बाल्यावस्था और किशोरावस्था - गिरीन्द्र मोहन झा, - Teachers of Bihar

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Sunday 25 August 2024

बाल्यावस्था और किशोरावस्था - गिरीन्द्र मोहन झा,



जीवन को कुछ अवस्थाओं में बाँटा गया है- गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था। सभी अवस्थाओं के अपने कुछ विशेष गुण और लक्षण होते हैं। अधिगम (learning) की प्रक्रिया गर्भावस्था से जीवन पर्यंत चलती रहती है। आज हम बात करेंगे बाल्यावस्था और किशोरावस्था पर।

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ज्ञानीजन बचपन, जवानी और बुढ़ापे रूपी अवस्थाओं में आसक्तचित्त नहीं होते हैं, वे आवागमन में भी आसक्त नहीं होते। (शास्त्रों में 25 वर्ष की अवस्था तक विद्या प्राप्ति काल में ब्रह्मचर्य पालन, गुरुजनों के आज्ञा-पालन और पात्रता पर जोर दिया गया है।)


इन दोनों अवस्थाओं (बाल्यावस्था और किशोरावस्था) पर आचार्य चाणक्य का एक कथन है: 

लालयेत् पंचवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्।

प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।

(पाँच वर्ष में बच्चों को माता-पिता द्वारा प्यार-दुलार, दस वर्ष आने पर शासन-अनुशासन, गलती होने पर डाँट आदि की आवश्यकता होती है। किन्तु सोलह वर्ष की अवस्था आने पर संतान माता-पिता के लिए मित्र समान हो जाती है ।)

पहले हम बात करते हैं बाल्यावस्था की। बाल्यावस्था में बच्चे मौज-मस्ती, खेल-कूद, जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना, ऊँचे- ऊँचे सपने देखना, बरसात में भींगना, मिट्टी आदि से खेलना, वर्तमान में जीना ये गुण होता है। एक व्यक्ति का कथन है, 'जब तक बच्चा मिट्टी से नहीं खेलेगा, उसका पूर्ण विकास नहीं हो सकता।'

शायर निदा फाजली का एक शेर है- बच्चों के छोटे हाथों को चांँद सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे।

शायर बशीर बद्र की एक पंक्ति है- उड़ने दो परिंदों को अभी शोख हवा में, फिर लौटकर बचपन के जमाने नहीं आते।

अभिभावक का कुछ कर्त्तव्य है। विदुरनीति का कथन है, 'अत्यधिक दुलार से पुत्र का विनाश हो जाता है।' अच्छा करने पर प्रोत्साहन, बुरा करने पर शासन, घर के छोटे-छोटे कार्यों को करवाना, स्वावलम्बी बनने पर जोर देना, ससमय विद्याभ्यास पर जोर देना, देश की घटना आदि के विषय में सामान्य जानकारी, आस-पास के विषय में बतलाना, सामान्य ज्ञान, गलत हठ को कभी पूर्ण न करना । साथ ही, सोते समय महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग सुनाना आदि। गलती करने पर, गलत हठ पर थोड़ी बहुत डाँटना भी।

अब हम किशोरावस्था की बात करें।लगभग 16 से 22 वर्ष तक यह अवस्था होती है। इस अवस्था को सामान्य भाषा में सुधरने और बिगड़ने का उम्र माना जाता है। जिस अवस्था को सुधार-बिगाड़ की अवस्था मानते हैं, उस अवस्था में हमारे कई महापुरुष कई तरह के कार्य करके चले भी गये। खुदीराम बोस (18 वर्ष में प्रयाण), भगत सिंह (23 वर्ष की अवस्था में बहुत कुछ करके और देकर जग से प्रयाण भी कर गये।), चन्द्रशेखर आजाद (24 वर्ष की अवस्था में बहुत बड़े आदर्श प्रस्तुत करके चले भी गये।) यह तो संस्कारों का परिणाम है, जो कि कुछ सद्विचारों, सत्कर्मों, वंशानुगत गुणों, माता-पिता, परिजनों, पुरजनों, गुरुजनों की दी हुई शिक्षा और संस्कार का परिणाम होता है। एक कहावत है- बाढ़े पूत पिता के धर्मे, खेती उपजे अपने कर्मे। दोनों पंक्ति एक साथ है। आप में माता-पिता, पूर्वजों के धर्माचरण से सद्बुद्धि, संस्कार आ भी सकता है, किन्तु दूसरी पंक्ति के अनुसार, फलाफल की प्राप्ति के लिए, कुछ अमिट छाप छोड़ने के लिए आपको कर्म करना ही पड़ेगा। जैसा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है- सकल पदारथ एही जग माही।करमहीन नर पावत नाहीं।।

