🚩वेश्या की देशभक्ति 🚩
हर व्यक्ति में विशेष गुण अवश्य होते हैं। किसी व्यक्ति को अपने आप को निर्बल नहीं समझना चाहिए।अगर देश सेवा का जुनून हो तो वे विपरीत परिस्थितियों में भी देश सेवा कर सकते हैं।इसके लिए किसी पद की जरूरत नहीं।आप जहां है अपने स्तर से भी देशहित में कार्य कर देश सेवा करें।आज हम आजादी की एक नायिका जो नृत्यांगना , वेश्या होकर देश सेवा की । उसकी कहानी साझा कर रहे हैं।
यों तो नृत्यांगना के पेशे को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता; पर अजीजन बाई ने सिद्ध कर दिया कि यदि दिल में आग हो, तो किसी भी माध्यम से देश-सेवा की जा सकती है।
अजीजन का जन्म 22 जनवरी, 1824 को मध्य_प्रदेश के मालवा क्षेत्र में राजगढ़ नगर में हुआ था। उसके पिता शमशेर सिंह बड़े जागीरदार थे। उसका नाम अंजुला रखा गया। एक बार सखियों के साथ हरादेवी मेले में घूमते समय अंग्रेज सिपाहियों ने उसका अपहरण कर लिया। इस दुख में शमशेर सिंह का प्राणान्त हो गया। अंग्रेजों ने उनकी जागीर भी कब्जे में कर ली। कुछ समय तक सिपाही उसके यौवन से खेलते रहे, फिर उसे कानपुर_के_लाठी_मुहाल चकले में 500 रु0 में बेच दिया।
चकले की मालकिन ने उसका नाम अजीजन बाई रखा। इस प्रकार एक हिन्दू युवती मुसलमान बनाकर कोठे पर बैठा दी गयी। मजबूर अजीजन ने समय के साथ समझौता कर पूरे मनोयोग से गीत-संगीत सीखा। इससे उसकी प्रसिद्धि चहुँ ओर फैल गयी।
उन दिनों सब ओर 1857_की_क्रान्ति की तैयारी हो रही थी। 10 मई, 1857 को मेरठ की घटना का समाचार पाकर अजीजन ने 400 वेश्याओं की ‘मस्तानी_टोली’ बनाकर उसे अस्त्र-शस्त्र चलाना सिखाकर युद्ध में घायल क्रान्तिकारियों की सेवा में लगा दिया। यह जानकारी नानासाहब, तात्या टोपे आदि तक पहुँची, तो उनके सिर श्रद्धा से नत हो गये।
कहते हैं कि अजीजन बाई तात्या टोपे के प्रति आकर्षित थी; पर जब उसने तात्या का देशप्रेम देखा, तो उसके जीवन की दिशा बदल गयी और वह भी युद्ध के मैदान में उतर गयी। दिन में वह शस्त्र चलाना सीखती और रात में अंग्रेज छावनियों में जाकर उनका दिल बहलाती; पर इसी दौरान वह कई ऐसे रहस्य भी ले आती थी, जो क्रान्तिकारियों के लिए सहायक होते थे।
अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचारों को देखकर उसका खून खौल उठता था। 15 जुलाई को कानपुर के बीबीघर में अंग्रेज स्त्री एवं बच्चों को मारकर एक कुएँ में भर दिया गया। अजीजन ने भी इसमें प्रमुख भूमिका निभायी।
एक बार महाराजपुर के युद्ध में वह तात्या टोपे के साथ थी और उसने उनकी जान भी बचाई। जब 1857 के युद्ध में पराजित होकर सब प्रमुख सेनानी भूमिगत हो गये, तो अजीजन भी जंगल में जा छिपी।
भूमिगत अवस्था में एक बार अजीजन पुरुष वेश में कुएँ के पास छिपी थी, तभी छह अंग्रेज सैनिक उधर आये। अजीजन ने अपनी पिस्तौल से चार को धराशाई कर दिया। शेष दो छिपकर अजीजन के पीछे आ गये और उसे पकड़ लिया। इस संघर्ष में अजीजन के हाथ से पिस्तौल गिर गयी और उसके बाल खुल गये। एक सैनिक ने उसे पहचान लिया। वह उसे मारना चाहता था; पर दूसरे ने उसे कमांडर के सामने प्रस्तुत करने का निर्णय लिया।
जाने से पहले जब वे कुएँ से पानी पी रहे थे, तो अजीजन ने गिरने का अभिनय किया। वह उधर गिरी, जिधर उसकी पिस्तौल पड़ी थी। पिस्तौल उठाकर शेष दो गोलियों से उसने उन दोनों का भी काम तमाम कर दिया। तब तक गोली की आवाज सुनकर कुछ और सैनिक आ गये और उन्होंने अजीजन को पकड़ लिया। उसे कर्नल हैवलाक के सामने प्रस्तुत किया गया, जिसने तोप के मुँह पर बाँधकर उस क्रान्तिकारी_नृत्यांगना को मौत के घाट उतार दिया।इस तरह एक देशभक्त का अंत हुआ। कहने को तो चरखे से आजादी आईं। परंतु असलियत है कि आजादी की लड़ाई में आप के पूर्वजों का भी योगदान होगा।पर वह प्रकाश में नहीं आईं।देश के लिए मर मिटने वालों की कमी नहीं है। आजादी के अमृत महोत्सव पर संकल्प लें कि हम सभी अपने स्तर से देश सेवा करेंगे।
जय हिन्द। वन्देमातरम।
रणजीत कुशवाहा ( लेखक व कवि)
प्राथमिक कन्या विद्यालय लक्ष्मीपुर रोसड़ा समस्तीपुर
(बिहार)
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