कर्म और सुख- श्री विमल कुमार - Teachers of Bihar

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Thursday, 27 October 2022

कर्म और सुख- श्री विमल कुमार

 कर्म का साधारण अर्थ होता है "अपने जीवन में कुछ कार्य करना।" कोई भी मनुष्य किसी भी अवस्था में क्षण मात्र भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता है यानि जो मनुष्य अपने जीवन में जो कुछ भी करता है वह कर्म है।कोई भी व्यक्ति जीवन में कर्म चार प्रकार से करता है-

(1)विचारों के माध्यम से,जैसे किसी के बारे में कुछ सोचना।

(2) शब्दों के माध्यम से,जो हम व्यक्त करते हैं।

(3)क्रियाओं के माध्यम से,जो हम स्वंय करते हैं।

(4)क्रियाओं के माध्यम से जो हम दूसरों के माध्यम से करवाते हैं।

   दूसरी ओर हम सुख की बात करते हैं  जिस कार्य को करने से  अंतरात्मा खुश हो जाती है।अर्थात जिन्दगी में यदि हम बहुत सुन्दर कार्य करते हैं,जिससे कि लोग  खुशी महसूस करते हैं।

मेरा यह आलेख"कर्म और सुख"जो कि जीवन की गहराई को छूने वाला लगता है।मैं एक शिक्षक हूँ और मेरा कर्म बच्चों को उत्कृष्ट तरीके की शिक्षा देना है।सरकार तथा किसी भी संस्था के द्वारा इस कार्य के लिये इस संसार में भेजा गया है।

सौभाग्य की बात है कि मैं अपने कर्म क्षेत्र में अन्य दिनों की तरह बच्चों को कुछ सीखा रहा था तो उसी समय में मेरे मन-मस्तिष्क पर खुशी के साथ-साथ सुख की अनुभूति हुई,जिसे मैं रोक नहीं पाया कि अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में अपने कर्म क्षेत्र पर आगे बढ़ता है तो उसे बहुत खुशी प्राप्त होती है।

कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी कार्य को सुन्दर तरीके से  करता है तो उसे अपने जीवन में गजब सी अनुभूति प्राप्त होती है,जैसे कि मैं एक शिक्षक हूँ,प्रतिदिन विद्यालय जाना तथा अपने विद्यार्थियों को ज्ञान बाँटना मेरा परम धर्म है।मैं जिस दिन विद्यालय जाकर बच्चों को कुछ सीखाने का प्रयास करता हूँ,उस दिन मुझे बहुत आनंद आता है।दूसरी तरफ मैं जिस दिन अपने कार्य के प्रति उदासीनता व्यक्त करने का प्रयास करता हूँ,उस दिन मुझे संतुष्टि नहीं प्राप्त होती है।इसलिये एक शिक्षक होने के नाते मुझे लगता है कि विदयालय जाकर हमलोगों को अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करने का  प्रयास करना चाहिये।क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति जीवन मैं यह सोचता है कि मेरा बेटा पढ़ता, कोई शिक्षक मेरे बेटा को पढ़ाता, वह भविष्य में अच्छा करता, लेकिन यह तभी संभव है,जब कि मैं भी अपने विद्यालय में जाकर बच्चों को ठीक से शिक्षा देने का प्रयास करूँ।साथ ही जिस सुख की प्राप्ति की मैं कामना करता हूँ,यह तभी संभव हो सकता है, जबकि मैं भी अपने विद्यालय में जाकर बच्चों को ढंग की शिक्षा देने का प्रयास करूँ।

सुख का अर्थ है,कष्ट की कमी और यह तभी संभव हो सकता है, जबकि लोगों को जीवन में अपने कार्य से खुशी होगी,संतुष्टि प्राप्त होगी।यह बात सिर्फ शिक्षक के लिये ही मेल नहीं खाती है,बल्कि एक किसान जो कि अपने खेतों में खेती करता है,वह भी यदि समय पर अपनी खेती को अच्छी तरह से नहीं करता है तो वह भी सुखी नहीं रह सकता है,इसलिए किसी भी तरह के पेशा करने वाले को जीवन में सुखी नहीं रह सकता है,इसलिए मेरा एक लेखक होने के नाते अनुरोध है कि 

यदि आप जीवन में सुख का अनुभव करना चाहते हैं तो आपको अपने कर्म को तन्मयता के साथ करना चाहिये तथा आप जितनी ही सच्चे मन से अपने  कर्तव्य करते हैं तो उतनी ही सुख की प्राप्ति हो सकती है।

अंत में आप जीवन में सुख- संपत्ति के साथ खुश रहिये तथा अपने कर्म पथ पर लगातार चलते रहिये की बहुत सारी शुभकामनायें।


आलेख साभार -श्री विमल कुमार

"विनोद"प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय

पंजवारा,बाँका(बिहार)।

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