कक्षा में बच्चे नहीं, देश का भविष्य पलता है- ज्योति रीता - Teachers of Bihar

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Thursday 5 September 2024

कक्षा में बच्चे नहीं, देश का भविष्य पलता है- ज्योति रीता


शिक्षक दिवस सुनकर अच्छा लगता है कि यह दिन शिक्षकों का है छात्र द्वारा उन्हें सम्मान देने का दिन। विश्व के कई देशों में शिक्षकों को विशेष सम्मान देने के लिए शिक्षक दिवस का आयोजन किया जाता है। कुछ देशों में छुट्टी रहती है और कुछ देश इस दिन कार्य करते हुए मनाते हैं। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन 5 सितंबर भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने अपने छात्रों से जन्मदिन को शिक्षक दिवस में के रूप में मनाने की इच्छा जताई थी। दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में अलग-अलग तारीख़ पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है।


 देश के पहले उपराष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूमानी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही किताबें पढ़ने के शौकीन थे और स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित थे। 


राधा कृष्ण का मानना था कि बिना शिक्षा के इंसान कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है। इसलिए इंसान के जीवन में एक शिक्षक होना बहुत ज़रूरी है। यदि शिक्षक ठीक है तो वह अपने शिष्य को कभी फेल नहीं होने देगा। वह उसकी हमेशा जीवन की प्रगति के पथ पर ले जाएगा। 


शिक्षक हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इसलिए शिक्षक को भगवान से ऊपर का दर्ज़ा दिया गया है। शिक्षक हमें ज्ञान देने के साथ ही जीवन को भी जीने की कला सिखाते हैं। वह जीवन में होने वाली चुनौतियों से लड़ना सिखाते हैं और भविष्य के बेहतर निर्माण के लिए प्रेरणा देते हैं।


आज के संदर्भ में शिक्षक दिवस उत्सव की तरह तो मनाया जाता है। बच्चे उत्साहित रहते हैं, शिक्षक और भी ज्यादा उत्साहित रहते हैं। महंगे महंगे उपहार देने की परंपरा भी चल निकली है । महंगे महंगे केक भी बनाएं जाने लगे हैं बाजारों में। शिक्षक बच्चे सब मिलकर फिल्मी गानों की धुनों पर डांस करते हैं। यहां तक सब कुछ ठीक है।


परंतु शिक्षक, शिक्षा, शिष्य सही दिशा में जा रहे हैं, यह सोचने का काम कौन करेगा? शिक्षक सही से ही पढ़ा रहे हैं या नहीं, शिक्षा सही से दी जा रही है या नहीं , छात्र सही दिशा में जा रहे हैं या नहीं। यह सोचने और अपना वक्त ज़ाया करने का काम कौन करेगा? साधारण तौर पर कह सकते हैं कि यह सोचने का काम सरकार का है बात सही है सरकार जरूर सोचेगी और सोच भी रही है। लेकिन सरकार आपके विद्यालय में घुसकर आपके घरों में आपके निजी संस्थानों में जाकर सोचने का काम नहीं कर सकती है। यह आपको स्वयं सुनिश्चित करना होगा कि आपके बच्चे क्या कर रहे हैं? कहां जा रहे हैं? किस तरह से पढ़ाई कर रहे हैं और सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा है या नहीं?


आज गुरु शिष्य परंपरा खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। गुरु शिष्य परंपरा लगभग समाप्ति के पायदान पर है। हमारे अंदर संस्कारों की कमी होती जा रही है । हम भूलते जा रहे हैं कि जीवन में किनका क्या योगदान है और उस योगदान के अनुसार हम अपने संस्कारों का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। हम आधुनिक समय में जी रहे हैं। पुरानी पटरी पर चल पाना अब संभव भी नहीं है। लेकिन हम इतने भी आधुनिक ना हो जाएं कि इसका ख़ामियाजा हम स्वयं भुगतने को तैयार रहें।


एक शिक्षक होने के कारण से पूरे दिन स्कूल में बिताने के बाद मुझे यही अनुभूति हो रही है कि सरकार अपने स्तर पर शिक्षा को सुधारने के कई प्रयास कर रही है। लेकिन बच्चे सरकारी विद्यालयों को महत्व न देकर अलग-अलग बाहरी शिक्षकों से उनके निजी संस्थान से पढ़ते हैं। वहां वह ज़्यादा समय व्यतीत करते हैं और समय से स्कूल भी नहीं आते हैं। पूछने पर पता चलता है की कोचिंग में देर हो जाती है। वह अपने शिक्षकों पर भी भरोसा नहीं करते। विद्यालय उनके लिए बस उपस्थिति दर्ज़ हो जाए इतने भर से ही खुश रहते हैं। जबकि आपके विद्यालयों में हर विषय के अच्छे जानकार शिक्षक उपलब्ध होने के बावजूद बच्चों के द्वारा उन्हें तरजीह ना देना, कक्षा में बैठकर उनकी उपेक्षा करना, पढ़ाते समय अलग-अलग तरीकों से उन्हें परेशान करने की मंशा लगातार बनी रहती है। यह मैं मानने में गुरेज नहीं करती कि कुछ हम शिक्षकों में भी कमी होने के कारण इस तरह की व्यवस्था फैल गई है। हम शिक्षकों को भी अपने स्वयं के स्तर पर सुधार करने की ज़रूरत है। आप जिस चीज़ के लिए वहां लाए गए हैं। उन्हें आप कारगर तरीक़े से करेंगे तो धीरे-धीरे स्थिति ज़रूर सुधरेगी। अभी भी जो शिक्षक सही तरीक़े से बच्चों के बीच जा रहे हैं और उनसे शिक्षक और अभिभावक के तरह उनके साथ घुलने मिलने की कोशिश करते हैं। उनसे बच्चे प्रेम जरूर करते हैं और उनकी कक्षा में अनुशासन भी होती है और बच्चे आपको अपना आदर्श भी मानते हैं।

