प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को काम के बाद आराम की जरुरत होती है,क्योंकि बिना आराम के स्मृति"दृढ़" नहीं है सकती है।बच्चे-बच्चियों को भी पढ़ने के साथ-साथ उसके जीवन का सर्वांगीण विकास कराने के लिये विद्यालय में खेलकूद तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम की जरूरत होती है,जिससे कि उसका मनोरंजन हो सके।
"मंच"जहां पर कलाकार आकर अपने अंदर छिपी हुई प्रतिभा को निखारने का प्रयास करते हैं,जहाँ मंच पर आकर उसे अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर प्राप्त होता है, इसलिए विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम का समय निर्धारित किया गया है तथा संगीत की पढ़ाई होती है तथा बच्चे-बच्ची को उनके अंदर छिपी हुई प्रतिभा को निखारने का अवसर प्राप्त होता है।
मुझे जीवन में बहुत लंबे समय से रंगमंचीय कार्यक्रम में भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ है तथा अपने विद्यालय में भी विद्यार्थी के अंदर छिपी हुई कला का विकास कराने का प्रयास करता हूँ। जबआप उनके अंदर छिपी हुई कला को उभारने का प्रयास करेंगे तब पता चलेगा कि हम लोग अपने विद्यालय के कमरे में बैठकर जिन बच्चे-बच्ची के कार्यक्रम को देख रहे हैं वह किसी बड़े शहर के किसी थियेटर से कम नहीं है,सिर्फ उसे एक सही मार्गदर्शन की जरूरत है।
मंच जो कि लोगों के मन मस्तिष्क के अंदर बसी हुई संकोच,भय को दूर कर एक अच्छा रंगमंच का कलाकार बनाने का प्रयास करता है।मंच में आने के बाद लोगों में अपने अंदर छिपी हुई व्यक्तित्व का विकास होता है।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद" प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य
संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,
बांका(बिहार)।
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