डॉ अंबेडकर और स्त्री सशक्तिकरण- सुरेश कुमार गौरव - Teachers of Bihar

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Saturday 13 April 2024

डॉ अंबेडकर और स्त्री सशक्तिकरण- सुरेश कुमार गौरव

 जयंती/जन्मदिन पर विशेष: डॉ अंबेडकर और स्त्री सशक्तिकरण .और आज तक कितने सुधार हुए ?


भारत मे एक आदर्शवादी कामना के रूप में स्त्री का महिमामंडन तो बहुत देखने को मिलते हैं पर वास्तविकता कुछ  उलट है.आज स्त्रियों की जो भी सकारात्मक स्थितियां हमे दिखती हैं, उसमें डॉ भीमराव अंबेडकर का बड़ा योगदान है। विकसित समाज के लिए स्त्रियों को शिक्षित किये जाने को वे अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते थे थे और वे शिक्षाप्रेमी ज्योतिबा फुले सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख जैसै व्यक्तित्वों की  महिलाओं के प्रति शैक्षिक संदेशों को आगे बढ़ाने की भी सोच रखते थे। उन्होंने कोलम्बिया विवि में अपनी पढ़ाई के दौरान अपने पिता के एक मित्र को पत्र में लिखा था, “हम एक बेहतर कल की कल्पना स्त्रियों को शिक्षित किये बिना नहीं कर सकते। ऐसा पुरुषों के समान स्त्रियों को शिक्षित कर के ही संभव है”। उन्होंने आज़ादी से पूर्व ही इस दिशा में काम करने शुरू कर दिए थे. 

इन्हें इस तरह देखा व समझा जा सकता है-


■  अम्बेडकर ने 1927 में महिलाओं की एक सभा को सम्बोधित करते हुए कहा था “वे अधिक संताने पैदा न करें और अपने बच्चों के गुणात्मक जीवन के लिए प्रयास करे। सभी स्त्रियों को अपने पुत्रों के साथ साथ पुत्रियों को भी साक्षर बनाने के लिए  समान प्रयत्न करने होंगे”.यह स्त्री जागरूकता की ऐसी पहली सभा थी। 

■ डॉ अम्बेडकर ने 1928 में अपनी पत्नी रमा बाई के नेतृत्व में महिला संगठन ‘मंडल परिषद’ की स्थापना की और उन्हें सामाजिक भागीदारी के लिए प्रेरित किया। उनसे प्रेरित होकर एक महिला तुलसी बाई बंसोड़ ने 1931 में 'चोकमेला' नामक एक समाचार पत्र शुरू किया। 

■  20 मार्च 1927 के ऐतिहासिक महाड़ सत्याग्रह में 300  से अधिक स्त्रियों ने भी हिस्सा लिया था। इसमे महिलाओं की एक बड़ी सभा को सम्बोधित करते हुए अम्बेडकर ने यह ऐतिहासिक बात कही थी, “मैं समुदाय अथवा समाज की उन्नति का मूल्यांकन स्त्रियों की उन्नति के आधार पर करता हूँ। स्त्री को पुरुष का दास नहीं बल्कि उसका साझा सहयोगी होना चाहिए। उसे घरेलू कार्यों की ही तरह सामाजिक कार्यों में भी पुरुष के साथ संलग्न रहना चाहिए”।

■  2 मार्च 1930 के नासिक स्थित कालाराम मंदिर में प्रवेश को लेकर डॉ अम्बेडकर ने ऐतिहासिक सत्याग्रह किया था। इस सत्याग्रह में 500 से भी अधिक दलित स्त्रियां भी शामिल हुईं और जेल गई थीं। इस आंदोलन से दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार मिला था।

■  1942  में अम्बेडकर ने 'शैड्यूल कास्ट फैडरेशन' की नींव रखी जिसके प्रथम सम्मेलन में 5000 से अधिक सदस्य प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। जिनमें पुरुषों सहित महिलाओं के अधिकारों को लेकर गंभीर चर्चाएं की गई थीं और प्रस्ताव भी पारित किए गए थे।

हालांकि नारी विमर्श के दौर चले लेकिन आज भी नारियों की  स्थितियों में ज्यादा सुधार नहीं हो पाए हैं।

जयंती पर इन्हें शत्-शत् नमन हैं और साथ ही साथ इनके  विचारों पर चलने की भी जरूरत है।



सुरेश कुमार गौरव, शिक्षक पटना (बिहार)

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