यही बच्चे कल समाज और देश का भविष्य बनेंगे और आगे की वस्तु स्थिति कैसी होगी, इन्हीं बच्चों के द्वारा निर्धारित होगी तो शिक्षक का दायित्व यहां बहुत बड़ा होता है कि आप किस तरह से अपने देश के इस छोटे-छोटे , नन्हे-मुन्ने भविष्य को ढाल रहे हैं। 

जाति / धर्म के नाम पर आज बच्चों में बहुत ही गुस्सा देखने को मिल रहा है। गलतफहमी और ग़लत तरीक़े के अफ़वाह के वज़ह से उनके अंदर बारूद तैयार होता जा रहा है। वह समय-समय पर अलग-अलग तरीक़े से अपना गुस्सा निकलते हैं । इनसे भी उन्हें बचाने की ज़रूरत है। यह काम कक्षा से ज़्यादा बेहतर तरीक़े से कहीं और नहीं किया जा सकता है।


हम शिक्षकों को अपने विषयों का ज्ञान तो बच्चों में देना ही है वह हमारी पहली प्राथमिकता है। यहां तक हमारी ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं हो जाती है। हमें उन्हें नैतिकता के स्तर पर भी कसना होगा। अलग-अलग सामाजिक ताने-बाने के स्तर पर भी उन्हें कसना होगा और उनके मन के द्वेष को यहां निकलना होगा। ताकि कक्षा में कोई गुटबाजी , जातिवादी चीज़ ना हो कि यहां इन्हें नहीं रोका गया तो कक्षा के बाहर भी इन्हें रोक पाना मुश्किल होगा। 


यहाॅं मैं ज़्यादा बच्चों के माता-पिता और उनके अभिभावक से मुखातिब होना चाहूंगी। उनसे पूछना चाहूंगी कि- 


१. आप बच्चों को कितना वक्त देते हैं ?

२. आप अपने बढ़ते बच्चों से कितनी बातचीत करते हैं? 

३. आप अपने समय का कितना हिस्सा उन पर खर्च करते हैं?

४. आप अपने बच्चों के साथ कोई गेम खेलने में कितने आनंदित होते हैं?

५. बच्चों के बदलते व्यवहार पर आपने कब चिंतन किया? 

६. आप बच्चों को उनके अलग-अलग विषयों पर कोई बातचीत करते हैं?

५. या अपने तय कर लिया है कि आप बच्चों को उनकी जरूरत की सारी चीजें देकर चिंता से मुक्त हो गए हैं?

५. क्या आपकी जिम्मेदारी यहां समाप्त हो जाती है? 


आप इस पर जरूर चिंतन करें कि आपने अपने किन बच्चे और बच्चियों से बैठकर उनकी समस्याओं पर कब बातचीत की थी? कब उनसे पूछा था कि पढ़ाई कैसी चल रही है और वह अगर परेशान रहता है या किसी और तरफ ज्यादा उनका झुकाव हो गया है तो आपने प्रेम से उनसे पूछा हो और उनकी तह जाने की कोशिश की हो? हमारे भारतीय समाज में ज्यादातर पिता अपने बेटों से बातचीत नहीं, लात-घुसों से बातचीत करते हैं? बेटियों से तो बातचीत करना ज़रूरी ही नहीं समझते। बेटियाॅं माॅंओं को अपनी समस्याएं बताती हैं और ज्यादातर माॅंएं भी उनकी समस्याओं को दबा देती हैं । दुनिया का ऐसा कोई बच्चा नहीं होगा जिन्हें प्रेम की भाषा समझ नहीं आती होगी। मैं आपसे निवेदन करती हूॅं कि आप अपने वक्त का एक छोटा सा हिस्सा अपने बच्चों पर खर्च करें और उनके साथ प्रेमिल व्यवहार करें ताकि बच्चे आपसे जुड़े और अपनी समस्या किसी तीसरे को बताने की बजाय आपसे साझा करें। जिससे आप समय रहते अपने बच्चों के साथ ग़लत होने से उन्हें बचा सकेंगे। 


मोबाइल- हम सभी के हाथ में आज मोबाइल है माता-पिता बच्चे यहां तक की सब्जी बेचने वाला, रिक्शा चलाने वाला के हाथ में भी इसकी पहुंच हो गई है। यह मोबाइल क्रांति का दौर है। शिक्षक के तौर पर मैं फिर से अभिभावक से बातचीत करना चाहूंगी कि आप हर बच्चों के हाथ में मोबाइल देखते हैं और दे देते हैं । आप कितना वक्त देते हैं कि 

