में सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की कोशिश की जाती है।
          इस संदर्भ में एक सवाल मष्तिष्क में उभरकर सामने आती है कि आखिर समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों है?
हम सब जानते हैं कि समाज में किसी के साथ भी किसी  तरह का भेद-भाव अमानवीय व्यवहार के अंतर्गत आता है। हमारा यह कर्तव्य एवं अधिकार है कि हम समानता और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए तत्पर रहें। समावेशी शिक्षा की आवश्यकता हर देश में है क्योंकि दिव्यांग बच्चे भी समावेशी शिक्षा की सहायता से सामान्य रूप से शिक्षा ग्रहण करता है तथा अपने आप को सामान्य बच्चे के समान बनाने का प्रयास करते हैं। भले ही समावेशी शिक्षा में प्रतिभाशाली बालक, विशिष्ट बालक, अपंग बालक और बहुत सारे ऐसे बालक होते हैं जो सामान्य बालक से अलग होते हैं। उन्हें एक साथ इसलिए शिक्षा दी जाती है क्योंकि उन बालकों में अधिगम की क्षमता को बढ़ाया जा सके। समावेशी शिक्षा विशेष विद्यालय या कक्षा को स्वीकार नहीं करता। अशक्त बच्चों को सामान्य बच्चों से अलग करना अब मान्य नहीं है। विकलांग बच्चों को भी सामान्य बच्चों की तरह ही शैक्षिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है।
          समावेशी शिक्षा वर्तमान समय के लिए ज़रूरत बन गयी है, ऐसे में इसके महत्व को निम्न रूप से भी जाना जाता है-
1. समावेशी शिक्षा के द्वारा बालकों में एकता या समानता का विकास होता है।
2. जैसे कि ऊपर बताया गया है कि इसमें सामान्य तथा विशिष्ट दोनों ही बालक एक साथ पढ़ते हैं इसलिए यह शिक्षा कम खर्चीली भी होती है।
3. समावेशी शिक्षा के द्वारा बालकों का मानसिक विकास, उनके अंदर नैतिक विकास, सामाजिक विकास और आत्मसम्मान की भावना का विकास सही रूप से किया जाता है।
4. जहां सभी बालक एक साथ शिक्षा ग्रहण करता हो वहां प्राकृतिक वातावरण का विकास होना निश्चित है।
5. यह शिक्षा समायोजन की समस्याओं को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है।
          समावेशी शिक्षा आधुनिक युग की नवीन खोज है। शिक्षा के क्षेत्र में यह एक नया मार्ग है जिसके आधार पर भारतीय शिक्षा प्रणाली को सुदृण बनाया गया है। समावेशी शिक्षा में मनोविज्ञान के सिद्धांतों का समिश्रण होता है अर्थात इसके अंतर्गत विद्यार्थियों  की मानसिक क्षमता को समझकर उसके अनुरूप उनके विकास की योजना का निर्माण किया जाता है। समावेशी शिक्षा द्वारा लोकतंत्र को मजबूत किया जाना सम्भव सिद्ध हुआ है। इसके द्वारा समानता का अधिकार एवं सांस्कृतिक एवं शिक्षा का अधिकार जैसे अधिकारों की सही प्राप्ति करना एवं लागू करना सम्भव सिद्ध हुआ है।
          अतः भारतीय शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु समावेशी शिक्षा को अपनाना एवं इसके क्षेत्र का विस्तार करना अति आवश्यक है। यह लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने का कार्य करती है। इसके द्वारा संविधान द्वारा दिये गए मौलिक अधिकारों की पूर्ण रूप से प्राप्ति सम्भव है। समावेशी शिक्षा के द्वारा समानता के अधिकार का क्रियान्वयन पूर्ण रूप से होना सम्भव है। चुंकि यह सभी को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराता है इसीलिए इसके द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के उद्देश्यों की प्राप्ति भी की जा सकती है। आधुनिक युग में समाज की परिस्तिथियों एवं शिक्षा में व्याप्त असमानताओं को देखते हुए जरूरी है कि समावेशी शिक्षा का विस्तार किया जाए। इसके लिए समय-समय पर शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था भी कराई जाती है। समावेशी शिक्षा की प्रणाली द्वारा ही हम राष्ट्र को शिक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर कर सकते हैं।


शफ़क़ फातमा
प्राथमिक विद्यालय अहमदपुर
रफीगंज औरंगाबाद

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