अब हम सामान्य जन-जीवन की बात करें, तो आचार्य चाणक्य ने संतान को 16 वर्ष की अवस्था में मित्रवत् मानने का परामर्श दिया है। चूँकि कई तरह के शारीरिक परिवर्तन का समय होता है । वृद्धि और विकास का यह समय होता है। चरित्र-निर्माण, कैरियर निर्माण का समय होता है, तो इस परिस्थिति में वह अपने मित्रवत् हुए अभिभावक से सबकुछ (सारी बातों को, सारी समस्याओं को) साझा कर सकता है । 

किशोरावस्था चरित्र-निर्माण, स्वावलंबन, skill-development, कैरियर निर्माण के नींव का समय होता है। सामान्यत: कक्षा 8 वीं से 12वीं तक। इसके कुछ गुण और कुछ दोष होते हैं। किशोरावस्था के कुछ कर्त्तव्य:

1. ऊँचे- ऊँचे सपने देखना, हमें ऊँचे ऊँचे सपने देखने होगें, किन्तु यथार्थ की भूमि पर जुड़कर । आज की पढ़ाई को आज ही पूरा करने का प्रयास करें। आज की पढ़ाई को कल पर टालने का प्रयास न करें। जिज्ञासु प्रवृत्ति रखें।

2. यह समय सभी सद्गुणों की नींव डालने का समय होता है। अपने आप में स्वावलम्बन, अनुशासन, चरित्र-निर्माण, देशभक्ति, दूसरों की भलाई, माता, पिता, गुरुजनों के आज्ञा पालन, कर्त्तव्यपरायणता, सहयोग की भावना आदि नैतिक मूल्यों का विकास करें। ईमानदारीपूर्वक पढ़ाई और साथ ही, पुनराभ्यास अवश्य करें। ईश्वर में आस्था रखें। घर-परिवार के छोटे-मोटे कार्यों, दायित्वों को उठाने का प्रयास करें। कुछ- कुछ सामाजिक कार्यों में भी हिस्सा ले लें, बहुत अधिक नहीं, क्योंकि यह समय अनमोल होता है। अपनी पढ़ाई और कैरियर विशेष महत्त्वपूर्ण है।

3. पढ़ाई के लिए रात्रि में प्रतिदिन 2-4 घण्टे बैठने का प्रयास करें।


4. अधिक भविष्य की योजना न बनाएँ। वर्तमान को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दें। समय और धन का सदुपयोग करें।

5. सभी विषयों की तैयारी करें।scoring सब्जेक्ट पर विशेष ध्यान दें। किसी दिन college नहीं जाने पर मेरे पिताजी मुझसे कहा करते थे, 'दुर्योधन का पूरा शरीर वज्र का हो गया था, एक ही अंग दुर्बल रह गया था। वही अंग उसकी मृत्यु का कारण बन गया था। यदि एक ही विषय या एक ही पेपर कमजोर रह गया, तो वही तुम्हें लेकर डूब जाएगा।'

6. अपने कोर्स पर विशेष ध्यान दें।इधर-उधर की घटनाओं पर थोड़ा बहुत। अपना कोर्स ही आपके लिए अमृत है। कभी-कभी अभी का पढ़ा हुआ बड़ी-बड़ी प्रतियोगिताओं में भी काम आ जाता है ।

