स्वामी विवेकानंद हमारे देश के महान विचारक व युगद्रष्टा थे। इनकी गिनती केवल हमारे देश में नहीं अपितु सम्पूर्ण संसार के प्रतिभाशाली, उदात्त व प्रेरक विचारों के धनी पुरुषों में होती थी। वे उच्च विचारों के संपोषक, समाज सुधारक व दार्शनिक थे। यों तो इस संसार में सभी लोग जन्म लेते हैं और मरते हैं। परन्तु जन्म लेना उन्हीं का सार्थक है जो अपने पीछे कीर्तित्व एवं व्यक्तित्व का समृद्ध अवदान छोड़ जाते हैं। वाकई इनका व्यक्तित्व और कीर्तित्व अमर है। यों तो इनका जीवन काल बहुत छोटा रहा। लेकिन इतने छोटे काल में उन्होंने इस देश, समाज व धर्म को जो कुछ दिया, वह सार्थक, प्रेरक अनुकरणीय व सराहनीय है।
जीवन परिचय- इनका जन्म १२ जनवरी,१८६३ को कोलकाता में हुआ था। इनके बचपन का नाम नरेन्द्र दत्त, माता का नाम भुवनेश्वरी देवी तथा पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था। इनकी माता बुद्धिमती, गुणवती और धर्मपरायण थीं। बाल्यकाल से नरेन्द्र की रुचि साहित्य, संगीत और दर्शन में थी। यहाँ तक कि तैराकी, घुड़सवारी और कुश्ती में भी इन्हें विशेष शौक था।
व्यक्ति के संबंध में स्वामी विवेकानंद का विचार- उनका कहना था कि हर व्यक्ति स्वयं में कर्मठ व दिव्य हैं तथा उनमें महानता प्राप्त करने की अद्भुत क्षमता है। अतः उन्होंने लोगों को स्वयं पर विश्वास रखने तथा अपनी सम्पूर्ण क्षमता का सदुपयोग करते हुए लक्ष्य तक पहुँचने के सतत प्रयास पर बल देने कहा। उनका आदर्श वाक्य " उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।" आज भी पूरी दुनिया में लाखों लोगों को प्रेरित करता है। उन्होंने व्यक्ति को अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए सफलता के जो मूलमंत्र बताए वे इस तरह हैं- अंतर्मन एक विचार पैदा करो, उसका स्वप्न सजाओ, उसे अपना जीवन बनाओ, उसके बारे में चिंतन करो, उस विचार पर जियो। मस्तिष्क, शरीर, मांसपेशियों, नसों और शरीर के उस भाग को उस विचार से भर दो। सचमुच, स्वामी विवेकानंद दूसरों में प्रेरक विचार भरने में अग्रगण्य थे। उनकी भाषण शैली व ओजस्वी वाणी अनुकरणीय है।
शिक्षा संबंधी विचार- स्वामी विवेकानंद के द्वारा शिक्षा संबंधी दिए गए विचार अत्यंत ही प्रेरणास्पद है। उनका कहना है कि "वास्तविक शिक्षा वह है जो किसी को अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम बनाती है।" साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि शिक्षा वही है जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व नैतिक गुणों का विकास कर सके। हमें भी अपने बच्चों में नैतिक व आध्यात्मिक गुणों का विकास सतत करते रहना चाहिए। यदि बच्चे आध्यात्मिक, मानसिक व नैतिक गुणों से ठोस रहेंगे तो उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है। वर्ष १८९३ के ऐतिहासिक शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व कर पूरी दुनिया में भारत का डंका बजा दिया था। सच में, स्वामी विवेकानंद उच्च विचारों के संपोषक थे। उनके अनुसार जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। अतः हमें अपने जीवन में मेहनत व सतत संघर्ष पर ध्यान देना चाहिए। पूरे विश्वास व ताकत के साथ आगे बढ़ना चाहिए। जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप ईश्वर पर विश्वास नहीं कर सकते। अतः जीवन में प्रगति के उच्च सोपान पर चढ़ने के लिए स्वयं पर विश्वास तथा ईश्वर पर सच्चा विश्वास व प्यार होना चाहिए। हमें स्वामी विवेकानंद के द्वारा दिए गए प्रेरक विचार को निष्ठा व पूर्ण विश्वास से और दिखाए गए मार्ग पर सतत चलते रहने की जरूरत है। विशेषकर युवाओं को इनसे हमेशा प्रेरणा व सीख ग्रहण करनी चाहिए।
देव कांत मिश्र 'दिव्य' मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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