१. उसने आज पूरे दिन में कितना मोबाइल इस्तेमाल किया।

२. कितने रील देखें और रील देखें तो किन विषयों पर देखें हैं।३. यूट्यूब चलाया तो यूट्यूब पर उन्होंने क्या-क्या देखा है। 

४. कितने अभिभावक हैं, जो उनके मोबाइल की हिस्ट्री को चेक करते हैं। यह आपकी जिम्मेदारी बनती है। 


एक और ज़रूरी बात आपके बच्चे मोबाइल लेकर विद्यालय आते हैं परीक्षा देने भी वह मोबाइल लेकर आते हैं। सैकड़ो की संख्या में बच्चे जब परीक्षा देने आते हैं वहां हर एक से मोबाइल लेकर उन्हें सुरक्षित रखना विद्यालय प्रशासन के लिए परेशानी का कारण है। आपके बच्चे परीक्षा देने आते हैं गूगल सर्च करते हुए आंसर लिखते हैं यह कौन सुनिश्चित करेगा कि वह जब परीक्षा देने आए तो मोबाइल घर पर छोड़कर आए। 

आप यह तय करें अपने घरों पर कि बच्चे जब विद्यालय आएं तो मोबाइल घर पर छोड़ कर आएं। एक सफल बच्चा के पीछे शिक्षक से ज्यादा उनके अभिभावक और माता-पिता का हाथ होता है तो अपनी जिम्मेदारियां को समझें और इनसे भागे नहीं।

मोबाइल कोई बुरी चीज़ नहीं है परंतु हम उसका इस्तेमाल कैसे करते हैं? यह सोचने वाली बात है।

कई यूपीएससी टॉपर्स ने भी अपने इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने कोई कोचिंग क्लासेस नहीं ली अलग-अलग टॉपिक को गूगल और यूट्यूब के माध्यम से मोबाइल के माध्यम से पढ़ते रहे और उन्हें यह सफलता मिली।


मैं अपनी कक्षा में लड़कियों को खासकर निर्भीक बनाने की कोशिश करती हूॅं। उन्हें सिर उठा कर चलने की सलाह देता हूॅं।

किस तरह वह पढ़ाई करके अपने आप को सक्षम बना सकती हैं इस पर फोकस्ड करने की बात करती हूॅं । पढ़ाई एक ऐसा जरिया है जिससे हम बहुत सारे सुधार कर सकते हैं। जागरूकता ला सकते हैं और समाज देश को विकसित बनाने में अपनी अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। 

इन्हीं कक्षाओं से निकल कर बच्चे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जाकर योगदान देंगे। यहीं पर उनकी नींव तैयार होती है। जब तक नींव मजबूत ना हो, हम मजबूत इमारत की कल्पना नहीं कर सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण दायित्व शिक्षक और अभिभावक का है कि आप इन बच्चों पर ज्यादा-से-ज्यादा ध्यान देकर इन्हें मजबूत बनाएं।


शिक्षक दिवस पर मुझे बच्चों से बस इतनी सी उम्मीद है कि वह अपने उत्तरदायित्व को समझें और पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर भी अपनी भूमिकाओं को समझें। गलत और सही में फ़र्क करना सीखें। आपमें , आपके माता-पिता के सपने पालते हैं। समाज का भविष्य पलता है। देश पलता है। इसलिए आप बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। 


एक शिक्षक होने के नाते मैं सभी बच्चों को उनके बेहतर भविष्य की शुभकामनाएं देती हूॅं।


अंत मैं अपनी ही लिखी हुई एक कविता से करती हूॅं -


■ मेरे बच्चे! बस इतना ही विश्वास दिलाना।।


मेरे बच्चे! 

जब तुम दुनिया की पाठशाला में जाना 

तुम अपनी नज़रों पर नज़र रखना

कभी गुमराह भीड़ का हिस्सा मत बनना

सारे धार्मिक झंडों को कोसी में बहा देना 


ललाट पर माटी से तिलक करना 

पेड़-पौधे से प्रेम सीखना 

चिड़ियों से चहचहाना

गिलहरी से चपलता सीखना 


प्रेमिका की हथेली हाथ में रखकर उसके माथे को चूमना  

प्रेम को मौन की भाषा से साधना 


मेरे बच्चे! 

जब देश की बात आए 

किसी भी रंग के झंडे को थामने से पहले 

भगत सिंह और राजगुरु याद रहे

कबीर और रहीम याद रहे

देश और वहाँ के अरबों लोग याद रहे

गंगा-जमुनी तहजीब याद रहे


मेरे बच्चे!

जब आन पर बात आए

वहां चुप्पी मत साधना 

मुखर होकर कहना 

हम किसी जाति/धर्म/ संप्रदाय से पहले मनुष्य हैं।।



ज्योति रीता (स. शि.)

+2 लालजी उच्च विद्यालय रानीगंज, अररिया 

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