7. कुछ अन्तर्मुखी, कुछ बहिर्मुखी बनें। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ आत्मचिंतन कि आप किस दिशा में जा रहे हैं, क्या करते जा रहे हैं, क्या होते, क्या बनते जा रहे हैं आदि। कुछ बहिर्मुखी। लोगों के बीच बैठकर बातचीत करना। कुछ ही दोस्त बनाएँ, बहुत अधिक नहीं।

8. मोबाइल, कम्प्यूटर आदि आधुनिक तकनीकों का सदुपयोग करें। कभी- कभी संगीत आदि भी सुनना चाहिए।

9. कभी-कभी पार्टी में भी भाग ले सकते हैं। बहुत अधिक नहीं। अपने समय और कार्य को देखते हुए।

10. अपने शिक्षकों से सार्थक प्रश्न करें, पुस्तकों से, शिक्षकों से सीखने का निरन्तर प्रयत्न करें।जिज्ञासु प्रवृत्ति का बनें।

11. अगर आप में खेल के प्रति रुचि है, खेल को career बनाना चाहते हैं, तब तो खेलें खूब मन से। किन्तु, यदि नहीं, तो अभी खेलने के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए, टीम भावना, सहयोग भावना, प्रतिस्पर्द्धी भावना, नेतृत्व क्षमता के विकास के लिए प्रतिदिन थोड़ा बहुत ही खेलें।

12. जिन-जिन विधाओं से प्रेम है, जैसे संगीत, कला, लेखन आदि। उस पर थोड़ा ही ध्यान दें। विशेष ध्यान अपने कोर्स की पढ़ाई पर। ध्यान रखें, क्षमता कितनी भी हो, सफलता आपको उम्दा प्रदर्शन से ही मिलती है ।

13. निरन्तर अपने आप में छोटा -छोटा सुधार करते रहें ।

14. अपने भीतर सभी तरह के हुनर और कौशल के विकास पर भी ध्यान दें।

15. माता-पिता, गुरूजनों के डाँट से भी सीखने का प्रयत्न करें। उनकी डांँट में भी जीवन संदेश छिपा होता है ।

16. इस अवस्था में संगति और आदतों का विशेष प्रभाव पड़ता है। बुरी संगति और दुर्व्यसनों से हमेशा दूर रहें। अच्छी आदतों और अच्छी संगति उत्तम है।

17. अच्छी शिक्षा जहाँ से भी मिले, अवश्य ग्रहण करें, बुरी को छोड़ दें।

18. शिक्षकों से भी अच्छाई और ज्ञान को ग्रहण कर लें, बुराई को छोड़ दें। निंदा शिकायत, दूसरों पर दोषारोपण आदि से दूर रहें।

19. अपनी सफलता और उपलब्धियों का श्रेय अपनी मेहनत के साथ ईश्वर की कृपा, गुरुजनों के आशीर्वाद, टीम को भी दें, किन्तु विफलता का दोष केवल स्वयं पर लेकर स्वयं में निरंतर सुधार पर बल दें। सफलता को दिमाग पर असफलता को दिल में न उतरने दें। स्थितप्रज्ञ होकर कार्य करें।

20. इस अवस्था में मन चंचल अधिक होता है। मन को हमेशा अपने कोर्स पर, प्रतिदिन के कुछ अर्थपूर्ण लक्ष्यों पर, प्रतिदिन के कुछ शुभ संकल्पों को पूर्ण करने पर, वर्तमान पर विशेष केंद्रित करें। प्रतिदिन डायरी लिखने की आदत डालें।

21. स्वयं में निरंतर क्षमता, उपयोगिता और योग्यता का विकास करें, किन्तु उसका इस्तेमाल विवेकपूर्ण ढंग से करें।

22. इसमें विपरीत लिंगों के प्रति आकर्षण अधिक होता है। थोड़ा बहुत आकर्षण स्वाभाविक है, किन्तु एक-दूसरे के पीछे भागें नहीं। क्योंकि यह अवस्था का लक्षण है, यह क्षणभंगुर है, यह अस्थायी है, किन्तु इनके पीछे जाने से पूर्व थोड़ा बहुत जीवन और कैरियर के विषय में अवश्य चिंतन करें, क्योंकि वह स्थायी होता है।

