हम शिक्षक दिवस काफी धूम - धाम से मनाते है। संसार के सभी गुरुजनों को सम्मानित करने का दिन होता है। 5 सितंबर को सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जयंती के रूप में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। अब बात मुद्दे की करते हैं। दरअसल हम जिंदगी भर विद्यार्थी होते हैं और जिंदगी में अपने अनुभवों से सीखना ही हमारी वास्तविक शिक्षा है। वास्तविक शिक्षा का मतलब यह नहीं कि हम जिंदगी भर सफल ही हों बल्कि हमारी वास्तविक सफलता अपनी असफलता को एक प्रेरणा के रूप में लेना है। हमारी वास्तविक शिक्षा का मतलब हमारी रुचियों के परिष्कार से है। आज हम जिस समाज में जी रहे हैं वहां पर बचपन से ही बच्चों के कंधों पर उनके अविभावक अपनी रुचियों के बस्ते का बोझ लाद देते हैं। एक छात्र क्या बनना चाहता है , उसकी क्या रुचियां हैं , इन बातों को उनके अभिभावक तथा शिक्षक जानने का प्रयास तक नहीं करते हैं और हम देखते है कि अपने बच्चें को सिर्फ डॉक्टर या इंजीनियर बना देने की चाह उन्हे भविष्य में तोड़ कर रख देती है और कई बार वे निराशा के गर्त में जाकर अवांछित कदम तक उठा लेते हैं। कुछ वर्षों पहले आई फिल्म ' थ्री इडियट ' इस द्वंद को रुपहले पर्दे पर बड़े ही मनोवैज्ञानिक और संवेदनशील ढंग से पेश करती है फिल्म का मुख्य पात्र किस तरह से अपने मित्रों को प्रेरित करता है , जो कि इंजीनियरिंग की परीक्षाओं में तो फिसड्डी साबित होते हैं परंतु उनमें ऐसा गुण हैं जिनके आधार पर वे भविष्य में बहुत ही बेहतर कार्य कर सकते है।
आजकल सरकार की शिक्षा नीति में भी एक कमज़ोर पक्ष दृष्टिगत होता है कि वे लोगों को शिक्षित न बनाकर साक्षर बनाने पर ही अधिक ज़ोर दे रही है और कुल मिलाकर हमारी उच्च - शिक्षा प्रणाली का भी हाल यही है कि हम पढ़े - लिखे मज़दूर तैयार कर रहे हैं। हम एक ऐसी शिक्षा पद्धति में प्रवेश कर गए हैं जहां मानवीय मूल्यों के दांव पर इंसान को मशीन बनाए जाने जा क्रम अनवरत रूप से जारी है। हमारे विज्ञान और तकनीकी ने हमें चांद पर भले ही पहुंचा दिया हो मगर हमारे अंदर के संवेदनशील इंसान को मार डाला है इसमें कोई दो राय नहीं है।
मैथिली शरण गुप्त ने भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए जो कुछ भी कहा वह आज भी प्रासंगिक है -
" हा ! आज शिक्षा मार्ग भी संकीर्ण होकर क्लिष्ट है।
कुलपति - सहित उन गुरुकुलों का ध्यान ही अवशिष्ट है।
बिकने लगी विद्या यहां अब , शक्ति हो तो क्रय करो।
यदि शुल्क आदि न दे सको तो मूर्ख रहकर ही मरो।
निष्कर्ष यह निकलता है कि वास्तविक शिक्षा का जो भी मतलब हो पर यह जनकल्याणकारी और व्यवहारिक होना ही चहिए क्योंकि इसी से हमारे समाज और देश का भला हो सकता है।
प्रेषक - आशीष अम्बर
शिक्षक
जिला - दरभंगा
बिहार
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