23. Sexual organs के पीछे स्वभावत: आसक्ति बढ़ सकती है, किन्तु इनके पीछे न जाएँ । कभी भी काम-वासना मन में आएँ, तो कुछ देर टहलने निकल जाएँ, लोगों से बातचीत करें, अपने आप को रचनात्मक कार्यों में व्यस्त करें, किन्तु इसके पीछे न जाएँ।

24. रात्रि में सोते समय जब आपको नींद नहीं आ रही है तो हो सकता है कि कामुक विचार आपके मन में आएँ, विपरीत लिंगों के प्रति आकर्षण की बात मन में आ जाएँ। आप उसे इस विचार द्वारा शान्त कर सकते हैं- आत्मा में स्त्री और पुरुष का कोई भेद नहीं और दूसरा विज्ञान कहता है, प्रजनन अंगों के अतिरिक्त स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं। फिर आपका कामुक विचार वहीं शान्त हो सकता है। किन्तु इसके पीछे अपने मन को भागने न दें। उसे अपने जीवन-कैरियर और आज की पढ़ाई और कल की पढ़ाई पर केंद्रित करें कि कल क्या क्या करना है। हो सके ईश्वर का स्तवन, स्तुति, नाम- जप स्मरण करते हुए सोएंँ।

25. गाँव में एक कहावत है- बीसे विद्या, तीसे धन। चालीस के बाद ठन ठना ठन।। अर्थात् बीस वर्ष तक विद्या ग्रहण कर, तीस वर्ष तक क्षमता और योग्यतानुसार अच्छे से अच्छा पोस्ट पकड़ लें। फिर चालीस वर्ष के बाद career के लिए विशेष कुछ नहीं कर पाते हैं लोग।

26. निरंतर अपने आप में, अपनी आदतों में छोटा-छोटा सुधार करें। छोटे-छोटे सुधार अक्सर बेहतर परिणाम की ओर ले जाते हैं।

27. इस अवस्था में कुछ भी कर जाने का जज्बा होता है, किन्तु अपने उत्साह पर विवेक की लगाम लगाये रखें। वर्तमान के कोर्स पर विशेष ध्यान केंद्रित करें।

28. कभी-कभी महापुरुषों के व्यक्तित्व, कृतित्व और उपदेशों को भी पढ़ें। प्रेरक प्रसंगों को भी पढ़ें।

29. विभिन्न तरह की सांस्कृतिक, प्रतियोगी कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए। जीत या हार मायने नहीं रखता है। अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ती है। वाचन-कौशल, लेखन-कौशल का विकास होता है।

30. कभी-कभी पर्यावरण दिवस, पृथ्वी दिवस, जन्म दिवस आदि पर पेड़ लगाकर, उसकी रक्षा कर प्रकृति माता की सेवा करें।


निष्कर्ष यह है कि सामान्य जनजीवन में किशोरावस्था (कक्षा 8वीं से 12वीं तक) चरित्र-निर्माण, जीवन-निर्माण, कैरियर निर्माण के नींव की अवस्था होती है। संगति का विशेष प्रभाव पड़ता है। इसलिए दोस्त अच्छे, किन्तु कम होने चाहिए। देश-विदेश की घटनाओं पर अधिक नहीं, किन्तु अपने कोर्स पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जिन-जिन विधाओं से प्यार है, उसमें भी समय निकालकर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

कथन: विद्यार्थियों का genius होना न होना अपने वश की बात नहीं, पढ़ाई के प्रति conscious(सतर्क) होना अपने वश की बात है। यदि आप पढ़ाई के प्रति conscious हो जाएँगे तो genius हो ही जाएँगे और सफल होंगे। 


गिरीन्द्र मोहन झा, 

+2 भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर- पड़री, सहरसा

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